
इंदौर। वैसे तो इंदौर में ही बीते दिनों में घंटों की अघोषित कटौती हुई, खासकर थोड़ी भीबारिश होने या हवा तेज चलने पर रात-रातभर बिजली गायब रही। दूसरी तरफ नियामक आयोग ने जो बिजली कम्पनियों के लिए घोषित कटौती के मानक तय किए हैं, उसके मुताबिक संभागीय मुख्यालय, जिसमें इंदौर भी शामिल है, वहां पर महीने में अधिकतम 5 बार और 5 घंटे ही कटौती की जा सकेगी। इसी तरह एक लाख से अधिक आबादी वाले शहरों के लिए भी आयोग ने रोडमैप तैयार करवाया है। यह बात अलग है कि आयोग के ये मापदण्ड सिर्फ कागजी हैं, जिनका मैदानी कोई असर नजर नहीं आता और रख-रखव के नाम पर बिजली कम्पनियां अघोषित कटौती करती रहेगी।
हर साल ये बिजली कम्पनियां नियामक आयोग के समक्ष करोड़ों के घाटे का हवाला देकर बिजली की दरें भी बढ़वाती रही है, जबकि दूसरी तरफ हकीकत यह है कि प्रदेश में मांग की तुलना में उत्पादन अधिक हो रहा है और दिल्ली मेट्रो सहित अन्य राज्यों को बिजली बेचीी जा रही है। लगातार सौर ऊर्जा से भी बिजली उत्पादन में बढ़ोतरी हुई, बावजूद इसके आम उपभोक्ताओं को अधिक फायदा नहीं मिला, बल्कि हर साल बिजली की कीमतें 7 से 10 फीसदी तक बढ़ जाती है। इस बार भी उपभोक्ताओं को बढ़ी हुई दरों के बिल प्राप्त हो रहे हैं। वहीं मध्यप्रदेश विद्युत विनियामक आयोग ने औद्योगिक के साथ-साथ अन्य क्षेत्रों के लिए भी बिजली कटौती की संख्या और उसके घंटे के मानक तय किए हैं, जिसमें संभाग मुख्यालय, जिला मुख्यालय और औद्योगिक क्षेत्रों के लिए भी अलग-अलग मापदण्ड हैं।
संभाग मुख्यालय और औद्योगिक क्षेत्रों में बिजली कटौती बहुत सीमित रखने का दावा किया है, जिसमें महीने में अधिकतम 5 बार और 5 घंटे ही हो सकेगी। जिला मुख्यालय में महीने में 25 बार और अधिकतम 15 घंटे तक की छूट आयोग ने दी है। बड़े शहरों में उपभोक्ताओं को सालभर में अधिकतम 90 बार की कटौती झेलनी पड़ेगी और वह भी कुल 60 घंटे से अधिक नहीं। इसी तरह औद्योगिक क्षेत्रों में कटौती को अधिकतम 82 बार और 60 घंटे तक सीमित किया गया है। हालांकि बीते 12-13 वर्षों से आयोग इ तरह के मानक तय करता रहा है, जिसमें 4 साल पहले संशोधन भी किए थे। मगर उस पर बिजली कम्पनियों ने पालन ही नहीं किया। हालांकि इन्फ्रास्ट्रक्चर, तकनीक और अन्य क्षेत्र में अवश्य कम्पनियां काम कर रही हैं, जिसमें अंडरग्राउंड कैबलिंग भी प्रमुख है, ताकि कम से कम कटौती करना पड़े, क्योंकि हवा बारिश के चलते बिजली गुल हो जाती है, लेकिन जहां पर अंडरग्राउंड केबलिंग है वहां ये समस्या नहीं आती है। लेकिन जो पुराने ट्रांसफार्मर, बिजली की लाइनें डली हैं वहां पर ये समस्या आती है। इंदौर जैसे शहर में ही जरा-सी हवा चलने या बारिश होने पर सबसे पहले बिजली गुल हो जाती है और कई क्षेत्र तो ऐसे हैं जहां पर रात-रातभर बिजली नहीं रही है और दिन में भी अघोषित रूप से बिजली गुल हो जाती है और जब भी बिजली कम्पनी से जानकारी लो तो रटा-रटाया जवाब मिलता है कि रख-रखाव, पेड़ गिरने या सालाना रख-रखाव या आकस्मिक फॉल्ट होने के कारण बिजली बंद है। हालांकि घोषित तौर पर बिजली कम्पनी अलग-अलग क्षेत्रों में की जाने वाली कटौती के लिए सूचना भी देती है और उपभोक्ताओं को एसएमएस के जरिए भी ये जानकारी मिलती है। मगरघोषित के अलावा अघोषित बिजली कटौती से उपभोक्ता अधिक परेशान हैं।
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