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भारत-रूस दोस्ती से बौखलाया पश्चिम, पूर्व राजदूत बोले- अमेरिका का एकध्रुवीय वर्चस्व खत्म

December 08, 2025

नई दिल्‍ली । रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की दिल्ली यात्रा ने एक बार फिर साबित कर दिया कि भारत अपनी विदेश नीति में किसी के दबाव में आने वाला नहीं है। पुतिन को रेड कार्पेट बिछाकर स्वागत करने पर पश्चिमी देशों और उनके सोशल मीडिया योद्धाओं ने खूब बवाल काटा, लेकिन भारत ने साफ कर दिया कि हमारी दोस्ती पुरानी है और हम अपने फैसले पर अडिग हैं। इस पूरे विवाद के बीच सऊदी अरब, ओमान और UAE में भारत के पूर्व राजदूत तथा दिग्गज कूटनीतिज्ञ तलमीज अहमद ने पश्चिम को आईना दिखाते हुए कहा कि अमेरिकी वर्चस्व के दिन लद चुके हैं। भारत जैसे देश नया शीत युद्ध नहीं चाहते, हम तो बस अपनी रणनीतिक स्वायत्तता के साथ जीना और आगे बढ़ना चाहते हैं।

मीडिया से बात करते हुए पूर्व राजदूत तलमीज अहमद ने कहा कि पुतिन का दौरा निश्चित रूप से अहम है। भारत-रूस के बीच दशकों पुराने गहरे रिश्ते हैं और इनकी बार-बार पुष्टि होती रही है। लेकिन यह दौरा ऐसे वक्त में हुआ है जब दुनिया में गहरी खाई दिख रही है। शीत युद्ध के बाद से पश्चिम और पूर्व के बीच फूट रही है, मगर पश्चिम ने रूस को ‘शैतान’ बनाने का तरीका अपनाया है और बाकी देशों को धमकाया है कि या तो हमारे साथ रहो या खिलाफ। उन्होंने आगे कहा कि भारत जैसे देश बार-बार यही कह रहे हैं कि हमें जबरन किसी एक तरफ खड़ा मत करो। हम नया शीत युद्ध नहीं चाहते। हम अलग-अलग देशों के साथ अपने रिश्ते खुद तय करना चाहते हैं। हम पश्चिम के दुश्मन नहीं हैं, लेकिन अपने संबंधों को आकार देने और ढांचा तय करने का हक हम नहीं छोड़ेंगे।



विदेश मंत्री जयशंकर के ‘मल्टी-एलाइनमेंट’ या ‘मिनी-लैटरलिज्म’ की बजाय तलमीज अहमद ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ शब्द को ज्यादा सटीक मानते हैं। उनके मुताबिक यही शब्द साफ बताता है कि भारत एक संप्रभु देश है जो बाहरी दबाव के बिना अपने राष्ट्रीय हित में फैसले लेता है। उन्होंने कहा कि विश्व समुदाय का बड़ा हिस्सा इसी रणनीतिक स्वायत्तता का समर्थन करता है। ‘गुटनिरपेक्षता’ का भी यही मतलब था, भले ही शीत युद्ध खत्म होने के बाद उस शब्द का चलन कम हो गया हो। अहमद ने कहा कि रणनीतिक स्वायत्तता ठीक वही कहती है जो मैं कहना चाहता हूं। मैं आजाद देश हूं, अपने फैसले खुद लूंगा, दूसरे देशों के फैसले मुझे डिक्टेट नहीं करेंगे, मैं अपने हित में निर्णय लूंगा।

इस दौरान उन्होंने पश्चिम के दोहरे मापदंड पर तंज कसते हुए कहा कि यूरोपीय संघ का बड़ा हिस्सा आज भी रूस से जुड़ा है। कई देश रूस से ऊर्जा खरीद रहे हैं। खुद अमेरिका रूस से परमाणु ईंधन और रेयर अर्थ खरीद रहा है, चीन से बातचीत कर रहा है। फिर वे भारत को या किसी और को कैसे उपदेश दे सकते हैं कि क्या करें और क्या न करें? पूर्व राजदूत ने साफ कहा कि अमेरिकी एकध्रुवीय वर्चस्व के दिन लद चुके हैं और नया शीत युद्ध जैसा माहौल बनाने की कोशिश भी अमेरिका की ही देन है। उन्होंने बताया कि शीत युद्ध खत्म होने के बाद सिर्फ एकध्रुवीय दुनिया थी जिसमें अमेरिका का दबदबा था। लेकिन अफगानिस्तान, इराक, लीबिया जैसे दुस्साहसिक कदमों से अमेरिका ने अपनी विश्वसनीयता गंवा दी। अब वह पहले जैसी विश्वसनीय महाशक्ति नहीं रहा।

उन्होंने बताया कि अब चीन अर्थव्यवस्था, तकनीक और लॉजिस्टिक्स में अमेरिका को खुली चुनौती दे रहा है। साथ ही कई मीडिल पावर उभर रही हैं जो अपने क्षेत्र में अपनी भूमिका और आवाज मजबूती से रख रही हैं। यही वजह है कि दुनिया अब बहुध्रुवीय हो गई है। तलमीज अहमद ने अंत में कहा कि यह नया शीत युद्ध नहीं है, बल्कि बहुध्रुवीय व्यवस्था का उदय है। बहुध्रुवीय दुनिया में हर देश रणनीतिक स्वायत्तता का हक रखता है और उसे इस्तेमाल भी कर रहा है। आधिपत्य के दिन जा चुके हैं।

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