
नई दिल्ली. हिंदू धर्म(Hindu Religion) में प्राचीन काल से ही दैहिक, दैविक और भौतिक इन तीनों ताप को दूर करने के लिए देवी-वेवताओं की अलग-अलग रूप में पूजा (worship) करने का विधान है. धार्मिक मान्यता है कि देवी-देवता हर प्रकार के कष्टों से रक्षा करते हैं. ऐसे ही माता शीतला की पूजा से संक्रमण रोगों (infectious diseases) से मुक्त होने की मान्यता है. शीतला माता (Sheetla Mata) की पूजा चैत्र कृष्ण अष्टमी (Krishna Ashtami) तिथि को की जाती है. इस साल यह पर्व 25 मार्च को पड़ने वाला है. ऐसे में जानते हैं शीतला अष्टमी पर्व के बारे में.
क्यों लगाते हैं माता को बासी भोजन का भोग?
हिंदू धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक हर व्रत-उपवास और पूजा-पाठ में शुद्ध और ताजे प्रसाद का भोग लगाया जाता है. परंतु, ये नियम माता शीतला के व्रत में लागू नहीं होता है. इस दिन लोग अपने घरों में ताजा भोजन नहीं बनाते हैं, बल्कि इस दिन ठंढ़ा भोजन खाए जाने का रिवाज है. शीतला अष्टमी के दिन बासी प्रसाद भोग लगाने के पीछे मान्यता है कि माता शीतला को बासी भोजन बहुत प्रिय है. यही कारण है कि लोगा माता को प्रसन्न करने के लिए उन्हें बासी और ठंढ़ी चीजों का भोग लगाते हैं. उत्तर भारत में शीतला अष्टमी व्रत (Sheetala Ashtami fasting) को बसौड़ा नाम के जाना जाता है. मान्यता है कि इस दिन के बाद से लोग बासी भोजन नहीं करते हैं.
शीतला अष्टमी पर क्या है बासी भोजन करने का महत्व?
शीतला अष्टमी के दिन घरों में ठंढ़ा और बासी भोजन किया जाता है. इस दिन घरों में सुबह से समय चूल्हा नहीं जलाते हैं. इस दिन बासी खाना खाने के साथ ही नीम की पत्तियां खाने की भी परंपरा है. इसके अलावा इस दिन ठंढ़ा, बासी पुआ, पूरी, दाल-भात आदि का भोग माता को लगाकर खाया जाता है.
(नोट: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. हम इसकी पुष्टि नहीं करते है.)
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