मुंबई। फिल्मों की दुनिया में कुछ चेहरे ऐसे भी होते हैं, जिन्हें देखकर डर लगता है और वही चेहरे कभी हंसी का फव्वारा बन जाते हैं। ऐसा ही चेहरा था सदाशिव अमरापुरकर (Sadashiv Amrapurkar) का। नासिक (Nasik) की गलियों में कभी ऑटो चलाने वाला यह लड़का, 80–90 के दशक आते-आते हिंदी सिनेमा की ‘महारानी’ बन बैठा। ‘अर्ध सत्य’ में पहली बार बड़े पर्दे पर उतरे और उनका अभिनय ऐसा था कि फिल्मफेयर अवॉर्ड अपने नाम कर लिया।
सदाशिव सिर्फ खलनायक नहीं थे। ‘आंखें’ में उनका भुलक्कड़ इंस्पेक्टर लोगों को हंसते-हंसते लोटपोट कर देता था, वहीं ‘इश्क’ में सख्त पिता के रूप में उनके किरदार की आंखों में छिपा डर, असली पिता की तरह गहरा असर डालता था। हिंदी सिनेमा ही नहीं, मराठी, बंगाली और उड़िया फिल्मों में भी उनका हुनर हर भाषा की स्क्रीन पर चमकता रहा।
कुछ समय बाद वे फिल्मों से मोहभंग हो गए। करीब दो साल अमेरिका में चुपचाप रहे। लेकिन लौटकर आए तो आखिरी बार 2012 में ‘बॉम्बे टॉकीज’ में नजर आए।
टीवी और थिएटर के मंच पर भी उन्होंने अपना जलवा बिखेरा। जी टीवी के शो ‘शोभा सोमनाथ की’ में उन्होंने तांत्रिक रूद्रभद्र बनकर लोगों को डर। श्याम बेनेगल की ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ में समाज सुधारक ज्योतिबा फुले और ‘राज से स्वराज तक’ में लोकमान्य तिलक का किरदार निभाया।
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