
कानपुर। कानपुर (Kanpur) के दो मुस्लिम भाई अमरनाथ यात्रा (Pilgrimage to Amarnaath) पर गए भक्तों की सेवा में जुटे हैं। बाबा बर्फानी (Baba Barfani) के भक्तों की सेवा की इच्छा लेकर लोडर चलाने वाले सगे भाई इरशाद और शमशाद खुद से कानपुर की शिव सेवक समिति के पास गए थे। लंगर के सामान और 5 ई-रिक्शा लेकर समिति के सदस्यों के साथ दोनों भाई बालटाल पहुंच गए और तबसे वहीं रुककर भक्तों की सेवा में जुटे हैं।
बता दें कि कानपुर की शिव सेवक समिति के सदस्य (Committee member) हर साल बाबा अमरनाथ के भक्तों की सेवा के लिए बालटाल जाते हैं। साथ में लंगर का सामान भी ले जाते हैं। वहां शिविर लगाते हैं। इस बार भक्तों को लाने-ले जाने के लिए पांच ई-रिक्शा भी वहां भेजे गए हैं। समिति के महासचिव शीलू वर्मा के अनुसार, अबकी सामान भेजने की बारी आई तो लोडर चलाने वाले इरशाद खुद उनके पास आए और अमरनाथ (amaranth) जाने की इच्छा जताई। उनके साथ भाई शमशाद भी लोडर से सामान लेकर अमरनाथ तक गए और इसके बदले में किराया सिर्फ उतना लिया, जितना खर्च आया।
इंसानियत की सेवा
फोन पर इरशाद ने (irshad) बताया कि भक्तों को जब ई-रिक्शा से छोड़ते हैं तो उसके आगे ज्ञान गिरी आश्रम से गुफा के रास्ते में बड़ी संख्या में लोग लड़खड़ाते मिलते हैं। उन्हें सहारा देना पड़ता है। ऐसे करीब 180 बुजुर्गों, दिव्यांगों और न चल पाने वाले भक्तों को दोनों भाई रोज सहारा देते हैं। दोनों भाइयों का कहना है कि बाबा की बड़ी महिमा सुनी थी। इससे ठाना था कि एक बार दर्शन करने जरूर जाऊंगा। सामान पहुंचाने के बहाने यह मौका भी मिल गया। यहां आकर लगा कि इंसानियत की सेवा भी कर लेनी चाहिए, यही सबसे बड़ा धर्म है। जब खुदा अपने बंदों में कोई फर्क नहीं करता तो हम भला क्यों करें। अमरनाथ में बादल फटने के बाद पैदा हुए हालात में तो वे लगातार बिना सोए रात-दिन श्रद्धालुओं की सेवा में जुटे हैं।
मत्था टेकते, नमाज भी पढ़ते
इरशाद के वालिद का निधन हो गया है। मां मुन्नी जूही सब्जी मंडी के पास सब्जी की दुकान लगाती हैं। इरशाद और शमशाद का कहना है कि वे मस्जिद में नमाज पढ़ते हैं तो मंदिरों के सामने मत्था भी टेकते हैं। मजार पर सलाम करने से नहीं चूकते।
बुजुर्ग को कराया दर्शन
बहुत कुरेदने पर इरशाद ने बताया कि पहले भी ऐसा कर चुके हैं। उन्होंने बताया कि लगभग चार साल पहले वे एक ट्रैवल एजेंसी की टैक्सी चलाते थे। तब एक बुजुर्ग महिला उनकी कार से बेटे और बहू के साथ पूर्णागिरि दर्शन को गई थीं। बुजुर्ग महिला चल नहीं पा रही थीं तो उन्हें पीठ पर लाद कर देवी के दरबार तक ले गए। खुद भी मां के दर्शन किए। इससे बड़ा सकून मिला।
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