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तरबूज के लिए मौसम रहा अनुकूल, किसान हो रहे मालामाल

– सीएसए के वैज्ञानिकों की मेहनत ला रही रंग, प्रशिक्षण से लाभ उठा रहे किसान

कानपुर। शहर के चौराहों व सड़कों के किनारों (roadsides) से लेकर सब्जी बाजारों (vegetable markets) में इन दिनों तरबूज ही तरबूज (watermelon) दिखाई दे रहा है। यही नहीं भीषण गर्मी (scorching heat) में लोगों के लिए तरबूज पहली पसंद (watermelon first choice) बना हुआ है। यह गर्मी में लोगों की पानी की कमी को पूरा करता है। इससे इसकी बिक्री में जबरदस्त उछाल देखा जा रहा है।

इसके पीछे कारण यह रहा कि इस बार तरबूज के लिए मौसम अनुकूल रहा और बेहतर पैदावार से किसान मालामाल हो रहे हैं। सीएसए के वैज्ञानिकों की भी मेहनत रंग ला रही है और प्रशिक्षण प्राप्त कर किसान पिछले वर्ष की अपेक्षा इस बार अधिक लाभ उठा रहे हैं।


दरअसल, तरबूज जायद मौसम की मुख्य फसल मानी जाती है, जिसकी खेती उत्तर प्रदेश में गंगा और यमुना के दोआबे में प्रमुख रुप से होती है। इसकी खेती में कम समय, कम खाद और कम पानी की आवश्यकता पड़ती है। गंगा और यमुना की रेती में तो इसका उत्पादन और बेहतर रहता है, हालांकि कानपुर परिक्षेत्र में सबसे अधिक तरबूज का उत्पादन दोआबा की खेती पर होता है। हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी तरबूज की फसल कानपुर परिक्षेत्र के दोआबा में लहरा रही है, लेकिन पिछले वर्ष की अपेक्षा इस वर्ष तरबूज फसल का उत्पादन अधिक हो रहा है, क्योंकि मौसम अनुकूल है। इससे किसान मालामाल हो रहे हैं। खासकर नई प्रजाति के तरबूज अधिक उत्पादन दे रहे हैं और जो किसान चन्द्रशेखर आजाद कृषि प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (सीएसए) से प्रशिक्षण प्राप्त किये हैं वह अधिक लाभ कमा रहे हैं। इससे सीएसए के वैज्ञानिकों की भी मेहनत रंग ला रही है।

तीन से पांच लाख रुपये प्रति हेक्टेयर हो रही आमदनी
सीएसए के वैज्ञानिक डॉ खलील खान ने बताया कि तरबूज ऐसी फसल है जिसमें लागत कम लगती है और आमदनी अधिक होती है। बताया कि एक हेक्टेयर में आठ सौ से एक हजार क्विंटल तरबूज का उत्पादन होता है। थोक भाव में एक क्विंटल पांच से आठ सौ रुपये क्विंटल बिक्री होती है। इस प्रकार खर्च हटाने के बाद भी तीन से पांच लाख रुपया प्रति हेक्टेयर किसानों को आमदनी हो रही है।

यह है तरबूज की प्रजातियां
वैज्ञानिक ने बताया कि तरबूज की कई प्रजातियां हैं जिनमें कुछ देशी हैं तो कुछ हाइब्रिड है। देशी प्रजाति में शुगर बेबी, अर्का ज्योति, आशायी यामातो, डब्लू.19, पूसा बेदाना, अर्का मानिक हैं। वहीं हाइब्रिड प्रजाति में मधु, मिलन, दुर्गापुर केसर, दुर्गापुर मीठा, काशी पीताम्बर और मोहनी प्रमुख रुप से हैं।

किसानों का कहना
घाटमपुर के किसान राधेश्याम सिंह ने बताया कि करीब एक बीघा में तरबूज की खेती सीएसए से प्रशिक्षण करने के बाद किया। एक बीघा में जिस प्रकार तरबूज का उत्पादन हो रहा है उससे उम्मीद है कि करीब 30 से 35 हजार रुपये की आमदनी हो जाएगी। बिल्हौर के किसान सत्य नारायण कटियार ने बताया कि हाइब्रिड प्रजाति की मोहनी का उत्पादन किया गया है और बेहतर लाभ हो रहा है। चौबेपुर के किसान दीनानाथ यादव ने बताया कि इस बार मौसम ने बेहतर साथ दिया है और बाजार में दाम भी अच्छे मिल रहे हैं।

तरबूज की खेती में सिंचाई प्रबंधन
वैज्ञानिक ने बताया कि तरबूज की खेती में बुवाई के करीब 10-15 दिन के बाद सिंचाई की जानी चाहिए। वहीं यदि इसकी खेती नदियों के किनारों है तो सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है। क्योंकि यहां की मिट्टी में पहले से ही नमी बनी हुई रहती है। (एजेंसी, हि.स.)

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