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PM मोदी ने काशी यात्रा के जरिए भारत के लोगों को क्‍या दिया संदेश ?

नई दिल्ली । प्रधानमंत्री मोदी (Narendra Modi) पिछले दो दिन से बनारस (Varanasi) में थे. इस दौरान देश ने उन्हें गेरुए वस्त्रों में गंगा में स्नान करते हुए देखा, मन्दिर में हर हर महादेव का उद्घोष करते हुए सुना और गंगा आरती के दर्शन करते हुए देखा.

पीएम की काशी यात्रा ने दिया संदेश
किसी भी देश के लिए अपनी सांस्कृतिक विरासत और धरोहर को पहचानना और उस पर गर्व करना कितना आवश्यक है. प्रधानमंत्री मोदी (Narendra Modi) ने काशी यात्रा के जरिए भारत के लोगों का उनकी विरासत से एक नया परिचय करवाया. इस दौरान उन्हें दुनिया को ये बताते हुए ज़रा भी संकोच नहीं हुआ कि वो एक हिन्दू हैं और हिन्दुत्व की जीवन पद्धति का पालन करते हैं. इससे पहले हमारे देश के प्रधानमंत्री और बड़े बड़े नेता अपने आपको खुल कर हिन्दुत्व से जोड़ने में संकोच करते थे और अपने धर्म को लेकर हमेशा बैकफुट पर रहते थे. जबकि दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र अमेरिका में राष्ट्रपति आज भी बाइबल पर हाथ रख कर राष्ट्रपति पद की शपथ लेते है.


ये बहस उस सवाल का जवाब है, जो राहुल गांधी ने शुरू की थी. जिसमें उन्होंने कहा था कि वो हिन्दू तो हैं लेकिन हिंदुत्ववादी नहीं हैं. हमारे देश के तमाम बड़े बड़े नेता, जो खुद को हिन्दू बताते हैं, उनके लिए आज हम अंग्रेज़ी भाषा के एक शब्द का इस्तेमाल करना चाहता है, जो है Reluctant हिन्दू यानी अनिच्छुक हिन्दू. इन नेताओं ने कभी भी खुल कर अपने धर्म की बात नहीं की. इसके पीछे सियासी वजह रही हैं. इन्हें लगता था कि अगर इन नेताओं ने खुल कर अपने धर्म की बात की तो उनकी सियासत कमज़ोर हो जाएगी.

रात में फिर मंदिर पहुंच गए पीएम मोदी
अक्सर आप देखते होंगे कि जब कोई नेता किसी प्रोजेक्ट का उद्घाटन करता है तो वो वहां कार्यक्रम होने के बाद बहुत कम ही मौक़ों पर वापस लौट कर आता है. लेकिन प्रधानमंत्री मोदी (Narendra Modi) ने इस परंपरा को भी बदलने की कोशिश की है. पीएम मोदी ने सोमवार को दिन में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर (Kashi Vishwanath Corridor) का उद्घाटन किया और रात के समय वो एक बार फिर से मन्दिर में हुए विकास के कामों का जायजा लेने पहुंच गए. प्रधानमंत्री मोदी को बनारस की सड़कों पर आम लोगों के बीच भी देखा गया. वो शायद देश के पहले ऐसे प्रधानमंत्री हैं, जो प्रोटोकोल से हट कर आम लोगों से पूरी सहजता के साथ मिलते हैं.

प्रधानमंत्री मोदी (Narendra Modi) ने सोमवार रात क़रीब एक बजे बनारस रेलवे स्टेशन का भी दौरा किया. इस रेलवे स्टेशन को पहले मंडुवाडीह रेलवे स्टेशन कहा जाता था और अक्सर यात्रियों की शिकायत होती थी कि इस रेलवे स्टेशन में सुविधाएं कम और गन्दगी ज्यादा है. लेकिन अब इस स्टेशन का नाम और रूप दोनों बदला जा चुका है. इसका कायाकल्प भी प्रधानमंत्री मोदी की ओर से शुरु की गई योजनाओं के तहत हुआ है. प्रधानमंत्री मोदी ने मंगलवार को बनारस में एक जनसभा में ये भी कहा कि काशी के रोडमैप से देश के विकास का रोडमैप तैयार होता है.

पीएम-सीएम दोनों गेरुए रंग में दिखे
वर्ष 2015 में शाहरुख़ ख़ान की एक फिल्म आई थी दिलवाले, जिसके एक गाने के बोल कुछ इस तरह थे…रंग दे तू मोहे गुरुआ. शाहरुख़ ख़ान तो ये बात कह सकते हैं लेकिन राजनीति में ये बात कहना बहुत मुश्किल है. राजनीति में आप ये नहीं कह सकते कि रंग दे तू मोहे गेरुआ. अपने काशी दौरे के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी और सीएम योगी आदित्यनाथ दोनों गुरुए रंग के कपड़े पहने नजर आए. ऐसा करके दोनों ने साफ संदेश दिया कि उन्हें गेरुआ रंग के वस्त्र पहनने में कोई शर्मिंदगी नहीं है.

इस रंग के वस्त्र पहन कर कोई भी नेता अच्छा मुख्यमंत्री हो सकता है और अच्छा प्रधानमंत्री भी हो सकता है. दूसरी बात, प्रधानमंत्री ये सब इसलिए कर रहे हैं ताकि आपको अपनी विरासत पर गर्व हो और हमारी जो सांस्कृतिक धरोहर हैं, उसे बचा कर रखा जा सके, जो सैकड़ों वर्षों तक ख़तरे में रही है. इससे पहले कोई भी प्रधानमंत्री खुल कर ये नहीं बताता था कि वो हिन्दू है. उसे अपने धर्म के बारे में बताने में संकोच होता था. जबकि अमेरिका जैसे देश में भी ऐसा नहीं है.

बाइबल पर हाथ रखकर शपथ लेते हैं अमेरिकी राष्ट्रपति
इसी साल जब 20 जनवरी को Joe Biden अमेरिका के 46वें राष्ट्रपति बने थे, तब उन्होंने राष्ट्रपति पद की शपथ 128 साल पुरानी बाइबल पर हाथ रख कर ली थी. जबकि अमेरिका का संविधान बाइबल पर हाथ रख कर शपथ लेने के लिए कहता ही नहीं है. ये एक तरह की राजनीतिक परम्परा है, जिसकी शुरुआत वर्ष 1789 में अमेरिका के पहले राष्ट्रपति जॉर्ज वॉशिंगटन ने की थी.

लेकिन अब सोच कर देखिए कि क्या हमारे देश का कोई प्रधानमंत्री संविधान की जगह रामचरित मानस पर हाथ रख कर पद और गोपनीयता की शपथ ले सकता है? अगर कोई प्रधानमंत्री ऐसा करता है तो इसे संविधान के बुनियादी ढांचे के ख़िलाफ़ माना जाएगा और ये शपथ Communal रूप ले लेगी. लेकिन यही चीज़ जब अमेरिका में होती है तो किसी को इसमें कुछ भी ग़लत नहीं लगता. कोई अमेरिका पर साम्प्रदायिक होने का आरोप नहीं लगाता.

अकबर रोड़ का नाम जनरल बिपिन रावत रोड़ किया जाए
नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) देश के पहले ऐसे प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने ये बताया है कि एक प्रधानमंत्री को अपने धर्म को लेकर बैकफुट पर रहने की ज़रूरत नहीं है. उन्हें अपना धर्म बताने में कोई शर्मिंदगी नहीं है, और वो हिन्दू, हिंदुत्व और हिंदुत्ववादी होने को शर्मिंदगी का विषय नहीं मानते हैं. इसलिए हमें लगता है कि प्रधानमंत्री मोदी भारत की विरासत को और जो इस देश की सांस्कृतिक धरोहर है, उसका सम्मान वापस ला रहे हैं और आपसे ये कह रहे हैं कि आप भी इस पर गर्व कीजिए.

इसके लिए आज हम भी यहां एक मांग रखना चाहते हैं. देश की राजधानी दिल्ली में आज भी मुगल शासक अकबर के नाम पर एक सड़क है. ये अकबर रोड देश की संसद से मात्र दो किलोमीटर दूर है. यानी 5 मिनट की दूरी पर है. आज हमारी मांग है कि जिस तरह वर्ष 2015 में दिल्ली में औरंगज़ेब रोड का नाम बदल कर डॉक्टर ए.पी.जे. अब्दुल कलाम रोड किया गया था, ठीक उसी तरह अकबर रोड का नाम बदल कर इसे जनरल बिपिन रावत रोड नाम दिया जाना चाहिए.

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