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आखिर क्‍यों होती है बादल फटने की घटनाएं ? पहले से हो सकती है भविष्यवाणी, जानिए इन सवालों के जवाब

August 17, 2025

नई दिल्ली । हर साल मॉनसून (Monsoon) का मौसम भारत (India) और पड़ोसी देशों में बारिश की सौगात लाता है, लेकिन कई बार यह बारिश तबाही का रूप ले लेती है। ‘बादल फटना’ एक ऐसी प्राकृतिक आपदा (Natural Disaster) है, जो अचानक और भयावह तरीके से जान-माल का नुकसान करती है। हाल ही में भारत के उत्तराखंड (Uttarakhand), हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh), जम्मू-कश्मीर (Jammu and Kashmir) और पड़ोसी देश पाकिस्तान (Pakistan) व नेपाल (Nepal) में बादल फटने (cloud burst) की घटनाओं ने भारी तबाही मचाई है। आखिर बादल फटने का मतलब क्या है? यह क्यों होता है? क्या इसकी पहले से भविष्यवाणी करना संभव है? और सबसे जरूरी, इससे होने वाली तबाही को कैसे कम किया जा सकता है? आइए, इन सवालों के जवाब समझने की कोशिश करते हैं।

बादल फटने की तबाही: क्या होती है यह प्राकृतिक आपदा?
बादल फटना, जिसे अंग्रेजी में ‘क्लाउडबर्स्ट’ कहते हैं, यह तब होता है जब बहुत कम समय में एक छोटे से क्षेत्र में भारी मात्रा में बारिश हो जाती है। भारतीय मौसम विभाग (IMD) के अनुसार, अगर एक घंटे में 100 मिलीमीटर (10 सेंटीमीटर) से ज्यादा बारिश किसी 10-20 वर्ग किलोमीटर के छोटे क्षेत्र में होती है, तो इसे बादल फटना कहते हैं। आसान भाषा में कहें तो, यह ऐसा है जैसे किसी छोटी सी जगह पर आसमान से बाल्टी भर-भर कर पानी उड़ेल दिया जाए। यह बारिश इतनी तेज होती है कि जमीन उसे सोख नहीं पाती, जिससे अचानक बाढ़, भूस्खलन और तबाही मच जाती है।

हाल के हफ्तों में, भारत और पाकिस्तान में बादल फटने की कई घटनाएं सामने आई हैं। उदाहरण के लिए, उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के धराली गांव में 5 अगस्त को बादल फटने से भारी तबाही हुई। इस घटना में कई लोगों की मौत हुई, दर्जनों से ज्यादा लोग लापता हुए, और गांव का एक बड़ा हिस्सा मलबे में दब गया। इसी तरह, जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ में 14 अगस्त को मचैल माता मंदिर के पास बादल फटने से 60 से ज्यादा लोगों की जान चली गई, और कई लोग लापता हैं।


पाकिस्तान में भी स्थिति कम भयावह नहीं है। खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में 14-15 अगस्त को बादल फटने और अचानक बाढ़ आने से 300 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। बाजौर, स्वात, और बटाग्राम जैसे इलाकों में भारी तबाही हुई, जहां सैकड़ों लोग लापता हैं और हजारों घर नष्ट हो गए। हिमालय की गोद में बसे पड़ोसी देश नेपाल का भी कुछ ऐसा ही हाल है।

क्यों फटते हैं बादल?
बादल फटने की घटना कोई रहस्यमयी नहीं है, बल्कि यह प्रकृति की एक जटिल प्रक्रिया का नतीजा है। इसे समझने के लिए हमें इसके कारणों को देखना होगा-

पहाड़ी भूगोल और हवाएं: बादल फटने की ज्यादातर घटनाएं पहाड़ी इलाकों में होती हैं, जैसे हिमालय या पश्चिमी घाट। जब नमी से भरी गर्म हवाएं समुद्र (जैसे बंगाल की खाड़ी या अरब सागर) से उठकर पहाड़ों से टकराती हैं, तो वे ऊपर उठती हैं। इस प्रक्रिया को ‘ओरोग्राफिक लिफ्टिंग’ कहते हैं। ऊपर ठंडी हवा से मिलने पर ये नमी घने बादलों में बदल जाती है, जो अचानक भारी बारिश में तब्दील हो जाते हैं।

जलवायु परिवर्तन: ग्लोबल वार्मिंग के कारण समुद्र का तापमान बढ़ रहा है, जिससे हवा में नमी की मात्रा बढ़ रही है। वैज्ञानिकों के अनुसार, तापमान में 1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि से हवा में 7% ज्यादा नमी जमा हो सकती है। यह नमी बादल फटने की घटनाओं को और तीव्र बनाती है।

मानवीय गतिविधियां: जंगलों की कटाई, अनियोजित निर्माण, और पहाड़ों पर बस्तियां बसाना इस खतरे को बढ़ाता है। पेड़ों की कमी से मिट्टी पानी को सोख नहीं पाती, और गलत निर्माण से पानी का बहाव बाधित होता है, जिससे बाढ़ और भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है।

मॉनसून का प्रभाव: मॉनसून के दौरान नमी से भरे बादल हिमालय से टकराते हैं, जिससे भारी बारिश होती है। कभी-कभी पश्चिमी विक्षोभ भी इस प्रक्रिया को और तेज करते हैं।

क्या बादल फटने की भविष्यवाणी संभव है?
बादल फटना एक ऐसी आपदा है, जिसकी सटीक भविष्यवाणी करना मौसम वैज्ञानिकों के लिए आज भी चुनौती है। इसके कई कारण हैं-

छोटा क्षेत्र, कम समय: बादल फटने की घटना बहुत छोटे क्षेत्र (1-2 किलोमीटर) में और कुछ ही मिनटों में होती है। मौसम रडार और सैटेलाइट बड़े क्षेत्रों के लिए डिजाइन किए गए हैं, इसलिए इतने छोटे स्तर पर सटीक डेटा जुटाना मुश्किल है।

तेजी से बदलते हालात: नमी, हवा की गति, और तापमान जैसी परिस्थितियां मिनटों में बदल सकती हैं। मौजूदा तकनीक इतनी तेजी से इन बदलावों को पकड़ने में पूरी तरह सक्षम नहीं है।

पहाड़ी इलाकों की जटिलता: हिमालय जैसे क्षेत्रों की भौगोलिक बनावट मौसम के पैटर्न को जटिल बनाती है। पहाड़ हवाओं को प्रभावित करते हैं, जिससे स्थानीय स्तर पर बादल बनते और फटते हैं।

हालांकि, कुछ प्रगति हुई है। भारतीय मौसम विभाग (IMD) अब डॉप्लर रडार और सैटेलाइट जैसे उपकरणों का उपयोग करके भारी बारिश की संभावना की चेतावनी देता है। उदाहरण के लिए, ‘मौसम’ और ‘IMD Weather’ जैसे मोबाइल ऐप्स के जरिए अलर्ट जारी किए जाते हैं। लेकिन सटीक स्थान और समय की भविष्यवाणी अभी भी मुश्किल है।

भारत और पाकिस्तान में हाल की तबाही
भारत: इस साल मॉनसून में बादल फटने की घटनाएं हिमालयी राज्यों में बढ़ी हैं। उत्तराखंड के धराली में 5 अगस्त को हुई तबाही में मलबे ने गांव को बर्बाद कर दिया। किश्तवाड़ में 14 अगस्त को मचैल माता यात्रा मार्ग प्रभावित हुआ, और 60 से ज्यादा लोगों की मौत हुई। हिमाचल प्रदेश के कुल्लू और शिमला में भी बादल फटने से सड़कें, घर, और खेत बह गए।

पाकिस्तान: खैबर पख्तूनख्वा में 14-15 अगस्त को बादल फटने से 300 से ज्यादा लोग मारे गए। बाजौर में 21, शांगला में 36, और बटाग्राम में 15 लोगों की मौत हुई। मूसलाधार बारिश ने गांवों को बहा दिया, और राहत कार्यों में देरी हुई क्योंकि कई लोग लापता हैं।

बचाव और सावधानियां
बादल फटने की घटनाओं को पूरी तरह रोकना असंभव है, लेकिन सही कदमों से नुकसान को कम किया जा सकता है। यात्रा से पहले IMD या Skymet Weather जैसे स्रोतों से मौसम अपडेट लें। भारी बारिश की चेतावनी हो तो पहाड़ी इलाकों की यात्रा टालें। खासतौर से मॉनसून के दौरान टॉर्च, पानी, सूखा भोजन, प्राथमिक चिकित्सा किट, और जरूरी दस्तावेज तैयार रखें। नदियों, नालों, या ढलानों के पास न रुकें। ऊंचे और सुरक्षित स्थानों पर जाएं। पहाड़ों पर अनियोजित निर्माण रोकें और जंगलों की कटाई पर नियंत्रण करें। पेड़ मिट्टी को बांधे रखते हैं, जिससे भूस्खलन का खतरा कम होता है। मौसम विभाग को और अधिक डॉप्लर रडार और हाई-रिजॉल्यूशन मॉडल्स की जरूरत है, ताकि स्थानीय स्तर पर भविष्यवाणी बेहतर हो।

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