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क्या बच्चों को पाकिस्तान ले जा पाएगी अंजू उर्फ फातिमा, कस्टडी को लेकर हो सकता है बवाल

नई दिल्ली। पाकिस्तान (Pakistan) गई अंजू (Anju) छह महीने बाद फिर भारत लौट आई है. राजस्थान के अलवर की रहने वाली अंजू ने 25 जुलाई को पाकिस्तान के नसरुल्लाह से निकाह कर लिया था. इसके बाद अंजू ने इस्लाम कबूल कर अपना नाम भी बदलकर फातिमा कर लिया.फातिमा बनी अंजू भारत क्यों आई है? इस बारे में उसके पाकिस्तानी पति नसरूल्लाह ने बताया कि अंजू को अपने बच्चों की बहुत याद आ रही थी और उनसे मिलने के लिए ही वो भारत आई है.


नसरूल्लाह ने कुछ दिन पहले ही पाकिस्तानी मीडिया को इंटरव्यू दिया था. इसमें उसने बताया था कि अंजू भारत में अपने बच्चों से मिलेगी. अगर बच्चे अंजू के साथ पाकिस्तान आना चाहेंगे तो आ सकते हैं. लेकिन अगर वो भारत में ही रहना चाहेंगे तो वो उनकी मर्जी है.

हालांकि, ये सब कहने और सुनने में जितना आसान लग रहा है, उतना है नहीं. इस तरह के मामलों में कई सारे कानूनी पचड़े आड़े आते हैं. बच्चों की कस्टडी इतनी आसानी से नहीं मिलेगी. इस मामले में कई सारे अंतरराष्ट्रीय कानून हैं, दोनों देशों की अपनी चुनौतियां हैं और राजनयिक संबंध हैं, जो इसे जटिल बना सकते हैं.

क्या-क्या हैं चुनौतियां?

– क्षेत्राधिकार संबंधी संघर्षः सबसे बड़ी चुनौती तो यही होगी कि बच्चों की कस्टडी के मामलों पर फैसला लेने का कानूनी अधिकार किस देश के पास है. ये कई बातों पर निर्भर करता है, जैसे- बच्चे कहां के रहने वाले हैं? उनकी राष्ट्रीयता क्या है? तलाक या सेपरेशन की कार्यवाही कहां शुरू की गई थी?

– अंतरराष्ट्रीय संधियां और कानूनः इंटरनेशनल चाइल्ड एब्डक्शन पर हेग कन्वेंशन भारत और पाकिस्तान दोनों पर ही लागू हो सकता है. ये बच्चों की कस्टडी से जुड़ा है. इन अंतरराष्ट्रीय संधियों और कानूनों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बच्चों की कस्टडी से निपटने के लिए गाइडलाइंस दी गईं हैं.

– सांस्कृतिक और धार्मिक विचारः दोनों देशों की सांस्कृतिक और धार्मिक प्रथाएं भी कस्टडी के फैसले को प्रभावित कर सकती हैं. ऐसा होने पर अदालत बच्चों के हितों को ध्यान में रखकर फैसला ले सकती है.

– लीगल रिप्रेजेंटेशनः दोनों देशों की कानूनी प्रणालियों से निपटने के लिए इंटरनेशनल फैमिली लॉस के जानकार वकीलों की जरूरत हो सकती है.

– माता-पिता के अधिकार और जिम्मेदारियांः अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से जुड़ी कस्टडी की लड़ाई में मुलाकात का अधिकार और वित्तीय सहायता समेत कई अधिकारों और जिम्मेदारियों को तय करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है.

– अदालती आदेशों को लागू करनाः दोनों देशों की कानूनी प्रणालियों और सहयोग में अंतर के कारण अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के पार कस्टडी से जुड़े अदालती आदेशों को लागू कर पाना चुनौतीपूर्ण हो सकता है.

– लीगल सिस्टम में अंतरः हर देश का अपना लीगल सिस्टम होता है. कानूनों, प्रक्रियाओं और कस्टडी से जुड़े मामलों की व्याख्याओं में अंतर होने के कारण एक देश में जारी किए गए अदालती आदेश दूसरे देशे में लागू करने योग्य नहीं हो सकते.

– द्विपक्षीय समझौते और संधियांः कुछ में द्विपक्षीय समझौते या संधियां हैं जो कस्टडी के आदेशों को लागू करने में मदद करती है. लेकिन सभी देशों में ऐसे समझौते नहीं हैं, जिससे प्रक्रिया जटिल हो जाती है.

– सांस्कृतिक और भाषा बाधाएंः किसी विदेशी क्षेत्राधिकार में कस्टडी के आदेशों को लागू करने की कोशिश करते समय सांस्कृतिक और भाषा मतभेद बाधाएं पैदा कर सकतीं हैं. स्थानीय रीति-रिवाजों और कानूनी प्रक्रियाओं को एक अलग भाषा में समझना चुनौतीपूर्ण हो सकता है.

– लागत और समयः ऐसे मामलों में कस्टडी के आदेशों को लागू करना एक लंबी और महंगी प्रक्रिया भी हो सकती है. कानूनी फीस, यात्रा और अदालती कार्यवाही में होने खर्च बढ़ता है. इसके अलावा, दोनों देशों की कानूनी प्रक्रियाओं के कारण कोई एक राय बना पाने में लंबा समय भी लग सकता है.

– बच्चों के हितः ज्यादातर देसों में अदालतें कस्टडी के बारे में फैसला लेते समय बच्चे के हितों को प्राथमिकता देती हैं. हालांकि, ये तय करना कि बच्चे के हित क्या हैं, हर देश में अलग-अलग हो सकते हैं.

– माता-पिता की भूमिकाः सबसे महत्वपूर्ण चुनौतियों में से एक तब होती है, जब एक माता-पिता कस्टडी के आदेश का पालन करने से इनकार कर देते हैं.

– मीडिएशनः सीमा पार कस्टडी से जुड़े विवादों का समाधान करने के लिए अदालतें मीडिएशन का रुख भी कर सकती हैं.

अंजू के हैं दो बच्चे

अंजू उर्फ फातिमा राजस्थान के भिवाड़ी से पाकिस्तान पहुंची थी. भारत में उसकी शादी अरविंद नाम के शख्स से हुई थी. दोनों के दो बच्चे भी हैं. अंजू जयपुर जाने का बोलकर घर से निकली थी. लेकिन बाद में खबर आई कि वो पाकिस्तान चली गई है. वहां उसने नसरुल्लाह से निकाह कर लिया और नाम बदलकर फातिमा रख लिया.

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