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बांग्लादेश में 16 साल बाद 300 पूर्व सैनिकों की हुई रिहाई, जानिए क्यों हुए थे बंद

January 23, 2025

नई दिल्ली। पड़ोसी देश बांग्लादेश (Bangladesh) में गुरुवार को 178 पूर्व अर्धसैनिक बलों समेत बांग्लादेश राइफल्स (BDR) के कुल 300 पूर्व सैनिकों को जमानत पर जेल से रिहा (Released from jail on bail) कर दिया गया है। इन लोगों पर 16 साल पहले एक हिंसक विद्रोह में भाग लेने के आरोप थे, जिसमें दर्जनों वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों की हत्या कर दी गई थी।

दरअसल, 2009 में बांग्लादेश राइफल्स के उग्र सैनिकों ने ढाका में शुरू हुए और पूरे देश में फैले दो दिवसीय विद्रोह के दौरान 74 लोगों की हत्या कर दी थी। इस विद्रोह से तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार अस्थिर हो गई थी। हसीना ने विद्रोह से कुछ दिनों पहले ही दूसरी बार देश की बागडोर संभाली थी।

ढाक ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार, गुरुवार सुबह केरानीगंज स्थित ढाका सेंट्रल जेल और गाजीपुर स्थित काशिमपुर सेंट्रल जेल से कैदियों के बाहर आने का सिलसिला शुरू हो गया। इनमें से 178 बीडीआर सदस्यों को ढाका सेंट्रल जेल से और 126 को काशिमपुर सेंट्रल जेल से रिहा किया जाना है। इन पूर्व सैनिकों की रिहाई तब संभव हुई, जब रविवार को ढाका में स्पेशल ट्रिब्यूनल-1 के जज मोहम्मद इब्राहिम मिया ने सैन्य विद्रोह मामले में बीडीआर सदस्यों को जमानत दे दी।


दरअसल, रविवार को ढाका सेंट्रल जेल के अंदर अस्थायी तौर पर ये अदालत लगाई गई थी। मंगलवार को जेल अधिकारियों ने जमानत पाने वाले पूर्व सैनिकों की सूची जारी की। इसके बाद जमानत के लिए जरूरी दस्तावेज बुधवार को दोनों जेलों में भेज दिए गए। कानूनी प्रक्रिया पूरी करने के बाद ढाका सेंट्रल जेल प्रशासन ने गुरुवार को 178 कैदियों को रिहा करना शुरू कर दिया। रिहा किए गए बीडीआर सदस्यों के रिश्तेदार जेल के गेट पर उन्हें फूलों से स्वागत करते दिखे। लोग उन्हें मिठाई खिला रहे थे। अपने प्रियजन से मिलने के बाद कई लोग रोते हुए देखे गए।

इन सभी को पिलखाना नरसंहार मामले में 2009 में गिरफ्तार किया गया था। रविवार को, ढाका के विशेष न्यायाधिकरण-1 ने न्यायाधीश इब्राहिम मिया की अध्यक्षता में 300 लोगों को जमानत दे दी, जिनके खिलाफ कोई अपील लंबित नहीं थी। न्यायाधिकरण ने जमानत की सुनवाई में तेजी लाने के लिए केरानीगंज सेंट्रल जेल के अंदर अपना अस्थायी सत्र आयोजित किया था।

इसे बांग्लादेश राइफल्स विद्रोह या पिलखाना नरसंहार के रूप में भी जाना जाता है। 25 और 26 फरवरी 2009 को ढाका में बांग्लादेश राइफल्स की एक इकाई ने अपने ही अफसरों के खिलाफ विद्रोह कर दिया था और पिलखाना स्थित BDR मुख्यालय पर कब्जा कर लिया था। BDR मुख्य रूप से बांग्लादेश की सीमाओं की रखवाली करने वाला एक अर्धसैनिक बल है। विद्रोही सैनिकों ने तब बीडीआर के महानिदेशक शकील अहमद के साथ 56 अन्य सेना अधिकारियों और 17 नागरिकों की हत्या कर दी थी।

विद्रोही सैनिकों ने नागरिकों पर भी गोलीबारी की थी और अपने कई अधिकारियों और उनके परिवारों को बंधक बना लिया था। ढाका में कई संपत्योंति को नुकसान पहुंचाया और कीमती सामान लूट लिए थे। दूसरे दिन यह विद्रोह 12 अन्य शहरों और कस्बों में फैल गया था। हालांकि दो दिन बाद ही यह विद्रोह समाप्त हो गया क्योंकि विद्रोहियों ने शेख हसीना सरकार के सामने आत्मसमर्पण कर दिए थे। बाद में हसीना सरकार ने BDR के 800 से ज्यादा सैनिकों को गिरफ्तार कर लिया था और उन्हें अलग-अलग जेलों में बंद कर दिया था।

नवंबर 2013 में ढाका की मेट्रोपोलिटन कोर्ट ने 152 लोगों को मौत और 161 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। अन्य 256 लोगों को तीन से 10 साल की कारावास सुनाई गई थी। कोर्ट ने 277 लोगों को अपराध मुक्त कर दिया था। इस अदालती कार्यवाही की तब खूब आलोचना हुई थी। बड़ी बात ये है कि ये रिहाई तब हो सकी है, जब 15 साल के शासन के खिलाफ पिछले साल छात्रों के नेतृत्व में हुए विद्रोह के बाद शेख हसीना को पद छोड़कर भागना पड़ा था। आसन्न रिहाई की खबर फैलने के बाद सुबह से ही जेल में बंद लोगों के रिश्तेदार ढाका की जेलों में उमड़ पड़े।

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