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देश में 50 हजार से ज्यादा गांव खुले में शौच मुक्त, तेलंगाना में सबसे अव्‍वल

नई दिल्ली । स्वच्छ भारत मिशन- ग्रामीण (Swachh Bharat Mission- Rural) के दूसरे चरण में अब तक 50 हजार से ज्यादा गांव खुले में शौच मुक्त (ODF Plus) किए जा चुके हैं। शनिवार तक मिशन के तहत 50,000 गांव को खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ-प्लस) घोषित किए जा चुके हैं। उल्लेखनीय है कि एसबीएम-ग्रामीण, द्वितीय चरण फरवरी 2020 में शुरू किया गया था । मिशन का लक्ष्य दिसंबर 2024 तक देश के सभी गांवों को ओडीएफ प्लस बनाना है।

तेलंगाना में सबसे ज्यादा ओडीएफ गांव
देश में तेलंगाना में सबसे अधिक 13,960 ओडीएफ प्लस गांव हैं, उसके बाद 11,477 के साथ तमिलनाडु दूसरे नंबर पर और 3,849 गांव के साथ मध्य प्रदेश तीसरे नंबर पर है। ओडिशा में 2,991 गांव ओडिएफ हैं । वहीं, उत्तर प्रदेश में 2,605, उत्तराखंड में 2,603, हिमाचल में 2,573 गांव, कर्नाटक में 2,021 गांव और छत्तीसगढ़ में 1,936 गांव खुले में शौच मुक्त हैं।


लगभग आठ साल पहले, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती पर उनको श्रद्धांजलि के रूप में देश को खुले में शौच मुक्त बनाना था। उनके दूरदर्शी नेतृत्व में, दुनिया के सबसे बड़े व्यवहार परिवर्तन अभियान में देश एक साथ आया और संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित एसडीजी -6 लक्ष्य से 11 साल पहले 2 अक्टूबर 2019 तक अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लिया।

ओडीएफ प्लस गांव का क्या है पैरामीटर
ओडीएफ प्लस गांव वह है जो अपनी खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) स्थिति को बनाए रखता है, ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन सुनिश्चित करता है। इसमें यह सुनिश्चित करना शामिल है कि गांव के सभी घरों के साथ-साथ प्राथमिक विद्यालय, पंचायत घर और आंगनवाड़ी केंद्र में शौचालय की सुविधा हो और सभी सार्वजनिक स्थानों एवं 80 प्रतिशत घरों में अपने ठोस और तरल कचरे का प्रभावी ढंग से प्रबंधन किया जाता हो।

ओडीएफ प्लस बनने की दिशा में मिशन में कई घटक हैं
गोवर्धन योजना, ग्रेवाटर (रसोई, कपड़े धोने आदि से तरल अपशिष्ट) प्रबंधन, प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन, और मल कीचड़ प्रबंधन सहित बायोडिग्रेडेबल अपशिष्ट प्रबंधन। इसके अलावा, ओडीएफ प्लस गांवों को उनकी प्रगति दिखाने के लिए तीन श्रेणियों, एस्पायरिंग(आकांक्षी), राइजिंग और मॉडल में विभाजित किया गया है। आकांक्षी गांव वे हैं जिनके पास ठोस या तरल कचरे के प्रबंधन की व्यवस्था है। राइजिंग विलेज वे होते हैं जिनमें दोनों तरह के कचरे के प्रबंधन की व्यवस्था होती है, और एक मॉडल विलेज वह होता है जो न केवल अपने कचरे का प्रबंधन करता है, बल्कि स्वच्छता के सभी पैमानों पर खरा रहता है।

वित्तीय सहायता:
मिशन के दूसरे चरण में 1,40,881 करोड़ रुपये का बजट रखा गया है। इसमें से 60 प्रतिशत गांवों में पानी और स्वच्छता के लिए निर्धारित किया गया है। इस बजट में फिर से इजाफा करते हुए इसे 1.42 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया है। इस बजट के तहत जिलों को प्लास्टिक कचरा प्रबंधन इकाई स्थापित करने के लिए 16 लाख रुपये, मल कीचड़ उपचार संयंत्र के निर्माण के लिए 230 रुपये प्रति व्यक्ति, ग्राम पंचायतों (जीपी) को भी वित्तीय सहायता दी गई है, जिसमें 5,000 से कम आबादी वाले गांवों को ठोस अपशिष्ट प्रबंधन गतिविधियों के लिए प्रति व्यक्ति 60 रुपये और ग्रेवाटर प्रबंधन के लिए 280 रुपये प्रति व्यक्ति प्राप्त दिए जाते हैं।

इस बढ़े हुए परिव्यय के परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में बुनियादी ढांचे का निर्माण हुआ है जो ग्रामीण भारत में “संपूर्ण स्वच्छता” में तेजी लाएगा। इस फंड के तहत 1,70,000 से अधिक सामुदायिक खाद गड्ढे, 4,000 सामुदायिक बायोगैस संयंत्र, 60,000 संग्रह शेड, 2,80,000 सामुदायिक सोख गड्ढे, 2,99,000 जल निकासी प्रणाली और 20,000 सामुदायिक ग्रेवाटर प्रबंधन प्रणाली का निर्माण किया गया है और कई और योजनाएं निर्माणाधीन हैं।

कचरे से धन
स्वच्छ भारत मिशन के दूसरे चरण में कचरे से धन बनाने की दिशा में तेजी से काम किया जा रहा है। लोगों को इसके लिए प्रेरित करने के लिए विभिन्न योजनाओं के तहत अवसर प्रदान किए जा रहे हैं। अध्ययनों से पता चला है कि प्लास्टिक और कचरे से धन पैदा करना एक बड़ा अवसर लेकर आया है। इससे पर्यावरण संरक्षण में भी मदद मिलेगी। एसबीएम – जी, फेज II द्वारा सृजित आर्थिक अवसरों का लाभ उठाने के लिए महिलाएं इस संबंध में विभिन्न व्यवसायों की स्थापना कर रही हैं।

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