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narmada jayanti: आज धूमधाम से मनाई जा रही है नर्मदा जयंती, जानें पूजा विधि

February 19, 2021

आज यानि 19 फरवरी को मनाई जा रही है नर्मदा जयंती (narmada jayanti ) । धार्मिक मान्‍यता के अनुसार हिंदू पंचांग के अनुसार माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मां नर्मदा का जन्मदिवस मनाया जाता है।अमरकंटक सहित मध्यप्रदेश में आज नर्मदा जयंती धूमधाम से मनाई जा रही है। आपको जानकारी के लिए बता दें कि गंगा के समान ही नर्मदा नदी में स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है, पाप नष्ट होते हैं। नर्मदा जयंती के अवसर पर नर्मदा के उद्गम स्थल अमरकंटक में हर साल की इस बार भी विशेष कार्यक्रमों का आयोजन किया गया है। 

शुभ मुहूर्त
माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी इस बार 18 फरवरी से ही शुरू हो रही है, जो 19 फरवरी 10:59 तक रहेगी। इस दिन सुबह ब्रह्म मूहुर्त से लेकर सुबह 10:59 तक स्नान के लिए शुभ मूहुर्त है। इस दौरान नर्मदा (narmada)नदी में स्नान करने से विशेष पुण्यलाभ मिलता है।

ऐसे करें मां नर्मदा (Maa narmada) की पूजा
नर्मदा (Maa narmada) नदी को गंगा की तरह पर पवित्र नदी माना जाता है। मां नर्मदा (Maa narmada) का दर्शन मात्र से पुष्य प्राप्त होता है। नर्मदा जयंती (Maa narmada) के दिन मां नर्मदा (Maa narmada) की पूजन सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक की जा सकती है। नदी में स्नान कर फूल, अक्षत, कुमकुम, धूप से मां नर्मदा (Maa narmada) की पूजन-अर्चन करना चाहिए। इस नर्मदा नदी में दीपदान का विशेष महत्व है। नर्मदा नदी के जल में दीपदान करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।



मां नर्मदा (Maa narmada) की जन्म पौराणिक कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक बार भगवान शिव तपस्या में लीन थे, तब उनके पसीने से नर्मदा (narmada) का जन्म हुआ। उस समय भगवान शिव मैखल पर्वत पर थे। उन्होंने उस कन्या का नाम नर्मदा ( narmada) रखा। जिसका अर्थ होता है सुख प्रदान करने वाली। भगवान शिव ने उस कन्या को आशीष दिया कि जो कोई तुम्हारा दर्शन करेगा, उसका कल्याण होगा। वह मैखल पर्वत पर उत्पन्न हुई थीं, इसलिए वह मैखल राज की पुत्री भी कहलाती हैं।

एक अन्य कथा के अनुसार, मैखल पर्वत पर भगवान शिव से दिव्य कन्या नर्मदा प्रकट हुई थीं। देवताओं ने उनका नाम नर्मदा (narmada) रखा। उन्होंने हजारों वर्ष तक भगवान शिव की तपस्या की, जिससे भोलेनाथ प्रसन्न हुए। फिर उन्होंने नर्मदा ( narmada) को पापनाशिनी का आशीष दिया। साथ ही उनको यह भी वरदान ​मिला कि उनके तट पर सभी देवी देवताओं का वास होगा और नदी के सभी पत्थर शिवलिंग स्वरूप में पूजे जाएंगे।

नोट- उपरोक्त दी गई जानकारी व सूचना सामान्य उद्देश्य के लिए दी गई है। हम इसकी सत्यता की जांच का दावा नही करतें हैं यह जानकारी विभिन्न माध्यमों जैसे ज्योतिषियों, धर्मग्रंथों, पंचाग आदि से ली गई है । इस उपयोग करने वाले की स्वयं की जिम्मेंदारी होगी ।

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