
नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court) ने दुर्लभ फैसले (Rare decisions)में एक व्यक्ति के खिलाफ चल रहे POCSO मामले(POCSO cases) को रद्द कर दिया। यह मामला उस शख्स से जुड़ा था जिसने नाबालिग लड़की से संबंध बनाए थे और बाद में उससे विवाह कर लिया। न्यायालय ने कहा कि यह अपराध वासना का नतीजा नहीं, बल्कि प्रेम का था। जज दीपांकर दत्ता और जज एजी मसीह की पीठ ने कहा कि पीड़िता अब आरोपी की पत्नी है। उसने खुद बताया कि वे विवाहित हैं, उनका एक साल का पुत्र है और वे सुखी जीवन जी रहे हैं। लड़की के पिता ने भी गुहार लगाई कि उनकी बेटी के पति के खिलाफ चल रही आपराधिक कार्यवाही समाप्त की जाए।
पीठ ने कहा, ‘हम जानते हैं कि अपराध केवल किसी व्यक्ति के खिलाफ नहीं, बल्कि समाज के खिलाफ भी होता है। फिर भी न्याय करते समय परिस्थितियों की संवेदनशीलता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। अदालत को हर मामले में सख्ती और करुणा के बीच संतुलन बनाना होता है।’ कोर्ट ने यह भी कहा कि समाज के हित में विवादों को सुलझा देना भी आवश्यक है। जज दत्ता ने अपने फैसले में लिखा कि अदालत को न्याय, निवारण और पुनर्वास – तीनों के बीच संतुलन बनाए रखना होता है। संविधान निर्माताओं ने सुप्रीम कोर्ट को यह असाधारण शक्ति इसलिए दी थी ताकि कठोर कानून के प्रयोग से किसी के साथ अन्याय न हो।
फैसला सुनाते हुए अदालत ने दिए ये तर्क
अदालत ने कहा, ‘कानून के अनुसार यह अपराध गंभीर है। सामान्य परिस्थितियों में समझौते के आधार पर इसे रद्द नहीं किया जा सकता। लेकिन इस मामले में पत्नी की दया और सहानुभूति की पुकार को अनसुना करना न्याय के उद्देश्यों की पूर्ति नहीं करेगा।’ पीठ ने माना कि आरोपी और पीड़िता अब कानूनी रूप से विवाहित हैं और उनका परिवार बस चुका है। एससी की पीठ ने कहा, ‘हमने पाया कि यह अपराध वासना का नहीं, बल्कि प्रेम का नतीजा था। पीड़िता स्वयं अपने पति के साथ शांतिपूर्ण और स्थिर पारिवारिक जीवन जीना चाहती है।’
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