
नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court) ने चुनाव लड़ने वाले अपराधी छवि(criminal image) के उम्मीदवारों की लेकर अहम फैसला(important decision) सुनाया। अदालत ने कहा कि हर कैंडिडेट को नॉमिनेशन फॉर्म(Nomination Form) में अपनी सारी पुरानी दोषसिद्धियां बतानी होंगी। चाहे अपराध छोटा हो, या फिर बाद में ऊपरी कोर्ट ने सजा रद्द कर दी हो। जस्टिस पीएस नरसिम्हा और एएस चंदूरकर की पीठ ने कहा, ‘खुलासा न करना मतदाता के हक का हनन है। इससे वोटर सही चुनाव नहीं कर पाता।’ इसे छुपाने पर नामांकन रद्द हो सकता है।
मध्य प्रदेश के भीकनगांव में नगर पार्षद पूनम इसी नियम की शिकार हुईं। उन पर चेक बाउंस (धारा 138) का केस था, जिसमें ट्रायल कोर्ट ने 1 साल जेल और जुर्माने की सजा दी थी। उन्होंने नामांकन में ये बात छुपा ली। बाद में हाई कोर्ट ने सजा पलट दी, लेकिन पूनम ने दावा किया कि सजा खत्म हो गई, तो बताने की जरूरत नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी और कहा कि रद्द सजा भी बतानी थी।
अदालत ने अपने फैसले में क्या कहा
जस्टिस चंदूरकर ने लिखा, ‘दोषसिद्धि छुपाना दमन है। यह मतदाता के स्वतंत्र अधिकार में बाधा डालता है।’ कोर्ट ने मध्य प्रदेश नगर पालिका निर्वाचन नियम 1994 के नियम 24-ए (1) का हवाला दिया, जिसमें आपराधिक इतिहास बताना अनिवार्य है। पूनम की नामांकन स्वीकृति गलत ठहराई गई। नतीजा यह हुआ कि उनका चुनाव रद्द हो गया और सीट खाली रही। बाद में हुए उपचुनाव में वो हार भी गईं। ये फैसला साफ करता है कि अपराध की गंभीरता मायने नहीं रखती, खुलासा जरूरी है। मतदाता को उम्मीदवार का पूरा इतिहास जानने का हक है।
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