
नई दिल्ली। बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Elections 2025) में एनडीए (NDA) की शानदार जीत के साथ केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान (Union Minister Dharmendra Pradhan) के राजनीतिक प्रबंधन कौशल पर फिर एक बार मुहर लगी है। धर्मेंद्र प्रधान को उनकी पार्टी में एक ऐसे चुनाव प्रबंधक के रूप में जाना जाता है जो लंबे समय से बिहार की राजनीति से जुड़े रहे हैं। 2015 में बीजेपी से अलग होने के बाद एक सरकारी कार्यक्रम में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Chief Minister Nitish Kumar) ने धर्मेंद्र प्रधान को स्नेहपूर्वक “सह-बिहारी” कहा था। ओडिशा से होने के बावजूद उनके और नीतीश कुमार के बीच यह निकटता अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दिनों से चली आ रही है। धर्मेंद्र प्रधान के पिता देवेंद्र प्रधान भी वाजपेयी सरकार में राज्य मंत्री रह चुके हैं, और तभी से दोनों परिवारों के बीच अच्छे संबंध बने रहे।
धर्मेंद्र प्रधान का बिहार से जुड़ाव 2010 विधानसभा चुनाव से शुरू हुआ, जब उन्होंने करीब दो महीने राज्य में बिताए। 2012 में उन्हें बिहार से राज्यसभा भेजा गया, जिससे यह रिश्ता और मजबूत हुआ। तब से अब तक वे बिहार के पांच बड़े चुनावों (लोकसभा और विधानसभा) की रणनीति में अहम भूमिका निभा चुके हैं।
जब 2014 में नीतीश कुमार एनडीए से अलग हुए थे, तब उन्हें इस निर्णय पर पुनर्विचार करने की सलाह देने वालों में धर्मेंद्र प्रधान भी शामिल थे। 2022 में भी जब फिर से राजनीतिक अस्थिरता की अटकलें थीं तो धर्मेंद्र प्रधान ने ही कुमार से मुलाकात की थी।
धर्मेंद्र प्रधान का नीतीश के साथ मजबूत तालमेल और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा गृह मंत्री अमित शाह के साथ उनका भरोसेमंद संबंध दोनों ने मिलकर उन्हें बिहार चुनाव की जिम्मेदारी फिर सौंपे जाने में निर्णायक भूमिका निभाई। उन्होंने इस बार भी बीजेपी-एनडीए को जीत दिलाकर अपना कद और मजबूत किया है।
देश के सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले पेट्रोलियम मंत्री रहने के बाद वे अब शिक्षा मंत्रालय संभाल रहे हैं। एक ऐसा मंत्रालय जो RSS की विशेष रुचि और संवेदनशीलता के कारण अधिक राजनीतिक महत्व रखता है।
2017 के बाद से तमाम चुनावों में धर्मेंद्र प्रधान ने बीजेपी के लिए बड़ी जीतें दिलाई हैं। 2022 उत्तर प्रदेश चुनाव में उनकी रणनीति को बड़ी सफलता मिली। उत्तराखंड और अन्य राज्यों में भी वे पार्टी को जीत दिलाने में सफल रहे। नंदीग्राम (2021) में उन्होंने बीजेपी रणनीति की निगरानी की। हालांकि वह सीट ममता बनर्जी के हाथों चली गई। कर्नाटक में पार्टी को नुकसान जरूर हुआ पर इससे उनके समग्र रिकॉर्ड पर कोई बड़ा असर नहीं पड़ा।
ओडिशा में बड़ा उदय और हरियाणा में कमाल
अपने गृह राज्य ओडिशा में बीजेडी के खिलाफ आक्रामक अभियान चलाकर उन्होंने न सिर्फ खुद जीत दर्ज की, बल्कि राज्य में बीजेपी के विस्तार की आधारशिला भी रखी। हाल ही में हरियाणा में कठिन चुनावी चुनौती के बीच बीजेपी को जीत दिलाने से पार्टी ने उनकी रणनीतिक क्षमता पर और भरोसा किया है। खासकर ऐसे समय में जब 2024 लोकसभा चुनाव में पार्टी को बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ा था।
बिहार, उत्तर प्रदेश, ओडिशा और हरियाणा में जीत के साथ धर्मेंद्र प्रधान अब भाजपा के शीर्ष रणनीतिकारों में शामिल हो चुके हैं। बिहार में इस बार की जीत उनकी रणनीतिक यात्रा में एक और चमकदार पंख जोड़ती है। आने वाले चुनावों में उनकी भूमिका और भी विस्तृत होने की संभावना है। आपको बता दें कि उनका नाम भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के रेस में शामिल है।
©2025 Agnibaan , All Rights Reserved