
नई दिल्ली। भारत (India) में बौद्ध समुदाय (Buddhist Community) पर पर्सनल हिंदू कानून (Hindu Laws) के प्रावधान लागू होने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में याचिका दायर की गई है। याचिका में कहा गया है कि यह बौद्धों के मौलिक अधिकारों के खिलाफ है और यह धर्म (Dharma) का पालन करने की आजादी के भी खिलाफ है। सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को विधि आयोग (Law Commission) के पास भेज दिया है और बौद्ध संगठन की याचिका को प्रतिनिधित्व के तौर पर मानने को कहा है।
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने बुद्धिस्ट पर्सनल लॉ एक्शन कमेटी की याचिका पर सुनवाई के दौरान विधि आयोग को इस याचिका को प्रतिनिधित्व के तौर पर मानने और मौजूदा कानून पर विचार करने को कहा है। याचिका में कहा गया है कि मौजूदा कानून के कई प्रावधान बौद्ध समुदाय के मौलिक अधिकारों और सांस्कृतिक प्रथाओं के खिलाफ हैं। याचिका में कानून में सांविधानिक तौर पर बदलाव की मांग की गई है। देश में बौद्ध समुदाय पर भी पर्सनल हिंदू कानून, हिंदू मैरिज एक्ट 1955, हिंदू सक्सेशन एक्ट, 1956 और हिंदू माइनोरिटी एंड गार्जियनशिप एक्ट 1956, हिंदू एडोप्शन और मेंटिनेस एक्ट 1956 लागू होते हैं। संविधान के अनुच्छेद 25 में बौद्ध, जैन, सिख को भी हिंदू के तौर पर परिभाषित किया गया है।
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