
डेस्क: पाकिस्तान (Pakistan) में हाल ही में किए गए संवैधानिक संशोधनों (Constitutional Amendments) ने सत्ता संतुलन को पूरी तरह बदल दिया है. नए बदलावों के बाद सेना, खासकर मौजूदा आर्मी चीफ जनरल आसिम मुनीर (General Asim Munir) बेहद प्रभावशाली हो गए हैं. इसके उलट न्यायपालिका की शक्तियों में स्पष्ट रूप से कटौती दिखाई देती है. इस फैसले ने कई संस्थाओं के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र को भी चिंतित कर दिया है.
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय के प्रमुख वोल्कर टर्क ने शुक्रवार को जारी बयान में चेतावनी दी कि पाकिस्तान में जल्दबाजी में किए गए ये संशोधन न्यायपालिका की स्वतंत्रता को गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं. उनके अनुसार, इस कदम से सेना का दखल बढ़ने और नागरिक सरकार की भूमिका कमजोर होने की आशंका मजबूत होती है, जो कानून के शासन पर गंभीर सवाल खड़े करता है.
टर्क ने कहा कि यह संशोधन बिना किसी सार्वजनिक चर्चा, कानूनी समुदाय से सलाह या व्यापक बहस के लागू कर दिया गया, जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया के विपरीत है. उनके मुताबिक, यह बदलाव उन संस्थाओं के खिलाफ जाते हैं जो पाकिस्तान में मानवाधिकारों और कानून के शासन की रक्षा करती हैं. विशेष रूप से, न्यायाधीशों की स्वतंत्रता पर इन संशोधनों के असर को लेकर गहरी चिंता जताई गई है.
बयान में कहा गया है कि जजों की नियुक्ति और तबादले से जुड़े नए प्रावधान न्यायपालिका की संरचनात्मक स्वतंत्रता को कमजोर कर सकते हैं. इससे राजनीतिक हस्तक्षेप बढ़ने और कार्यपालिका के नियंत्रण में न्यायपालिका आने का खतरा है. वोल्कर टर्क ने जोर देकर कहा कि अदालतों को अपने फैसलों में किसी भी राजनीतिक दबाव से पूरी तरह मुक्त रहना चाहिए. उन्होंने 27वें संशोधन पर विशेष आपत्ति जताते हुए कहा कि यह राष्ट्रपति और फील्ड मार्शल को आजीवन आपराधिक मुकदमों और गिरफ्तारी से सुरक्षा देता है. उनके अनुसार, यह कदम मानवाधिकार सिद्धांतों और लोकतांत्रिक नियंत्रण के ढांचे के खिलाफ है और पाकिस्तान के लोकतांत्रिक भविष्य पर दूरगामी असर डाल सकता है.
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