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कोविड-19 महामारी में 1596 डॉक्टरों ने गंवाई जान, मुआवजा सिर्फ 475 को, सुप्रीम कोर्ट ने लिया बड़ा फैसला

December 12, 2025

नई दिल्ली: कोविड-19 महामारी (COVID-19 pandemic), भारत की सबसे बड़ी स्वास्थ्य आपदाओं में से एक रही है. ये वही समय था जब देश के हर शख्स की नजरें स्वास्थ्य सेवाओं पर टिक गईं थीं. अस्पतालों में बेड की कमी, ऑक्सीजन संकट और संक्रमित मरीजों की बाढ़ के बीच सबसे आगे जो लोग खड़े थे, वे थे डॉक्टर, नर्स, पैरामेडिकल स्टाफ और अन्य स्वास्थ्यकर्मी. इस लड़ाई में हजारों स्वास्थ्यकर्मियों ने अपनी जान जोखिम में डाली और कई ने अपनी जान तक गंवा दी. लेकिन महामारी के बीत जाने के बाद एक बड़ा सवाल उभर कर सामने आया, क्या जिन डॉक्टरों ने अपनी जान दी, उनके परिवारों को वास्तव में वह सम्मान और सुरक्षा मिली, जिसका वादा किया गया था?

सुप्रीम कोर्ट ने इसी मामले पर गुरुवार को ऐतिहासिक फैसला देते हुए कहा कि कोविड-19 महामारी के दौरान ड्यूटी करते हुए जान गंवाने वाले सभी डॉक्टरों के परिवार को ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना’ के तहत 50 लाख रुपये का बीमा देना होगा. पीठ ने कहा कि महामारी के समय डॉक्टरों की सेवाएं शासन की ओर से औपचारिक रूप से मांगी गई थीं, इसलिए इस अहम मुद्दे पर सरकारी और निजी डॉक्टरों में फर्क नहीं समझा जाना चाहिए.

मार्च 2020 में केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज (PMGKP) के तहत स्वास्थ्यकर्मियों के लिए 50 लाख रुपये के बीमा कवर की घोषणा की थी. इसका उद्देश्य स्पष्ट था, जो डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी कोविड-19 के इलाज के दौरान संक्रमण का शिकार होकर जान गंवाते हैं, उनके परिवारों को आर्थिक सुरक्षा दी जाए.


यह योजना केवल सरकारी अस्पतालों तक सीमित नहीं थी, बल्कि इसमें समुदाय स्तर पर काम करने वाले स्वास्थ्यकर्मी और निजी क्षेत्र के हेल्थ प्रोफेशनल्स को भी शामिल किए जाने की बात कही गई थी. उस समय सरकार की ओर से यह संदेश दिया गया कि चाहे डॉक्टर सरकारी हों या निजी, अगर वे महामारी के दौरान सेवा में हैं, तो देश उनके साथ खड़ा है.

योजना की घोषणा के बाद भी जमीनी स्तर पर कई तरह की अस्पष्टताएं सामने आईं. सबसे बड़ा सवाल यही था कि क्या निजी अस्पतालों और निजी क्लीनिकों में काम करने वाले डॉक्टर इस बीमा के दायरे में आएंगे या नहीं. कई मामलों में बीमा कंपनियों और प्रशासन ने यह तर्क दिया कि यदि डॉक्टर किसी सरकारी आदेश के तहत या किसी अधिसूचित कोविड अस्पताल में ड्यूटी पर नहीं थे, तो उन्हें योजना का लाभ नहीं दिया जा सकता. इसी भ्रम के चलते सैकड़ों परिवार वर्षों तक मुआवजे के लिए भटकते रहे.

मार्च 2021 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जिसने इस भ्रम को और गहरा कर दिया. अदालत ने कहा कि निजी अस्पतालों के डॉक्टर तब तक प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत बीमा के हकदार नहीं हैं, जब तक उनकी सेवाएं राज्य या केंद्र सरकार द्वारा औपचारिक रूप से नहीं ली गई हों.

यह फैसला किरण भास्कर सुरगड़े नामक महिला की याचिका पर आया था. उनके पति ठाणे में निजी क्लिनिक चलाते थे और कोविड-19 से संक्रमित होकर 2020 में उनकी मृत्यु हो गई थी. जब परिवार ने बीमा का दावा किया, तो इंश्योरेंस कंपनी ने यह कहकर आवेदन खारिज कर दिया कि वह क्लिनिक कोविड अस्पताल के रूप में अधिसूचित नहीं था. बॉम्बे हाईकोर्ट के इस निर्णय ने हजारों निजी डॉक्टरों के परिवारों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया.

11 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने इस पूरे मामले में ऐतिहासिक टिप्पणी करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया. न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने साफ कहा कि कोविड-19 के दौरान ड्यूटी पर मौजूद जिन निजी डॉक्टरों की मौत हुई, उनके परिवार प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत 50 लाख रुपये के बीमा के हकदार हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महामारी के दौरान लागू किए गए कानून और नियम इसलिए थे ताकि डॉक्टरों की सेवाएं बिना किसी बाधा के ली जा सकें. बीमा योजना का उद्देश्य भी यही था कि फ्रंटलाइन पर काम कर रहे डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों को यह भरोसा दिया जाए कि देश उनके साथ खड़ा है.

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि प्रत्येक बीमा दावा कानून और साक्ष्यों के आधार पर तय किया जाएगा. दावेदार को यह साबित करना होगा कि डॉक्टर की मृत्यु कोविड-19 ड्यूटी के दौरान हुई थी. इसका उद्देश्य फर्जी दावों को रोकना है, लेकिन साथ ही यह भी सुनिश्चित करना है कि वास्तविक हकदारों को न्याय मिले.

इस पूरे मुद्दे के बीच सूचना के अधिकार (RTI) के जरिए सामने आए आंकड़े और भी चिंताजनक तस्वीर पेश करते हैं. कन्नूर के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. के वी बाबू द्वारा दायर एक आरटीआई के अनुसार, अक्टूबर 2023 तक केवल 475 डॉक्टरों के परिवारों को ही मुआवजा दिया गया था. जबकि इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) के अनुसार, पहली और दूसरी लहर में कुल 1,596 डॉक्टरों की मौत हुई. इस हिसाब से देखा जाए तो केवल 21 प्रतिशत डॉक्टरों के परिवारों को ही बीमा राशि मिल पाई.

आरटीआई के जवाब के अनुसार, अब तक 2,244 स्वास्थ्यकर्मियों के परिवारों को कुल 1,122 करोड़ रुपये का मुआवजा दिया गया है. इसमें से 237.5 करोड़ रुपये 475 डॉक्टरों के परिवारों को मिले, जबकि 1,769 अन्य स्वास्थ्यकर्मियों के परिवारों को 884.5 करोड़ रुपये दिए गए. इसका अर्थ यह है कि कुल मुआवजे में डॉक्टरों का हिस्सा मात्र 21 प्रतिशत के आसपास है, जबकि महामारी के दौरान डॉक्टर सबसे अधिक जोखिम में थे.

सरकार ने संसद में यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि कोविड-19 से मौतों का पेशेवार आंकड़ा केंद्र स्तर पर उपलब्ध नहीं है. ऐसे में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने स्वयं राज्यवार आंकड़े जुटाए. पहली लहर में तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों में डॉक्टरों की बड़ी संख्या में मौतें हुईं जबकि दूसरी लहर में दिल्ली, बिहार, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल सबसे ज्यादा प्रभावित रहे. इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि डॉक्टरों की मौत किसी एक राज्य या क्षेत्र तक सीमित नहीं थी, बल्कि पूरे देश में फैली हुई थी.

डॉ. बाबू का कहना है कि कई डॉक्टर ऐसे थे, जिन्हें मजबूरी में अपने क्लीनिक खोलने पड़े. कई राज्यों में एपिडेमिक एक्ट के तहत यह अनिवार्य कर दिया गया था कि मेडिकल प्रतिष्ठान बंद नहीं होंगे. ऐसे में यह कहना कि निजी डॉक्टर ‘सरकारी ड्यूटी’ पर नहीं थे, न केवल तकनीकी बहाना है बल्कि नैतिक रूप से भी गलत है.

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