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बिक गई पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस, आरिफ हबीब कंसोर्टियम ने 4,317 करोड़ रुपए में खरीदा

December 23, 2025

नई दिल्ली: पाकिस्तान की राष्ट्रीय एयरलाइन (PIA) को आरिफ हबीब कंसोर्टियम ने 135 अरब पाकिस्तानी रुपये (4,317 करोड़ रुपए) में खरीद लिया है. कंपनी ने PIA के लिए सबसे ऊंची बोली लगाई थी. वहीं लकी सीमेंट ने 101.5 अरब पाकिस्तानी रुपये (3,246 करोड़ रुपए) और एयरब्लू ने 26.5 अरब पाकिस्तानी रुपये (847 करोड़ रुपए) की बोली लगाई थी. आरिफ हबीब ग्रुप चार कंपनियों का समूह है, जिसमें फर्टिलाइजर से लेकर एजुकेशन सेक्टर तक की कंपनियां शामिल हैं. आरिफ हबीब ग्रुप को पाकिस्तान के सबसे अनुभवी कॉरपोरेट घरानों में गिना जाता है.

पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस (PIA) ने 75% शेयरों की नीलामी शुरू की थी. नीलामी से मिलने वाली कुल राशि का 92.5% एयरलाइन के सुधार और पुनर्गठन पर खर्च किया जाएगा. PIA के पास 32 विमान है, जिनमें एयरबस A320, बोइंग 737, एयरबस A330 और बोइंग 777 जैसे मॉडल शामिल हैं.


PIA की हालत कई साल से खराब है. इसकी वजह है खराब मैनेजमेंट, फ्लाइट्स की कमी, यात्रियों की शिकायतें और भारी कर्ज. PIA की साख को सबसे बड़ा झटका 2020 के कराची विमान हादसे से लगा था. उस हादसे के बाद पता चला कि PIA के 260 से ज्यादा पायलट के लाइसेंस संदिग्ध या फर्सी हैं. कई देशों ने PIA की फ्लाइट्स पर रोक लगा दी और कमाई लगभग ठप हो गई.

घाटाे की वजह से सरकार के लिए एयरलाइंस को संभालना मुश्किल हो गया. दूसरी तरफ पाकिस्तान सरकार पर IMF का दबाव है. पाकिस्तान को IMF से करीब 7 अरब डॉलर का राहत पैकेज चाहिए और बदले में IMF चाहता है कि घाटे में चल रही सरकारी कंपनियों को निजी हाथों में सौंपा जाए.

PIA की प्राइवेटाइजेशन कमेटी के एडवाइजर मुहम्मद अली के मुताबिक, यह कदम सरकार के सुधार एजेंडा का हिस्सा है. सरकार का उद्देश्य PIA को सिर्फ बेचना नहीं, बल्कि उसे आत्मनिर्भर और मजबूत बनाना है. सरकार का मानना है कि PIA के निजीकरण से देश में विदेशी और घरेलू निवेश को बढ़ावा मिलेगा. मुहम्मद अली ने बताया कि भुगतान का दो-तिहाई हिस्सा शुरुआत में और एक-तिहाई बाद में लिया जा सकता है. इसके अलावा बोली के बाद दो नए पार्टनर्स जोड़ने की भी अनुमति दी गई है.

नीलामी प्रक्रिया में पहले सेना से जुड़ी फौजी फर्टिलाइजर भी लिस्ट में थी. मगर आखिरी वक्त में कंपनी ने अपना नाम वापस ले लिया. मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि अगर सेना से जुड़ी कंपनी बोली जीतती, तो IMF को गलत संदेश जाता. IMF साफ चाहता है कि PIA पूरी तरह निजी हाथों में जाए, न कि अप्रत्यक्ष रूप से सरकारी या सैन्य नियंत्रण में.

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