
बच्चे (Children) तड़प रहे हैं… बूढ़े निढाल हो रहे हैं.. मां-बाप (parents) आंसू (tears)बहा रहे हैं… हम शहर को आसमान से ऊंचा बता रहे हैं और लोगों को जहरीला पानी पिला रहे हैं.. कौन कहेगा इस शहर को प्रदेश की व्यावसायिक राजधानी… सीने पर पूरे देश का स्वच्छ शहर होने का तमगा लगाकर घूमने वाले और खिताब लेकर इठलाने वाले महापौर से लेकर मंत्री-मुख्यमंत्री के लिए यह चिंतित होने वाली बात है कि हम अपने शहर के बाशिंदों को स्वच्छ पानी तक नहीं पिला सकते हैं… स्वच्छ तो दूर ऐसा पानी भी नहीं दे सकते हैं कि वो पीकर अस्पताल तो नहीं पहुंचें… शहर को नंबर वन बनाने के वादे करने वाले नेताओं और जिम्मेदारों के लिए यह डूब मरने वाली बात है कि हम जहरीले पानी के कगार पर पहुंच गए हैं… जिस शहर के प्रभार का भार मुख्यमंत्री ने उठाया… जिस शहर के नगरीय प्रशासन मंत्री जिस इलाके से चुनकर आए वहां यह हादसा हो जाए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए, क्योंकि शहर के महापौर अपनी पूरी परिषद और पार्षदों के साथ केवल फीते काटते नजर आते हैं… जिस शहर के अधिकारियों का फौजपाटा दिन-रात वसूली करते औैर निगम का खजाना भरते नजर आए… जिस शहर में नाले को नदी बनाने की झूठी कोशिश में करोड़ों हड़पे जाएं… जिस शहर में बिना नाला टेपिंग के तमगा झपट लिया जाए, उस शहर में नाली का पानी यदि पीने के पानी में मिलकर घरों तक पहुंच जाए तो कोई बड़ी बात नहीं… इस शहर में तो गटर को गंगा समझा जाता है.. कीचड़भरा पानी नालियों से होकर नलों में आता है और ऐसे पानी का भी टैक्स जलकर के रूप में वसूला जाता है और जो कर न चुकाए उसका कनेक्शन काट दिया जाता है… कर न चुकाने वाले का नाम राजबाड़े पर पोस्टर लगाकर टांगा जाता है… आज वो वक्त आया है जब जहरीला पानी पिलाकर टैक्स वसूलने वाले जिम्मेदारों का नाम उस तख्ती पर टांगा जाए और उन्हें बेशर्मी के खिताब से नवाजा जाए… और उनसे कहा जाए-डूब मरो चुल्लूभर जहरीले पानी….
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