कोलकाता। उत्तर 24 परगना जिला के राजहाट इलाके में 45 साल के हुज़ाईफा अपने घर के कोने में बैठे थे। मिट्टी के घर में रहने वाले हुज़ाईफा थोड़े थके नजर आ रहे थे। वो झाड़ू बांधने का काम करते हैं। वो जुमे के पहले अपना सारा काम खत्म करना चाहते हैं जिससे कि वो थोड़ा एक्सट्रा कमाई कर सके। वैसे उनका पेशा मछली पकड़ना है। हालांकि वो हैंडिक्राफ्ट का भी अच्छा काम करते हैं।
लिहाजा इन पैसों से वो अपने दो बेटियों और तीन बेटों का ठीक-ठाक तरीके से देखभाल कर लेते हैं। हुज़ाईफा की पत्नी खादिगा बीड़ी बनाने का काम करती हैं। बिखरे हुए झाड़ू से कुछ मीटर की दूरी पर, हुज़ाईफा के बड़े बेटे इमरान एक दूसरी मशीन पर काम कर थे।जिसकी आवाज़ से चारों तरफ शोर था। इस बीच हुज़ाईफा के दोस्त शमशाद हुसैन का कॉल आता है। फोन पर हुज़ाईफा कहते हैं, ‘आप चिंता न करे। मैं भाईजान का समर्थन करूंगा। मैं आपसे शाम को बात करूंगा। अभी थोड़ा काम में बिजी हूं।’
हुज़ाईफा दशकों तक CPI (M) के कट्टर समर्थक थे। लेकिन लेफ्ट के धीरे-धीरे खत्म होने के बाद हुज़ाईफा जैसे लोग अब अब्बास सिद्दीकी की लोकप्रियता की तरफ प्रभावित हो रहे हैं। बता दें कि हाल के दिनों में सिद्दीकी को लेकर बांग्लादेश की सीमा के पास रह रहे लोगों में विश्वास बढ़ा है। इनमें मुसलमान से लेकर दलित और फिर आदिवासी शामिल हैं।
हुज़ाईफा ने बताया, ‘भाईजान हमारा हाल-चाल पूछते रहते हैं। उन्होंने हमें अच्छे नसीब के लिए ताबीज भी दिए। हम भाईजान के साथ हैं ताकि हम इस दुनिया को छोड़ने के बाद जन्नत जा सकें। वह भारतीय धर्मनिरपेक्ष मोर्चा के बैनर तले चुनाव लड़ रहे हैं और इस बार हम उनका समर्थन करने जा रहे हैं।’
उन्होंने आगे कहा, ‘मैंने CPI(M) को सालों तक वोट दिया, लेकिन मुसलमानों के कल्याण को लेकर कुछ नहीं हुआ। यही राजनीति अब तृणमूल कांग्रेस भी खेल रही है। भारतीय जनता पार्टी अब सभी दलों से ज्यादा खतरनाक है। इसलिए, हम अब्बास सिद्दीकी के अनुयायी बन गए हैं और हम उन पार्टियों को वोट देंगे, जिन्हें भाईजान का समर्थन प्राप्त होगा।’
सिद्दीकी का यू-टर्न : हालांकि सिद्दाकी ने एक बार फिर से यू टर्न लिया। उनकी पार्टी इंडियन सेक्युलर फ्रंट (ISF) ने कांग्रेस-वाम मोर्चा गठबंधन में शामिल होने का ऐलान कर दिया। ये पूछे जाने पर कि उन्होंने असदुद्दीन ओवैसी को क्यों धोखा दिया, सिद्दीकी ने कहा, ‘हमने उन्हें धोखा नहीं दिया है। वो फुरफुरा शरीफ में मुझसे मिलने आए थे। इसके बाद वो वापस हैदराबाद चले गए। इसके बाद उनकी तरफ से कोई बातचीत नहीं हुई। उसके बाद किसी स्थानीय नेता ने भी मुझसे संपर्क नहीं किया। इसलिए हमने लेफ्ट-कांग्रेस के साथ आगे बढ़ने का फैसला किया है।
सिद्दीकी की पढ़ाई : सिद्दीकी का जन्म हुगली के फुरफुरा शरीफ में हुआ था और उन्होंने अपनी पढ़ाई नारायणी स्कूल रामपारा में फुरफुरा के पास की। अपने पिता अली अकबर सिद्दीकी से प्रेरित होकर, उन्होंने खुद को इस्लामी शिक्षा ली और उत्तर 24 परगना जिले के तेतुलिया मदरसा से पढ़ाई की। उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा आलिया विश्वविद्यालय से हदीस में पूरी की। उनके भाई नौशाद नवगठित भारतीय धर्मनिरपेक्ष मोर्चा के अध्यक्ष हैं, जबकि उनकी मां एक गृहिणी हैं।
मुस्लिम वोट फैक्टर : बंगाल में लगभग 31 प्रतिशत मुस्लिम वोटर हैं। ऐसा कहा जाता है कि राज्य में मुस्लिम वोटर जिस पार्टी की तरफ झुका, सत्ता लगभग उसके हाथ में ही पहुंचती है। साल 2011 में ममता की जीत के पीछे मुस्लिम वोटरों का अहम योगदान रहा था। ममता को ये अच्छी तरह पता है कि करीब 90 सीटों पर जीत और हार मुस्लिम वोटर तय कर सकते हैं।
किसको मिलता है फायदा : पश्चिम बंगाल में, लगभग 22 प्रतिशत मुसलमान कोलकाता शहर में रहते हैं, जबकि उनमें से अधिकांश (लगभग 67 प्रतिशत) मुर्शिदाबाद जिले में रहते हैं। दूसरी और तीसरी सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी क्रमशः उत्तरी दिनाजपुर (52 फीसदी) और मालदा (51 फीसदी) में है। पश्चिम बंगाल में भारत की दूसरी सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी है, जो लगभग 2.47 करोड़ है, जो राज्य की आबादी का लगभग 27.5 प्रतिशत है।
जीत का फैक्टर : 2019 के लोकसभा चुनावों में, टीएमसी को 43 प्रतिशत वोट मिले, जो 2014 के चुनावों की तुलना में 5 प्रतिशत अधिक (मुस्लिम समर्थन के कारण) है। 2014 में, पार्टी को 34 सीटें मिलीं, जबकि 5 साल बाद वह केवल 22 को सुरक्षित करने में सफल रही। 2016 के विधानसभा चुनावों में, तृणमूल लगभग 90 मुस्लिम बहुल विधानसभा क्षेत्रों में आगे थी। जिन क्षेत्रों में मुसलमानों में 40 प्रतिशत से अधिक मतदाता हैं, टीएमसी ऐसे 65 विधानसभा क्षेत्रों में से 60 में आगे थी।
दूसरी ओर, इसी इसी चुनाव में, भाजपा का वोट प्रतिशत 12 प्रतिशत था और 2019 के लोकसभा चुनावों में यह 39 प्रतिशत हो गया। मुख्य रूप से हिंदुओं के भगवा पार्टी की ओर बढ़ने के कारण वोट शेयर में 27 प्रतिशत की वृद्धि हुई। इससे पता चलता है कि आईएसएफ-कांग्रेस-लेफ्ट फ्रंट गठबंधन की ओर मुस्लिम वोटों में मामूली स्विंग ममता के लिए कितनी बड़ी समस्या हो सकती है, क्योंकि, भाईजान ने नंदीग्राम में भी ‘दीदी’ के खिलाफ उम्मीदवार खड़ा करने का फैसला किया है।
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