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नेपाल के उग्र प्रदर्शनों के बाद फ्रांस भी विरोध की आग में झुलसा

September 10, 2025


पेरिस । नेपाल के उग्र प्रदर्शनों के बाद (After Nepal’s violent protests) फ्रांस भी विरोध की आग में झुलसा (France too is engulfed in the Fire of Protests) । राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के खिलाफ बुधवार को देशभर में “ब्लॉक एवरीथिंग” आंदोलन शुरू हो गया, जिसमें लगभग एक लाख लोग सड़कों पर उतर आए। पेरिस समेत कई शहरों में आगजनी, तोड़फोड़ और नारेबाजी से हालात बिगड़ गए।

सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने के लिए सरकार ने करीब 80,000 सुरक्षाबलों को तैनात किया है, जिनमें से 6,000 सिर्फ पेरिस में मौजूद हैं। अब तक 200 से अधिक उपद्रवियों को हिरासत में लिया गया है। “ब्लॉक एवरीथिंग” का सीधा संदेश है— “अगर व्यवस्था जनता के काम नहीं आ रही, तो उसे रोक दो।” शुरुआत दक्षिणपंथी संगठनों ने की थी, लेकिन अब वामपंथी और अति-वामपंथी गुट भी इसमें शामिल हो गए हैं। आंदोलनकारियों ने परिवहन तंत्र, हाईवे और शहरों को ठप करने का ऐलान किया है।

फ्रांस की राजनीति पहले से ही संकट में है। हाल ही में संसद ने प्रधानमंत्री फ्रांस्वा बायरू को विश्वास मत में हरा दिया, जिसके बाद राष्ट्रपति मैक्रों को अपने कार्यकाल का पाँचवाँ प्रधानमंत्री, सेबास्टियन लेकोर्नू नियुक्त करना पड़ा। ऐसे माहौल में सड़कों पर ये बगावत सरकार के लिए बड़ा सिरदर्द साबित हो रही है। विशेषज्ञ इसे 2018 के “यलो वेस्ट” विद्रोह की याद दिलाने वाला आंदोलन मान रहे हैं। उस समय भी ईंधन की कीमतों से शुरू हुआ गुस्सा, राष्ट्रपति मैक्रों की नीतियों के खिलाफ जनआंदोलन बन गया था। मौजूदा हालात भी कुछ उसी दिशा में बढ़ते नजर आ रहे हैं।

गृह मंत्री ब्रूनो रेटायो ने बताया कि बोर्डो में करीब 50 नकाबपोशों ने हाईवे रोकने की कोशिश की, जबकि टूलूज़ में केबल में आग लगाने से ट्रैफिक बाधित हुआ। पेरिस में 75 से ज्यादा प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया गया। कई बड़े शहरों— मार्से, मोंपेलिए, नांत और लियोन— में सड़कें पूरी तरह जाम हो गईं।

जानकारी के मुताबिक, यह आंदोलन सोशल मीडिया और टेलीग्राम चैनलों के जरिए संगठित किया गया है। महंगाई, मितव्ययिता उपायों और कथित “अकार्यकुशल राजनीतिक व्यवस्था” को लेकर जनता का गुस्सा इसमें साफ दिख रहा है। हालांकि 2018 के ‘येलो वेस्ट’ प्रदर्शनों की तुलना में यह आंदोलन कम संगठित है, लेकिन ऑनलाइन समर्थन काफी मिल रहा है।

दो प्रमुख यूनियनों, सीजीटी और एसयूडी, ने बुधवार को प्रदर्शनों का समर्थन किया है। वहीं, 18 सितंबर को व्यापक हड़ताल की भी घोषणा की गई है। एक इप्सोस सर्वेक्षण के अनुसार, करीब 46 प्रतिशत फ्रांसीसी नागरिकों ने इस आंदोलन का समर्थन किया है, जिसमें वामपंथियों के साथ-साथ दक्षिणपंथी नेशनल रैली के आधे से अधिक समर्थक भी शामिल हैं।

स्वास्थ्यकर्मी और फार्मेसी कर्मचारी भी मेडिकल रिइम्बर्समेंट में कटौती के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं। यूनियनों ने चेतावनी दी है कि इससे फ्रांस की 20,000 फार्मेसियों में से लगभग 6,000 बंद हो सकती हैं। लोगों का गुस्सा बायरू सरकार के उन प्रस्तावों पर भी है, जिनमें दो सार्वजनिक अवकाश खत्म करने और बजट घाटा कम करने जैसे कठोर कदम शामिल थे। कई प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति मैक्रों से संसद भंग कर तुरंत नए चुनाव कराने की मांग की है।

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