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बिहार की हार के बाद अब 2026 बंगाल चुनाव कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती, BJP या TMC कौन है असली दुश्मन?

November 28, 2025

नई दिल्‍ली । बिहार चुनावों (Bihar elections) में बड़ी जीत हासिल करने वाली भाजपा (BJP) की नजर अब पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल (West Bengal) पर जा टिकी है, जहां फिलहाल विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) पर सियासी संग्राम जारी है। देश की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस (Congress) वोट चोरी के आरोप तो लगाती रही है लेकिन पश्चिम बंगाल में SIR के मुद्दे पर अभी तक कुछ ठोस करती नजर नहीं आ रही है, जबकि सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस की चीफ और राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस मुद्दे पर भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। दूसरी तरफ भाजपा, इसी बहाने अवैध घुसपैठियों का मुद्दा उठा रही है और हिन्दू मतदाताओं को लामबंद करने में जुटी है।

कुल मिलाकर देखें तो पश्चिम बंगाल में चुनावों से पहले ही राजनीतिक माहौल गरमाया हुआ है और दो पाटों में बंटती नजर आ रही है, जिसमें कांग्रेस गौण नजर आ रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले ही इस बात का इशारा कर दिया था कि उनकी नजर अब बंगाल पर है। बिहार चुनावों में मिली अपार सफलता के बाद अपने संबोधन में पीएम मोदी ने कहा था, “गंगा जी बिहार से बहते हुए ही बंगाल तक जाती हैं। बिहार ने बंगाल में भाजपा की विजय का रास्ता भी बना दिया है। मैं पश्चिम बंगाल के लोगों को आश्वस्त करता हूं कि आपके समर्थन से, बीजेपी पश्चिम बंगाल से भी ‘जंगल राज’ को उखाड़ फेकेंगी।” पीएम मोदी और भाजपा की तरफ से ममता बनर्जी को यह स्पष्ट संदेश था कि उनका विजय रथ रोकने भाजपा आ रही है।


2026 में भाजपा बनाम तृणमूल
साफ है कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस और भाजपा में कड़ा मुकाबला होने जा रहा है। कुछ साल पहले तक भाजपा इस राज्य में एक मामूली सा खिलाड़ी थी लेकिन अब वह सत्ता पर कब्जा करने वाली प्रमुख दावेदार बनकर उभरी है। केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद से भाजपा ने इस राज्य में न सिर्फ अपना खाता खोला बल्कि उम्दा प्रदर्शन किया है। 2011 तक जीरो पर आउट होने वाली भाजपा ने 2016 में तीन सीटें जीती थीं लेकिन पांच साल बाद यानी 2021 में 77 सीटों तक जा पहुंची। अब 2026 में अपने दम पर सरकार बनाने का सपना देख रही है।

30 से 213 तक पहुंची टीएमसी
उधर, तृणमूल कांग्रेस जिसने 2006 में 294 सदस्यों वाली विधानसभा में सिर्फ 30 सीटें जीती थीं,2011 में 184 सीटें जीतने में कामयाब रहीं। इतना ही नहीं 2016 में 211 और 2021 में इसने 213 सीटें जीती हैं। उसने इन चुनावों में सीपीएम को करारी हार दी, जो 2006 में 176 सीट पर जीतकर सरकार में थी. वह 2011 में 40 सीटों पर सिमट गई और 2016 में 26 लेकिन 2021 में जीरो पर आउट हो गई।

लगातार अपनी जमीन खोती चली गई कांग्रेस
कांग्रेस की बात करें तो वह राज्य में लगातार अपनी जमीन खोती चली गई। 2011 में, जब ममता बनर्जी ने पहली बार लेफ्ट को सत्ता से बाहर किया था और खुद सीएम बनी थी, तब कांग्रेस लेफ्ट के साथ गठबंधन में एक अहम पार्टनर थी। उस चुनाव में कांग्रेस ने 42 सीटें जीती थीं और मुर्शिदाबाद, मालदा और उत्तरी बंगाल के कुछ हिस्सों में अपना असर बनाए रखा था लेकिन पांच साल बाद, 2016 में लेफ्ट के साथ गठबंधन में कांग्रेस ने 44 सीटें जातीं, लेकिन उसका वोट शेयर और संगठन की ताकत पहले से भी कम हो गई। 2021 में तो कांग्रेस की जमीन पूरी तरह से खिसक गई। कांग्रेस ने तब 92 सीटों पर चुनाव लड़ा था लेकिन एक भी सीट नहीं जीत पाई। बड़ी बात यह है कि कांग्रेस लगभग हर चुनाव क्षेत्र में तीसरे या चौथे स्थान पर रही और सिर्फ 3% वोट शेयर ही हासिल कर पाई, जो बंगाल के चुनावी इतिहास में उसका सबसे कमज़ोर प्रदर्शन है।

अब बड़ी उलझन में कांग्रेस
अब जब 2026 का चुनाव फिर से सिर पर है तो कांग्रेस बड़ी उलझन में है। बिहार में वह 6 सीटों पर सिमट चुकी कांग्रेस यह तय नहीं कर पा रही है कि बंगाल में उसका सबसे बड़ा सियासी दुश्मन कौन है- भाजपा या टीएमसी। पार्टी के सामने यह भी सबसे बड़ा सवाल है कि 2026 में पार्टी किस मुद्दे और उद्देश्य के लिए संघर्ष करे? क्या उसका मकसद सीटें जीतना है,या वोट शेयर हासिल करना, या सिर्फ पॉलिटिकल मैप पर मौजूदगी दर्ज कराना है क्योंकि वहां की लड़ाई पहले से ही दो की जंग बनी हुई है। पार्टी को इस बात का भी डर है कि अगर भाजपा के खिलाफ जंग नहीं लड़ी गई तो इसका संदेश देशभर में गलत जाएगा, जबकि इंडिया अलायंस में साथ रही ममता ने पहले ही उससे किनारा कर रखा है।

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