IAS and IPS के खिलाफ जांच से पहले सीएम की मंजूरी गलत

  • हाईकोर्ट में जवाब देने में टालमटोली कर रही सरकार , एनयूएमएम ने भेजा पत्र

जबलपुर। भ्रष्टाचार निवारण में आईएएस, आईपीएस, आईएफएस अधिकारियों के खिलाफ जांच से पहले मुख्यमंत्री की मंजूरी लेने संबंधी जारी आदेश पूर्णत: गलत और असंवैधानिक है। जिसे तत्काल वापिस लिया जाना चाहिये। जिसको लेकर नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच ने मुख्य सचिव सामान्य प्रशासन को पत्र भेजकर आपत्ति दर्ज करायी है। साथ ही पत्र में कहा गया कि उनकी ओर से पूर्व में दायर जनहित याचिका पर सरकार ने अब तक जवाब नहीं दिया है और ऊपर से अब वरिष्ठ अधिकारियों को सुरक्षा कवच उपलब्ध करा रही है।

नागरिक उपभोक्ता मार्ग दर्शक मंच के अध्यक्ष डॉ. पीजी नाजपांडे व रजत भार्गव की ओर से सामान्य प्रशासन विभााग के प्रमुख सचिव को भेजे गये पत्र में कहा गया है कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में धारा 17-ए जोड़ कर शासकीय अधिकारी एवं कर्मचारियों के भ्रष्टाचार के मामले में कार्यवाही से पहले जांच एजेंसियों को अनुमति लेनी होगी। यह आदेश दिनांक 26 दिसंबर 2020 में सामान्य प्रशासन ने जारी किया था। जिसमें उनकी ओर से हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। जिस पर न्यायालय ने जनवरी 2021 में सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था, लेकिन आज 16 माह बीत चुके हैं, फिर भी सरकार की ओर से जवाब प्रस्तुत नहीं किया गया है। उल्टे सरकार ने दूसरा आदेश जारी कर वरिष्ठ अधिकारियों को सुरक्षा कवच दे दिया है।

44 आईएएस अधिकारियों के खिलाफ जांच लंबित
लोकायुक्त की 44 आईएएस अधिकारी, 16 आईपीएस 11 आईएफएस अधिकारियों के खिलाफ जांच वर्षों से लंबित पड़ी है। वास्तविकता में जांच की समय सीमा निश्चित की जाना चाहिये, न कि जांच के पूर्व अनुमति का प्रावधान से जांच एजेंसियों के हाथ बांधना चाहिये।

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