राज्यसभा चुनाव में 26 साल पहले भी हुई थी क्रॉस वोटिंग, कांग्रेस उम्मीदवार को झेलनी पड़ी थी हार

नई दिल्‍ली (New Delhi) । हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) के राज्यसभा चुनाव (Rajya Sabha elections) में कांग्रेस (Congress) के साथ बड़ा ‘खेला’ हो गया. कांग्रेस के छह विधायकों (MLA) ने बीजेपी (BJP) के उम्मीदवार हर्ष महाजन (Candidate Harsh Mahajan) को क्रॉस वोटिंग (cross voting) कर जितवा दिया.

राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग कोई नई बात नहीं है. इतिहास गवाह है कि समय-समय पर इस तरह की क्रॉस वोटिंग होती रही है. ऐसा ही एक मामला 1998 के राज्यसभा चुनाव से जुड़ा हुआ है. 1998 के राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस का उम्मीदवार अपनी ही पार्टी के विधायकों की क्रॉस वोटिंग की वजह से हार गया था. माना जाता है कि इसी घटना की वजह से शरद पवार ने कांग्रेस से अलग होकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) की स्थापना की थी.

कांग्रेस के विधायकों की क्रॉस वोटिंग की वजह से पार्टी के उम्मीदवार को हार का सामना करना पड़ा था. इसके बाद कांग्रेस के एक वर्ग ने इस हार का कारण शरद पवार को ठहराया था. पवार उस समय कांग्रेस में थे और लोकसभा में विपक्ष के नेता थे.

क्या हुआ था 1998 के चुनाव में?
कांग्रेस ने 1998 के महाराष्ट्र राज्यसभा चुनाव में नजमा हेपतुल्ला और राम प्रधान को उम्मीदवार बनाया था. विधानसभा में संख्याबल के आधार पर पार्टी ये दोनों सीटें आसानी से जीत सकती थी. वहीं, बीजेपी ने प्रमोद महाजन जबकि शिवसेना ने सतीश प्रधान और प्रीतीश नंदी को उम्मीदवार बनाया था. इसके अलावा दो निर्दलीय उम्मीदवार सुरेश कलमाड़ी और विजय दर्डा भी मैदान में थे.

चुनाव में कांग्रेस के राम प्रधान की हार हुई जबकि कलमाड़ी और दर्डा सहित अन्य जीत गए थे. कांग्रेस के एक वर्ग ने राम प्रधान की हार के लिए शरद पवार को जिम्मेदार ठहराया था. पार्टी के इस वर्ग का कहना था कि पवार राज्यसभा चुनाव में राम प्रधान की उम्मीदवारी के विरोध में थे. इस मामले में पार्टी ने 10 विधायकों और प्रफुल्ल पटेल सहित शरद पवार के सहयोगियों को कारण बताओ नोटिस जारी किया था. शरद पवार के करीबी नेताओं को 1999 के विधानसभा चुनाव में टिकट भी नहीं दिए गए थे.

एनसीपी के गठन की एक वजह ये भी
1998 के राज्यसभा चुनाव के बाद शरद पवार पार्टी के अंदर ही घिर चुके थे. माना जाता है कि इसके बाद शरद पवार ने कांग्रेस से अलग होने का फैसला कर लिया था. हालांकि, पार्टी से अलग होने की एक वजह सोनिया गांधी से बगावत को भी माना जाता है.

1999 के लोकसभा चुनाव में सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने की बात चल पड़ी. इसके बाद शरद पवार, तारिक अनवर और पीए संगमा ने बगावत कर दी. तीनों ने सोनिया गांधी के ‘विदेशी मूल’ का होने पर सवाल उठाया. उनका कहना था कि एक विदेशी मूल के व्यक्ति को भारत का प्रधानमंत्री कैसे बनाया जा सकता है?

सोनिया गांधी के खिलाफ बगावत ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी यानी एनसीपी की नींव रखी. शरद पवार ने तारिक अनवर और पीए संगमा के साथ मिलकर 10 जून 1999 को एनसीपी का गठन किया. उसी साल अक्टूबर में महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव हुए. एनसीपी का ये पहला विधानसभा चुनाव था.

पार्टी ने राज्य की 288 सीटों में से 223 पर अपने उम्मीदवार खड़े किए. इस चुनाव में एनसीपी ने 58 सीटें जीतीं. चुनाव में किसी एक पार्टी को बहुमत नहीं मिला था. 75 सीटें जीतकर कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनी. चुनाव से पहले कांग्रेस और एनसीपी ने एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ा था. लेकिन बाद में कांग्रेस और एनसीपी ने मिलकर सरकार बनाई. कांग्रेस के विलासराव देशमुख मुख्यमंत्री बने. एनसीपी के छगन भुजबल डिप्टी सीएम बने.

20 साल बाद किया था ये खुलासा
2018 में एक इंटरव्यू में शरद पवार ने कांग्रेस पार्टी छोड़ने को लेकर खुलासा किया था. उन्होंने कहा था कि उन्होंने कांग्रेस इसलिए छोड़ी थी क्योंकि 1999 में सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बनना चाहती थीं. उन्होंने कहा था कि उस समय मैं या मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे सही उम्मीदवार थे. मैं घर पर था तब मुझे मीडिया से पता चला कि सोनिया गांधी ने दावा पेश कर दिया है. उसी समय मैंने कांग्रेस छोड़ने का फैसला ले लिया था.

Leave a Comment