विदेश मंत्री एस जयशंकर बोले, ‘ भारत को चीन से डरने की जरूरत नहीं’, जानें क्यों कहा ऐसा

नई दिल्‍ली (New Delhi) । अपनी किताब ‘व्हाई इंडिया मैटर्स’ के संबंध में मुंबई के आईआईएम पहुंचे विदेश मंत्री एस जयशंकर (Foreign Minister S Jaishankar) ने मंगलवार (30 जनवरी) को कहा कि उन्हें नहीं लगता कि भारत (India) को चीन (China) से डरना चाहिए. उन्होंने ये भी कहा कि ये स्वीकार करना भी जरूरी है कि चीन भारत के पड़ोसी देशों को प्रभावित करेगा लेकिन इस प्रतिस्पर्धी राजनीति से डरने की जरूरत नहीं है.

जानकारी के मुताबिक, वैश्विक राजनीति एक प्रतिस्पर्धी खेल है और भारत को चीन से ‘डरना’ नहीं चाहिए और ‘शिकायत’ करने के बजाय बीजिंग से बेहतर करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि एक ‘प्रमुख अर्थव्यवस्था’ होने के नाते चीन अपने संसाधनों को तैनात करेगा और प्रतिस्पर्धी राजनीति के हिस्से के रूप में चीजों को अपने तरीके से आकार देने का प्रयास करेगा.

क्या कहा जयशंकर ने?
उन्होंने कहा, “हमें समझना चाहिए, चीन भी एक पड़ोसी देश है और कई मायनों में, प्रतिस्पर्धी राजनीति के तहत इन देशों को प्रभावित करेगा. मुझे नहीं लगता कि हमें चीन से डरना चाहिए. मुझे लगता है कि हमें यह मानना चाहिए वैश्विक राजनीति एक प्रतिस्पर्धी खेल है. आप अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करें, मैं अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करूंगा.”

उन्होंने कहा, “चीन एक प्रमुख अर्थव्यवस्था है. वो संसाधनों को तैनात करेगा. चीजों को चीन के तरीके से आकार देने की कोशिश भी होगी. हमें अन्यथा उम्मीद क्यों करनी चाहिए? लेकिन इसका जवाब यह नहीं है कि चीन क्या कर रहा है, इसके बारे में शिकायत करें. जवाब है, ‘ठीक है, आप यह कर रहे हैं. मुझे उससे बेहतर करने दीजिए.”

उन्होंने कहा, “मैं आज कहना चाहता हूं…हमें प्रतिस्पर्धा से डरना नहीं चाहिए. हमें प्रतिस्पर्धा का स्वागत करना चाहिए और कहना चाहिए कि मुझमें प्रतिस्पर्धा करने की क्षमता है.”

मालदीव पर क्या बोले जयशंकर?
मालदीव में ‘इंडिया आउट’ अभियान के बारे में एक सवाल पर जयशंकर ने भारतीय कूटनीति पर ‘भरोसा’ करने का आग्रह किया. उन्होंने कहा, “हर देश के पड़ोस में समस्याएं हैं. समस्याएं तो होंगी. हमारा काम अनुमान लगाना, आकलन करना और प्रतिक्रिया देना है. अंत में पड़ोसियों के एक-दूसरे के साथ संबंध रहते हैं.”

विदेश मंत्री ने बताया कि राजनीति में तीखे रुख अपनाए जाते हैं और कूटनीति हमेशा उन तीखे रुख से नहीं चलती. उन्होंने कहा, “आखिरकार, पड़ोसियों को एक-दूसरे की जरूरत होती है. इतिहास और भूगोल बहुत शक्तिशाली ताकतें हैं. इससे कोई बच नहीं सकता.”

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