आयकर की धारा 148-ए में ढेरों विसंगतियां, करदाता हो रहे हैं परेशान

  • टैक्स प्रेक्टिसनर्स एसोसिएशन ने सेमिनार के जरिए दी महत्वपूर्ण जानकारी,
  • तीन साल की अवधि से पुराने नोटिस सिर्फ सूचना के आधार पर विभाग नहीं भेज सकता

इंदौर। आयकर अधिनियम (income tax act) की धारा (Section) 147 की जगह कुछ वर्ष पूर्व कर निर्धारण प्रक्रिया को आसान बनाने के उद्देश्य से जो नई धारा 148-ए लाई गई उलटा उसमें ढेरों जटीलताएं (Many discrepancies) होने से अधिकांश करदाताओं (Tax taxpayers) को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है और तीन वर्ष या उससे पुराने नोटिस भी विभाग ने इस धारा के तहत भिजवा दिए। जबकि केवल सूचना होनी ही पर्याप्त नहीं है, उससे संबंधित सबूत भी विभाग के पास होना चाहिए। टैक्स प्रेक्टिशनर्स एसो. और इंदौर सीए शाखा ने कल इस धारा से जुड़ी जटीलताओं और करदाताओं को किस तरह राहत मिल सकती है उसकी जानकारी विशेषज्ञों के जरिए दी।

टैक्स प्रैक्टिशनर्स एसोसिएशन एवं इंदौर सीए शाखा द्वारा आयकर की धारा 147 के असेसमेंट आर्डर के विरुद्ध की जाने वाली अपील पर सेमिनार का आयोजन किया गया। टैक्स प्रैक्टिशनर्स एसोसिएशन के प्रेसिडेंट सीए जे पी सराफ ने कहा कि आयकर अधिनियम की पुरानी धारा 147 के तहत कर निर्धारण प्रक्रिया को स्मूथ बनाने के लिए पिछले कुछ वर्षों पूर्व धारा 148-्र लाई गई थी लेकिन इसका फायदा होने के स्थान पर प्रोसीजर में और अधिक जटिलता आ गई तथा मार्च में हुए अधिकांश असेसमेंट ऑर्डर्स में करदाता का पक्ष सुने बिना विभाग द्वारा मनवाने ढंग से एडिशन किए गए। इंदौर सीए शाखा के चेयरमैन सीए अतिशय खासगिवाला ने स्वागत भाषण देते हुए कहा कि यह देखना भी अत्यंत आवश्यक है कि धारा 148्र का नोटिस 3 वर्ष की समय सीमा के भीतर है या उसके पश्चात क्योंकि 3 वर्ष के भीतर नोटिस आयकर विभाग के पास केवल कोई सूचना उपलब्ध है इस आधार पर जारी किया जा सकता है जबकि 3 वर्ष के पश्चात 50 लाख से अधिक की आय इनकम ऐस्केपिंग असेसमेंट होनी चाहिए थी एवम् उचित अधिकारी के पास एविडेंस भी होना चाहिए केवल सूचना पर्याप्त नहीं होगी। कार्यक्रम का सञ्चालन कर रहे टीपीए के मानद सचिव सीए अभय शर्मा ने कहा कि जिस भावना से इस एक्ट में अमेंडमेंट किये गए थे उस भावना के अनुरूप असेसमेंट नहीं किये जा रहे हैं। अधिकांश असेसमेंट आर्डर में विभाग हाई पिच असेसमेंट कर रहा है अत: करदाता के पास अपील ही अंतिम और सबसे बड़ी रेमेडी बचती हैद्य इसलिए यह आवश्यक है कि जो भी अपील की जा रही है वह पूरी सावधानी से ड्राफ्ट की जाये। मॉडरेटर सीए मनीष डफरिया, पेनलिस्ट सीए विजय बंसल, सीए पी डी नागर ने कहा कि आयकर धारा 147 के रि-असेसमेंट ऑर्डर के विरुद्ध की जाने वाली अपील मे निम्न बिंदुओं पर ध्यान दिया जाना चाहिए। सर्वप्रथम यह देखा जाना चाहिए की असेसमेंट शुरू करने के पहले क्या धारा 148्र का नोटिस उचित प्रकार से, सही समय पर व उचित अधिकारी की सहमति से दिया गया था। यदि नही तो अपील में इस संबंध मे आपति ली जाना चाहिए। यह भी देखा जाना चाहिए की जिस जानकारी के आधार पर रि-असेसमेंट प्रस्तवित था वह संपूर्ण जानकारी करदाता को धारा 148्र के नोटिस के साथ दी गयी थी अथवा नहीं। यदि नहीं तो अपील में इस पर आपत्ति ली जाना चाहिये। कई सारे मामलो मे बिल्डर के यहा हुई सर्च के आधार पर आयकर विभाग ने प्लाट/मकान खरीददारों पर इस आधार पर एडिशन किया कि उन्होने बिल्डर को नगद राशि का भुगतान किया है । इस संबंध मे यदि कर निर्धारण सिर्फ बिल्डर के कर्मचारी के बयान के आधार पर किया गया है तो इस तथ्य को अपील अधिकारी के संज्ञान में लाया जाना चाहिए। संबंधित बयानकर्ता व्यक्ति के प्रति परीक्षण/ क्रॉस एग्जामिनेशन की मांग भी की जा सकती हे। वर्तमान मे आयकर विभाग द्वारा असेसमेंट से संबंधित समस्त नोटिस व ऑर्डर ईमेल पर भेजे जाते है। कई व्यक्तियो विशेषत: किसानों आदि को ईमेल पर भेजे नोटिस का ज्ञान ही नही हो पता है। ऐसे मामलो की संपूर्ण तथ्यात्मक जानकारी अपील मे देकर नियम के तहत कागज दाखिल किये जाने चाहिए।

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