क्या मुस्लिम वोट बैंक का मिथक टूट चुका है? राजनीतिक दलों का गड़बड़ाया अपना गणित\

ई दिल्‍ली (New Delhi)। क्या देश के चुनावों में अभी भी मुस्लिम वोट बैंक (muslim vote bank)पहले जैसा महत्वपूर्ण है? लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections)के दौरान एक बार फिर से मुस्लिम बहुल सीटों (Muslim majority seats)को लेकर राजनीतिक दल (political party)अपने गुणाभाग में लगे हुए हैं। साथ में यह चर्चा भी हो रही है, कि क्या मुस्लिम वोट बैंक का मिथक टूट चुका है। फिलहाल सौ से ज्यादा मुस्लिम बहुल सीटों पर राजनीतिक दल इस तरह से ताना बाना रच रहे हैं कि बाजी उनके हाथ में आ सके। इसमें भाजपा भी पीछे नहीं है।

भाजपा ने अपने अल्पसंख्यक मोर्चे के जरिए मुसलमानों को भी साधने की रणनीति बनाई है। पार्टी लोगों के बीच जाकर यह बता रही है कि किस तरह से भाजपा की मोदी सरकार ने बिना किसी भेदभाव के सभी कल्याणकारी योजनाओं को सभी वर्गों तक पहुंचाया है। पार्टी का मानना है कि लाभार्थियों का जो नया वोट बैंक तैयार हुआ है, उसमें मतदाता के रूप में कुछ प्रतिशत ही सही मुस्लिम समुदाय के लोग भी शामिल हैं।

उधर विपक्ष की रणनीति भी बताती है कि अब वे मुस्लिम बहुल सीटों पर भी केवल इस वोट बैंक के आधार पर सीटों का गणित तैयार नहीं कर रहे हैं। बल्कि यह सोच उभरी है कि मुद्दों के आधार पर और जातीय समीकरण साधकर अगर मतदाताओं के ध्रुवीकरण को रोका जा सकता है तो मुस्लिम स्वाभाविक रूप से भाजपा विरोधी मोर्चे से जुड़ेगा। लेकिन मुस्लिम केंद्रित रणनीति से ध्रुवीकरण का डर विपक्ष को सताने लगा है।

भाजपा की जीत से विपक्ष का गणित गड़बड़ाया

करीब सौ मुस्लिम बहुल सीटों में से पिछले दो लोकसभा चुनाव का रुझान देखें तो असदुद्दीन ओवैसी की इस बात में दम नजर आता है कि अब मुसलमान वोट बैंक नहीं है। बल्कि जाति के नाम पर लामबंदी को तोड़कर मतदाताओं का बड़े पैमाने पर ध्रुवीकरण सारे समीकरण ध्वस्त कर सकता है। यूपी में कई सीटों पर निर्णायक मुस्लिम आबादी के बावजूद ज्यादातर सीटें भाजपा के जीतने से विपक्ष का पूरा गणित गड़बड़ हो चुका है। यही हाल असम में भी है जहां मुसलमान निर्णायक संख्या में हैं। इसके अलावा बंगाल में भी जिस तरह से भाजपा उभरी है उसे देखते हुए विरोधी दलों को अपनी रणनीति बदलनी पड़ी है। यह विपक्ष के प्रचार में भी नजर आने लगा है।

65 सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं की तादाद 35%

देशभर में 65 ऐसी लोकसभा सीट हैं जहां मुस्लिम मतदाताओं की तादाद 35 प्रतिशत से ज्यादा है। मुस्लिम बहुल इन 65 लोकसभा सीटों में से सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में 14 लोकसभा सीट हैं। दूसरे नंबर पर पश्चिम बंगाल है, जहां कि 13 लोकसभा सीट को इसमें शामिल किया गया है। केरल की 8, असम की 7, जम्मू-कश्मीर की 5, बिहार की 4, मध्य प्रदेश की 3 और दिल्ली, गोवा, हरियाणा, महाराष्ट्र और तेलंगाना की 2-2 लोकसभा सीट इस लिस्ट में शामिल हैं। वहीं, तमिलनाडु की एक लोकसभा सीट भी इसमें है।

इन 65 लोकसभा सीटों के अलावा देश में 35 से 40 के लगभग लोकसभा की सीट ऐसी भी हैं, जहां मुस्लिम मतदाता पूरी तरह से निर्णायक भूमिका में भले ही न हो, लेकिन इनकी संख्या अच्छी खासी है। फिलहाल भाजपा की ऐसी सीटों पर जीत का रिकार्ड बताता है कि मुस्लिम बहुल सीट भी भाजपा विरोधी खेमे के लिए सुरक्षित नहीं रह गई हैं।

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