व्यंग्य : मध्यम वर्ग और टमाटर

टमाटर से ईष्र्या होना बिल्कुल लाजिमी है। दस-दस रूपये किलो में सहज सुलभ टमाटर अचानक 120 रुपये किलो के भाव को स्पर्श कर ले, ये किसी तरह बर्दाश्त किया जा सकता, हरगिज नहीं। टमाटर मुख्य सब्जी नहीं है, बल्कि उसका सहयोगी तत्व है, तब भी दाम में ऐसी सुर्खी नागवार गुजरती ही है। कहने-सुनने में कितना अजीब लगता है कि जितने में एक किलो टमाटर आते हैं उससे कम में एक लीटर पेट्रोल आ जाता है,जबकि टमाटर का तो माइलेज भी चैक नहीं किया जा सकता। टमाटर का अति महंगा होना उच्च वर्ग के लिये केवल एक खबर मात्र है,जो पता न भी चले तो कोई बड़ी बात नहीं है। निम्न वर्ग को ऐसी खबरों से कोई सरोकार नहीं है परंतु मध्यम वर्ग के लिये ऐसे अवसर विशेष तकलीफदेह होते हैं। ये वर्ग यदि टमाटर खरीदता है तो जेब कटती है और यदि नहीं खरीदता तो अहंकार को चोट लगती है। कई बार अकेले में रो लेता है आदमी। किसी के पास और कुछ हो न हो अंहकार तो होता ही है। इसको जरा सी भी चोट सही नहीं जाती।


क्या किसी के ऐसे दिन भी आ सकते हैं कि वो एक किलो टमाटर खरीदने के पहले सौ बार सोचे। लानत है ऐसी जिंदगी पर और मध्यम वर्ग ऐसी जिंदगी का परमानेंट मालिक है। टमाटर न खरीदने पर सब्जी वाले की नजरों में जो गिरना पड़ता है उस गिरावट को शब्दों में बयां नहीं किया सकता। सब्जी वाले से आंख मिलाना मुश्किल होता है। मिडिल क्लास जब पूरा थैला भरकर सब्जी लाता है और उसमें टमाटर नहीं होते तो उसे पता चलता है कि उसकी हैसियत किस मुकाम पर पहुंच गयी है। टमाटर बार-बार याद आते हैं,लेकिन सब्जी में नहीं दिखते। मध्यम वर्ग का धैर्य हिमालय की से भी ऊंचा है। इस वर्ग का संघर्ष पृथ्वी के समस्त संघर्षों से अत्यधिक घर्षणपूर्ण है। इसे हाई क्लास से खुद को नीचा भी नहीं दिखने देना और निम्न वर्ग से अपनी ऊंचाई भी एकदम मेंटेन रखनी है। उच्च वर्ग मिडिल क्लास को नीचे धकेलने का कोई मौका नहीं छोड़ता और निम्न वर्ग ये मानकर चलता है कि दोनों में बस जरा सा अंतर है।
बड़ा मुश्किल है दो पाटों के बीच रहकर खुद को साबूत बचाये रखना। टमाटर एक उदाहरण मात्र है। मध्यमवर्ग सदैव ऐसी ही (टमाटर जैसी) समस्याओं से जूझता रहता है। इस वर्ग के लोगों की बेचैनी तभी समाप्त होती है,जब इन्हें भगवान इस दुनिया से उठा लेते हैं, उससे पहले नहीं। सेकेंड हैंंड गाडिय़ों का बाजार और डिस्काउंट वाले मार्केट का जन्म ही मध्यम वर्ग के कल्याण के लिये हुआ है। इनका दूसरा कोई मकसद नहीं है। मध्यम वर्ग की भावनाओं का उसकी मर्जी से जितना शोषण बाजार ने किया है, उतना कोई किसी का कर नहीं सकता। देश में जहां मक्खियां और मच्छर भी नहीं हैं, वहां भी मध्यम वर्ग मुंह उठाये खड़ा है। इसकी उपलब्धता का संकट कभी भी नहीं रहा। इस बार टमाटर है फिर कोई होगा ,लेकिन मध्यम वर्ग के चैलेंज कभी खत्म नहीं होंगे।
मदन मोहन अवस्थी

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