आखिर सूर्य की कोरोना परत का तापमान अधिक क्‍यों ? आदित्य के लिए इस गुत्थी को सुलझाना बड़ी चुनौती

नई दिल्‍ली (New Delhi) । सूर्य (Sun) के ऊपरी वातावरण को मुख्यत: तीन परतों फोटोस्फीयर (Photosphere), क्रोमोस्फीयर (chromosphere) और कोरोना (corona) में बांटा गया है। इसके भीतर से आने वाली ऊर्जा इन तीनों परतों में ही प्रकाश व अन्य तत्वों में बदलती है, लेकिन सबसे बाहरी परत होने के बावजूद कोरोना का तापमान बाकी दो परतों से क्रमश : 500 व 200 गुना तक अधिक पाया गया है। इसकी वजह वैज्ञानिकों (scientists) को नहीं पता है।

अगले चार महीने में भारत का आदित्य एल1 अपने निर्धारित बिंदु पर पहुंचने के बाद यह रहस्य सुलझाने में मदद कर सकता है। आदित्य से मिली जानकारियां व डाटा कोरोना के मुख्य सतह से कई गुना ज्यादा गर्म होने का अबूझ रहस्य सुलझाने में पूरे विश्व की मदद कर सकती हैं।

फोटोस्फीयर
यहीं से निकला उजाला हम तक आठ मिनट में पहुंचता है : फोटोस्फीयर यानी… प्रकाश का गोला। सूर्य के वातावरण की यह पहली परत 500 किमी मोटी है। यहीं से सबसे ज्यादा ऊर्जा, हजारों किमी लंबी लपटें, एक्स-रे, यूवी रे, चुंबकीय विकिरण, रेडियो तरंगें बाहर आती हैं और यहीं से निकली किरणें हमारी पृथ्वी तक आठ मिनट में पहुंचती हैं। इसका तापमान 4,125 से 6,125 डिग्री सेल्सियस माना जाता है, जो सूर्य के केंद्र के मुकाबले कहीं कम है।

क्रोमोस्फीयर
सूर्य के ताप को बाहर निकालती परत: क्रोमोस्फीयर फोटोस्फीयर के ऊपर की परत होती है और तीन हजार किमी मोटी मानी जाती है। यह परत लाल दिखती है, जैसा हाइड्रोजन को जलाने पर होता है। वैज्ञानिक अनुमानों के अनुसार इसका तापमान सात हजार से 14 हजार डिग्री सेल्सियस तक हो सकता है। इस परत में सौर तरंगें नजर आती हैं, जिन पर वैज्ञानिक निगरानी रखते हैं। यही तरंगें ऊपर की ओर बढ़कर कोरोना में जाती हैं।

कोरोना
जहां आवेशित गैसों की पताकाएं लहराती हैं: कोरोना सूर्य की तीसरी और सबसे ऊपरी परत है। इसे केवल ग्रहण के दौरान देखा जाता है। वैज्ञानिक इसकी मोटाई आठ से 10 हजार किमी तक मानते हैं। कोरोना का तापमान 10 लाख से 20 लाख डिग्री सेल्सियस तक माना गया है। इससे निकल रहीं आवेशित गैसों का तापमान जब जरा भी कम होने लगता है, तो वे कोरोना को छोड़ कर हमारे सौरमंडल की ओर बढ़ती हैं। इससे सौर-तूफान बनते हैं।

दुनियाभर के वैज्ञानिकों को परिणामों का इंतजार
गैस का गोला कहे जाने वाले हमारे तारे के कोर यानी केंद्र में तापमान डेढ़ करोड़ डिग्री सेल्सियस माना गया है, लेकिन फोटोस्फीयर चार हजार से छह हजार डिग्री सेल्सियस ही गर्म है। यह रहस्य और गहराता है, जब वैज्ञानिक कोरोना का तापमान 20 लाख डिग्री बताते हैं। सूर्य के केंद्र और कोरोना में हजारों किमी का फासला है और बीच कम कम तापमान वाली परतें हैं, फिर भी कोरोना इतनी गर्म कैसे हो जाती है? क्या ऐसा सूर्य पर आने वाले तूफानों से होता है? या हर सेकंड होने वाले करोड़ों सूक्ष्म लपटों के विस्फोट से? यह सूक्ष्म लपटें सूर्य की सामान्य लपटों से अरबों गुना छोटी होती हैं, लेकिन ऐसी हर लपट एक करोड़ टन हाइड्रोजन बम जितनी ऊर्जा पैदा करती है। तापमान में बदलाव के इसी रहस्य को समझने में भारत का आदित्य एल1 मदद कर सकता है। कई प्रमुख देशों के वैज्ञानिक इससे मिलने वाले डाटा और जानकारियां का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।

चंद्रयान-3 की सफलता को फिर मिली चीन से तारीफ
वहीं, भारत के चंद्रयान-3 की सफलता पर चीन से एक बार फिर सराहना के शब्द आए हैं। भारत के खिलाफ हमेशा जहर उगलने वाले ग्लोबल टाइम्स ने मिशन की सफलता के तुरंत बाद इस सफलता की तारीफ करते हुए इसरो को चीनी अंतरिक्ष एजेंसी के साथ मिलकर काम करने का सुझाव दिया था। दूसरी ओर अब ग्लोबल टाइम्स के पूर्व प्रधान संपादक और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के सचिव हू शी जिन ने लिखा है कि अंतरिक्ष में भारत की सफलता प्रभावशाली है। शी जिन ने एक्स पर इस बारे में पोस्ट लिखा और इसमें इसरो को टैग किया है।

दिलचस्प तथ्य यह है कि हू शी जिन भारत के कट्टर विरोधी रहे हैं। गलवां संघर्ष के दौरान उन्होंने भारत के खिलाफ कई लेख लिखे थे। उन्हें चीनी कप्युनिस्ट पार्टी का राजनीतिक प्रचारक माना जाता है। भारत ने दो महीने में अंतरिक्ष में शानदार कामयाबी हासिल की है। जिसकी पूरी दुनिया में तारीफ हो रही है।

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