जिस परकोटे में रामलला विराजे थे उसका कपड़ा उज्जैन से गया था

  • कारसेवकों के साथ बाबा सत्यनारायण मौर्य ने हाथो-हाथ काम चलाऊ चबूतरा तैयार किया था

उज्जैन। अयोध्या में उस समय जब मस्जिद तोड़ी गई थी तब परकोटा बनाया गया था और उसके लिए कपड़ा उज्जैन से गया था। छात्र जीवन उज्जैन में ही बीताने वाले सत्यनारायण मोर्य की इसमें भूमिका रही थी।

अपनी पढ़ाई पूरी कर रामकाज को अपना जीवन सौंपने वाले सत्यनारायण मौर्य, जो अब बाबा मौर्य के नाम से जाने जाते हैं। राम मंदिर के संघर्ष में तीन बार कार सेवा देने वाले बाबा मौर्य के अनुसार 6 दिसम्बर 1992 को विवादित ढांचे के गिरने के बाद उन्होंने कुछ कारसेवकों के साथ मिलकर सबसे पहले उज्जैन से बैनर बनाने के लिए लेकर गए कपड़े को एक चबूतरा बनाकर उसके आसपास लपेटा था और उसमें भगवान की मुर्ति को रखा था। वाणिज्य और कला में डबल एमए करने के बाद रामकाज को ही अपने कर्म के रूप में धारण करने वाले सत्यनारायण मौर्य (बाबा मौर्य) का जन्म प्रदेश के राजगढ़ जिले में शिक्षक के घर पर हुआ था। बाबा मौर्य के नाम से प्रसिद्धी हासिल करने वाले बाबा मौर्य के बड़े भाई भी पिता की तरह अध्यापक बन कर शिक्षा का प्रकाश फैला रहे थे। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद राम जन्मभूमि से ऐसा लगाव बढ़ा कि वह सीधे अयोध्या पहुंच गए और वहां रामजन्म भूमि के संघर्ष में कूद गए। बाबा मौर्य ने उस समय चलाए जा रहे आन्दोलन को जन-जन तक पहुंचाने के लिए अयोध्या की प्रत्येक गलियों में हर एक घर की दीवारों को रंग-बिरंगे जोशीले नारों से पाट दिया था, जो वहां पहुंचने वाले तीर्थयात्रियों और कारसेवकों को सहज ही अपनी और खींच लेते थे। यह वहीं समय था, जब अयोध्या की दीवारों पर लिखे नारे पूरे देश में चिंगारी की तरह फैले और 6 दिसम्बर को ज्वालामुखी बनकर फूटे थे। बाबा मौर्य बताते हैं कि 6 दिसम्बर को मंच का संचालन उन्हीं के हाथ में था और देखते ही देखते कब विवादित ढांचा जमींदोज हो गया, पता ही नहीं चला। उसी समय मची भगदड़ के बीच उन्हें केवल यही भान था कि यदि आज यहां से राम की मूर्ति हट गई तो आगे बहुत परेशानियां हमें उठानी पड़ेगी। इसीलिए कुछ कारसेवकों के साथ निर्णय लेकर हमने वहां बांस-बल्लियों से एक चबूतरा जैसा बनाया और उसमें रामलला को विराजित कर उसके चारों ओर उज्जैन से बैनर के लिए ले जाए गए कपड़े से टेंट का निर्माण किया था। बाबा मौर्य 1992 के पहले तीन कारसेवा में भाग ले चुके थे।

1934 में विवादित ढांचे को गिरा दिया गया था, तब अंग्रेजों ने उसे फिर बनवाया था
रामकाज में अपना जीवन लगा देने वाले बाबा मौर्य ने अग्निबाण से चर्चा में बताया कि यह बहुत कम लोगों को मालूम है कि आजादी के पहले से चले आ रहे इस विवाद में करीब 4 लाख 50 हजार लोगों ने अपना बलिदान दिया है। 1934 में रामजन्म भूमि पर बने विवादित ढांचे को उस समय हुए युद्ध में गिरा दिया गया था। मगर अंग्रेजों ने उसका पुन: निर्माण करा दिया था। इसके पहले भी 1857 में जब आजादी के लिए अंग्रेजों से युद्ध चल रहा था, तब एक मुस्लिम अमीर अली ने अंग्रेजों से कहा था कि यह स्थान हिन्दुओं को दे दो। उस पर अंग्रेजों ने अमीर अली के साथ उनके साथी बाबा रामचरण दास को भी फांसी पर चढ़ा दिया था, ताकि दो समुदायों में फूट पड़ी रहे। रामकाज की शपथ लेकर पढ़ाई पूरी करने के बाद अयोध्या पहुंचे बाबा मौर्य ने राम जन्मभूमि के संघर्ष को जन आन्दोलन बनाने के लिए अयोध्या की हर एक-एक गली में घरों को रंग-बिरंगे रंगों से ऐसा रंगा था कि वहां पहुंचने वाला कोई भी व्यक्ति उनके द्वारा लिखे नारों को बगैर पढ़े आगे नहीं बढ़ सकता था।

दीपावली के बाद अब राम दिवाली की तैयारी
उज्जैन। पूरे देश में 22 जनवरी को राम दिवाली मनाने की तैयारियां जोरों पर हैं। ऐसा पहली बार हो रहा है कि दीपावली के बाद फिर से मिट्टी के दीयों की मांग निकली है। कुम्हारों के परिवार नवंबर में गई दिवाली के बाद एक बार फिर दीयों के कारोबार में लग गए हैं। आमतौर पर अक्टूबर या नवंबर में आने वाली दिवाली से लेकर देवउठनी ग्यारस तक मिट्टी के दीये बाजार में बड़ी संख्या में बिकते हैं। बाद में ये दीये बनाने वालो के यहां या दुकानों पर बॉक्सों में बंद रहते हैं। लेकिन इस बार एकाएक फूल, पूजन सामग्री की दुकानों पर मिट्टी के दीयों की मांग निकली है। अयोध्या में भगवान राम के मंदिर में प्रतिष्ठा समारोह का आयोजन 22 जनवरी को है, लेकिन पूजन सामग्री की मांग शहर सहित प्रदेश भर में बढ़ गई है। ध्वजा, भगवा झंडे, धार्मिक साहित्य के साथ दीपों की मांग में वृध्दि होना इस बात का सूचक है कि 22 जनवरी को देश में परंपरागत दीपावली जैसा भव्य माहौल होगा। घर घर दीये जलेंगे और पूजन होगा। धार्मिक सामग्री के पूजन पाठ के विक्रेताओं ने बताया कि लोग 15 या 25 मिट्टी के दीपक खरीद कर ले जा रहे हैं।

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