ये पॉलिटिक्स है प्यारे

खाली हाथ क्यों रह गए भोपाल के नजदीकी नेता
अपने बयानों और बेबाकी से सुर्खियों में रहने वाले एक इंदौरी कांग्रेस नेता अभी की गई नियुक्तियों में खाली हाथ नजर आ रहे हैं। हाल ही में जिले में हुई दो कार्यकारी अध्यक्षों की नियुक्ति में इनकी एक नहीं चली और पटवारी तथा पटेल की झोली में एक-एक अध्यक्ष आ गया। फिलहाल कांग्रेस के राजनीतिक हलकों में खबर है कि उक्त नेता अपने विधानसभा क्षेत्र में ज्यादा ध्यान दे रहे हैं, क्योंकि वहां भाजपा के नेताओं ने सेंध लगाना शुरू कर दी है। अगर कुछ गड़बड़ हो गई तो नेताजी को अपनी कुर्सी ऊपर-नीचे हो सकती है। भोपाल से समय मिलते ही नेताजी अपनी विधानसभा में पहुंच जाते हैं जो इंदौर से भोपाल के रास्ते में हैं। अब कहा जा रहा है कि शहर के मामले में कार्यकारी अध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर नेताजी ने अपनी ओर से नाम बढ़ाए हैं। अब इसमें पार्टी उनका कितना सम्मान रखती है, ये देखना है।

लंबी दौड़ है टीनू की
भाजपा के प्रदेश मीडिया सहप्रभारी टीनू जैन भी एक नंबर के उन दावेदारों की फेहरिस्त में शामिल हैं, जो एक नंबर से टिकट की चाह रख रहे हैं। हालांकि जिस तरह की दौड़ टीनू लगा रहे हैं, उसने उनके साथ वालों को बेचैन कर दिया है। टीनू अपने समाज के उच्च स्तरीय लोगों के संपर्क में तो हैं ही, वहीं क्षेत्र में तीन-चार भीड़भरे आयोजन करवाकर उन्होंने अपनी जमीनी पकड़ भी बता दी है। हालांकि टीनू जाहिर तौर पर टिकट की दौड़ से अपने आपको अलग रखकर चल रहे हैं। उन्हें डर है कि भाजपा में जिसका भी नाम टिकट के लिए चला, उसका पत्ता शुरू से ही कट गया।

नया ठीया विनय बाकलीवाल का
जब से बाकलीवाल गांधी भवन से दूर हुए हैं, तब से वे एक नए ठीये पर जरूर नजर आने लगे हैं। पहले वे यदा-कदा यहां दिखते थे, पर अब नियमित हाजिरी भरा रहे हैं। यह ठीया मिल क्षेत्र में है। फिलहाल पार्टी ने बाकलीवाल और उनकी टीम को न्यूट्रल कर रखा है और वे अपना अधिकांश वक्त इधर-उधर बिताते ही देखे जा सकते हैं। श्रमिक क्षेत्र का ठीया छोटा गांधी भवन के नाम से फैमस है और यहां कांग्रेस के कई बड़े नेता नजर आ जाते हैं। यहां की कमान कांग्रेस के अपने जमाने के एक थाटी नेता और मंत्री वर्मा के एक करीबी ने संभाल रखी है।

कांग्रेस नेता ने करवाया साथी की दुकान पर कब्जा
एक समय गांधी भवन में अच्छा-खासा दखल रखने वाले एक कांग्रेसी नेता की मनमानी के किस्से अब आम हो रहे हैं, क्योंकि उनके आका शहर अध्यक्ष के पद पर नहीं हैं। यही नहीं, उन्होंने अपने पॉवर का इस्तेमाल कर अपने ही साथी की दुकान पर कब्जा तक करवा दिया। हालांकि गांधी भवन में बदलाव के बाद अब उस साथी की चल निकली है जो कभी हाशिये पर थे। वे मौके की तलाश में हैं कि अपनी दुकान पर किया गया कब्जा हटवाएं। इसके पहले दोनों के बीच चल रहा विवाद बड़े नेताओं तक भी पहुंचा था, लेकिन हल नहीं निकला। बताया जा रहा हैकि धार रोड की इस दुकान को किराये पर तो ले लिया गया, लेकिन अब उसे खाली नहीं किया जा रहा है। देखना यह है किदूसरे नेता के पॉवर में आने के बाद वे अपने मंसूबे में कितने कामयाब हो पाते हैं? फिलहाल तो वे जैसे-तैसे गांधीभवन में अपनी इंट्री बरकरार रखने में लगे हुए हैं।

बिल्ली के भाग से छींका टूट जाए
भाजपा कार्यालय में पिछले एक साल से एक नेता कुछ ज्यादा ही मेहनत करते दिखाई देते हैं। सुबह जल्दी आकर देर शाम को घर जाने वाले उक्त नेता को आस है कि बिल्ली के भाग्य से छींका टूटें। नगर अध्यक्ष गौरव रणदिवे विधानसभा चुनाव लड़े तो उन्हें अध्यक्ष की कुर्सी नसीब हो जाए, लेकिन कहने वाले कह रहे हैं कि अगर रणदिवे चुनाव भी लड़े तो इनके हाथ कुछ आने वाला नहीं।

अध्यक्ष आए तो प्रभारी गायब
कांग्रेस में जब से अध्यक्ष के रूप में सुरजीतसिंह चड्ढा की नियुक्ति हुई है, उसके बाद से तो इंदौर के संगठन प्रभारी महेंद्र जोशी गायब ही हो गए हैं। वे अब अपने भविष्य को देखते हुए भोपाल की राजनीति में ज्यादा समय दे रहे हैं तो कोई कह रहा है कि वे अस्वस्थ हैं। चाहे कुछ भी हो, कांग्रेस में संगठन प्रभारी न चले थे और न चलेंगे। जब वे सर्वेसर्वा थे तब जरूर उनके आसपास नेता घूमते हुए नजर आते थे, लेकिन अब शहर कांग्रेस के नेता उन्हें पूछ नहीं रहे हैं। मतदाता सूची सुधारने का जो काम उन्हें दे रखा है, उसमें भी वे रुचि कम ही ले रहे हैं। वैसे चड्ढा ने दूसरी ओर संगठन मंत्री बनाकर अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश की है।

शंकर भी हो गए चिठ्ठी और मुलाकाती वाले सांसद
सुमित्रा महाजन की तरह अब शंकर लालवानी भी चिट्ठी और मंत्रियों से मुलाकात वाले सांसद हो गए हैं। एक-दो दिन में वे अपनी पर्सनल मीडिया टीम के मार्फत कोई न कोई फोटो जारी कर देते हैं और बताते हैं कि उन्होंने इंदौर के लिए आज फलां मंत्री से बात की। वहीं लालवानी की चिट्ठियां भी इंदौर से दिल्ली के बीच दौड़ ही रही हैं। एक समय यह सब ताई करती थीं। उसी राह पर लालवानी भी चल पड़े हैं। कहने वाले कहते हैं कि जब भी कोई बड़ी समस्या या मांग होती है तो सांसद भी

बड़ी चिठ्ठी लिख देते हैं। उनकी चिठ्ठी का असर कितना होता है ये तो आने वाले
समय में पता चलता है, लेकिन वे अखबारों की सुर्खियां जरूर बटोर ले जाते हैं कि जो बड़े प्रोजेक्ट के मामले में हो रहा है वह सब उन्हीं के कारण हो रहा है।
कांग्रेस के बाद लगता है भाजपा के मीडिया विभाग में भी कुछ ठीक नहीं चल रहा है। भोपाल मीडिया के दो बड़े पदाधिकारियों के बीच चल रहा शीतयुद्ध संगठन के अनुशासन के डंडे के सामने खुलकर सामने नहीं आ रहा है, लेकिन जिस तरह से भोपाल में दोनों नेता प्रदेश अध्यक्ष के आजू-बाजू हो रहे हंै और उनके विचारों में अंतर आने लगा है, उससे लग रहा है कि इससे संगठन को नुकसान हो सकता है। भोपाल से चल रही इन खबरों में कितनी सच्चाई है, ये तो वे ही जानते हैं, जो इनके बारे में कानाफूसी कर रहे हैं।
-संजीव मालवीय

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