नवरात्रि की अष्टमी तिथि को क्यों कहा जाता है महा अष्टमी, जानें महत्व

डेस्क: हिंदू धर्म में नवरात्रि का खास महत्व है. वैसे तो साल में चार नवरात्रि पड़ती हैं जिनमें से दो मुख्य रूप से मनाई जाती है. पहली चैत्र नवरात्रि, दूसरी शारदीय नवरात्रि. चैत्र नवरात्रि जहां चैत्र मास में पड़ती हैं तो वहीं शारदीय नवरात्रि अश्विम माह में मनाई जाती है. इस दौरान मां दुर्गा के 9 रूपों की पूजा की जाती है. इस साल शारदीय नवरात्र 15 अक्टूबर से शुरू हो रहे हैं और 24 अक्टूबर को इनका समापन होगा. इस दौरान अष्टमी तिथि का खास महत्व होता है जिसे महाअष्टमी भी कहते हैं. इस दिन मां दुर्गा के 8वें स्वरूप मां गौरी की पूजा की जाती है. मां गौरी का वाहन बैल और उनका शस्त्र त्रिशूल है. आइए जानते हैं नवरात्रि के दौरान महा अष्टमी का इतना महत्व क्यों है?

दरअसल मान्यता है कि महाअष्टमी के दिन ही मां दुर्गा ने चंड मुंड राक्षसों का संहार किया था. इसलिए इस तिथि का खास महत्व है. मान्यता है कि इस दिन जो भी भक्त सच्चे दिल से मां दुर्गा की आराधना करता है, उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है और माता रानी का खास आशीर्वाद प्राप्त होता है. इस दिन माता रानी के अस्त्रों की पूजा करने का विधान भी है जिसके चलते इसे वीर अष्टमी भी कहा जाता है. मान्यता है कि ये तिथि काफी कल्याणकारी है. इस दिन निर्जल व्रत रखने से बच्चों की उम्र लंबी होती है. इस दिन पति की लंबी उम्र की कामना करते हुए मां गौरी को लाल चुनरी भी चढ़ाई जाती है.

वैसे तो देशभर में नवरात्रि काफी हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है लेकिन पश्चिम बंगाल में इसकी खास धूम देखने को मिलती है. जगह-जगह बड़े पंडाल लगाए जाते हैं और महाअष्टमी के दिन खास पूजा की जाती है. महा अष्टमी और महा नवमी के दिन धुनुची नाच भी किया जाता है. नवमी तिथि को राम नवमी के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन कन्या पूजन का खास महत्व है. इसमें मां दुर्गा के 9 रूपों के प्रतीक के रूप में 9 कन्याओं को घर बुलाकर प्रेम भाव से भोजन कराया जाता है. मान्यता है कि कन्या पूजन से माता रानी प्रसन्न होती हैं और उनकी कृपा सदेव परिवार पर बनी रहती है. कुछ लोगों के यहां अष्टमी के दिन भी कन्या पूजन किया जाता है. ऐसे में दोनों ही तिथियों का विशेष महत्व है.

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