क्यों भारत के लिए खास है फ्रांस

– आर.के. सिन्हा

भारत-फ्रांस के बीच घनिष्ठ संबंधों की इबारत को नए सिरे से लिखने के इरादे से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आगामी 14 जुलाई को फ्रांस की यात्रा पर जा रहे हैं। वे वहां पर बैस्टिल डे परेड में सम्मानित अतिथि के रूप में शामिल होंगे। मोदीजी की यात्रा के दौरान दोनों देश महत्वपूर्ण रक्षा और व्यापारिक समझौते पर मुहर लगाएंगे। भारतीय नौसेना के लिए फ्रांस के साथ 26 राफेल एम (मरीन) लड़ाकू विमानों का सौदा होने की उम्मीद है। भारत‚ फ्रांस और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ने 8 जून को ओमान की खाड़ी में अपना पहला त्रिपक्षीय समुद्री अभ्यास सफलतापूर्वक संपन्न किया।

इसमें आईएनएस तरकश, फ्रांसीसी जहाज सुरकौफ, फ्रेंच राफेल विमान और यूएई नौसेना समुद्री गश्ती विमान की भागीदारी थी। इस अभ्यास में सतही युद्ध जैसे नौसेना संचालन का एक व्यापक स्पेक्ट्रम देखा गया था, जिसमें सतह के लक्ष्यों पर मिसाइल से सामरिक गोलीबारी और अभ्यास, हेलीकाप्टर क्रॉस डेक लैंडिंग संचालन, उन्नत वायु रक्षा अभ्यास और बोर्डिंग संचालन शामिल थे। मोदीजी की यात्रा से ठीक पहले इस तरह के अभ्यास का उद्देश्य तीनों नौसेनाओं के बीच त्रिपक्षीय सहयोग को बढ़ाना और समुद्री वातावरण में पारंपरिक और गैर-पारंपरिक खतरों को दूर करने के उपायों को अपनाने का मार्ग प्रशस्त करना था।

इस बीच, यह भी महत्वपूर्ण है कि भारत–फ्रांस रणनीतिक साझेदारी के इस साल 25 वर्ष पूरे हो रहे हैं। आपको याद होगा कि प्रधानमंत्री मोदी ने सन 2016 में भारत की विदेश नीति बड़ा बदवाल तब किया था जब उन्होंने फ्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति फ्रांसिस ओलांद की दिल्ली की जगह चंडीगढ़ में अगवानी की थी। मोदीजी से पहले के प्रधानमंत्रियों के दौर में विदेशों से भारत आने वाले राष्ट्राध्यक्ष और प्रधानमंत्री दिल्ली आते थे और उन्हें ज्यादा से ज्यादा आगरा में ताजमहल घुमा दिया जाता था। अब इन महत्वपूर्ण स्थानों में अहमदाबाद, बनारस, चंडीगढ़, बेंगलुरु और तमिलनाडु के मंदिर भी शामिल हो गए हैं। और भी कुछ शहर इस नीति का आने वाले वक्त में हिस्सा बनेंगे।

फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांसिस ओलांद उस साल गणतंत्र दिवस समारोह के मुख्य अतिथि थे। ओलांद और मोदी के बीच चंड़ीगढ़ में विस्तार से गुफ्तुगू हुई। फ्रांस के राष्ट्रपति का भारतीय दौरा चंडीगढ़ से शुरू करने के पीछे एक वजह थी। दरअसल चंडीगढ़ के डिजाइनर ली कार्बूजिए फ्रांस के ही नागरिक थे। यहां पर ली कार्बूजिए के सहयोगी प्रो. जेके चौधरी की चर्चा करना भी समीचिन होगा।

प्रो.जेके चौधरी ने ली कार्बूजिए के साथ काम करके बहुत कुछ सीखा था। दोनों भारत तथा फ्रांस के आर्किटेक्चर पर लंबी चर्चा भी करते थे। प्रो. चौधरी ने आईआईटी दिल्ली को डिजाइन किया था। इनमें क्लास रूम, छात्रावास, हॉल, प्रयोगशालाएं,फैक्ल्टी के फ्लैट, कर्मियों के फ्लैट वगैरह शामिल थे। उनके सामने वास्तव में बड़ी चुनौती थी कि वे इतने विशाल कैंपस में इतनी अलग-अलग उपयोग में आने वाली इमारतों के डिजाइन तैयार करें। इसमें कोई शक नहीं है कि प्रो. चौधरी को फ्रांस के महान आर्किटेक्ट के साथ काम करने के बाद बड़े प्रोजेक्ट पर काम करने का ठोस अनुभव प्राप्त हुआ। दरअसल आईआईटी से पहले दिल्ली में कोई इतना बड़ा शिक्षण संस्थान का कैंपस बना भी नहीं था।पर चंडीगढ़ के निर्माण के बाद उनके पास अनुभव पर्याप्त हो गया था।

फांस के राष्ट्रपति ओलांद की उसी यात्रा के समय फ्रांस ने भारत 33 राफेल लड़ाकू विमान देने का वादा किया था। राफेल की जद में पूरा पाकिस्तान आ जाता है जिससे हमें पाकिस्तान पर काफी बढ़त मिल जाती है। भारत को राफेल विमान मिलने भी लगे हैं।

अगर दोनों देशों के संबंधों के इतिहास पर नजर डालें तो ये सदियों पुराने हैं। 17वीं शताब्दी से 1954 तक, फ़्रांस ने भारत के पुडुचेरी में अपनी औपनिवेशिक उपस्थिति बनाए रखी थी। वहां पर अब भी फ्रांस की संस्कृति और इमारतों पर फ्रांस की वास्तुकला को देखा जा सकता है।

खैर, बेशक,1998 में रणनीतिक साझेदारी की स्थापना के साथ, राष्ट्राध्यक्षों/सरकारी प्रमुखों के स्तर पर नियमित उच्च-स्तरीय आदान-प्रदान और रक्षा, परमाणु जैसे रणनीतिक क्षेत्रों सहित बढ़ते वाणिज्यिक आदान-प्रदान के माध्यम से द्विपक्षीय सहयोग के सभी क्षेत्रों में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है।

फिर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की आगामी फ्रांस यात्रा पर लौटते हैं। ये भारतीय प्रधानमंत्री की तीसरी फ्रांस की यात्रा है। मान कर चलिए कि मोदी और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन व्यापार और अर्थशास्त्र से लेकर ऊर्जा सुरक्षा, आतंकवाद विरोधी, रक्षा और सुरक्षा सहयोग और भारत-प्रशांत में सहयोग जैसे मुद्दों पर भी चर्चा करेंगे। यह भी लग रहा है कि फ्रांस ने पश्चिमी दुनिया में भारत के भरोसेमंद दोस्त और साझेदार के रूप में रूस की जगह ले ली है। भारत ने फ्रांस का तब से विशेष आदर करना शुरू कर दिया है, जब फ्रांस ने संयुक्त राष्ट्र में चीन द्वारा कश्मीर पर बुलाई गई बैठक में भारत के रुख का समर्थन किया था।

फ्रांसीसियों ने पहले भी वैश्विक आतंकवादी मसूद अजहर पर संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव का समर्थन किया था। पुलवामा हमले के बाद भारत ने कूटनीति के मोर्चे पर पाकिस्तान को पूरी तरह से अलग- थलग कर दिया था। इसी के कारण पुलवामा हमले की जिम्मेदारी लेने वाले आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के चीफ मसूद अजहर पर प्रतिबंध लगाने के लिए संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन ने प्रस्ताव पेश किया था। फ्रांस, अमेरिका और ब्रिटेन ने अपने प्रस्ताव में मसूद की वैश्विक यात्राओं पर प्रतिबंध लगाने और उसकी सभी संपत्ति फ्रीज करने की मांग भी की। यह सब यूं ही नहीं हो गया। यह कहते हैं नेतृत्व के हनक का असर। आज मोदीजी ने विश्व को अपनी नेतृत्व क्षमता का मुरीद बना दिया I

यह किसे नहीं पता कि भारत अजहर मसूद को अपना दुश्मन नंबर एक मानता है। पंजाब के पठानकोट के एयरफोर्स बेस पर हुए हमलों में जैश- ए- मोहम्मद के नेता अजहर मसूद का हाथ था। जैश भारत को क्षति पहुंचाने की हर मुमकिन कोशिश करता है। जैश को ताकत पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई से ही मिलती है। आईएसआई पाकिस्तान की सेना का अहम अंग है। वह पाकिस्तान की सेना के इशारों पर ही काम करती है। भारत-फ्रांस को आपसी संबंधों को मजबूती देते हुए दुनिया से आतंकवाद और अजहर मसूद जैसे मानवता के दुश्मनों को खत्म करना ही होगा।

वैसे तो फ्रांस की हालिया सांप्रदायिक हिंसा उसका आंतरिक मामला है, जिस पर सामान्यतः चर्चा नहीं होती I चूंकि, भारत पिछले 1946 से ही ऐसी सांप्रदायिक हिंसा का भुक्तिभोगी रहा है और अब तक उनको असरदार ढंग से नियंत्रित भी करता रहा है। लिहाजा, फ्रांस इस मामले में भी भारत की अनौचारिक सलाह ले सकता है I

(लेखक, वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)

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