SC-ST वर्ग के धनी लोगों को प्रमोशन में आरक्षण को मिलेगा या नहीं अगले महीने होगी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

नई दिल्‍ली। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (SC-ST) को प्रमोशन में आरक्षण (Reservation) के मामले में फिलहाल हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का कहना है कि पहले के फैसलों में जो आरक्षण के पैमाने तय किए हैं। उनमें हम छेड़छाड़ नहीं कर सकते है। इसलिए एससी-एसटी वर्ग को प्रमोशन में क्रीमी लेयर (Creamy layer in promotion) का नियम लागू करने का मामला अब भी लटका हुआ है।
बता दें कि इस वर्ग में क्रीमी लेयर लागू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका भी लंबित है। इसमें मांग की गई है कि संपन्न तबके को आरक्षण का लाभ नहीं दिया जाए। सुनवाई अगले माह होने की संभावना है। याचिका 2018 में दायर की गई थी। तब से इस पर आठ सुनवाई हो चुकी हैं। कोर्ट की कार्य सूची में यह मामला अब अगले दो हफ्तों में मुख्य न्यायाधीश की बेंच के समक्ष सुनवाई होने की सूची में है। हालांकि, एससी-एसटी वर्ग में क्रीमी लेयर कोई भी सरकार लागू नहीं कर रही है, लेकिन केंद्र सरकार इसके लिए चिंतित है, क्योंकि पांच जजों की पीठ ने भी कहा है कि क्रीमी लेयर का नियम एससी-एसटी में भी लागू होगा।


वहीं केंद्र सरकार ने 2019, दिसंबर में मुख्य न्यायाधीश की पीठ से इस मामले को सात जजों की बेंच के समक्ष भेजने की मांग की। इसके बाद यह मामला फरवरी 2020 में मुख्य न्यायाधीश की पीठ के समक्ष लगा और स्थगित हो गया। अब इसकी सुनवाई पूरे दो वर्ष बाद अगले माह होने की संभावना है।
पांच जजों की संविधान पीठ ने जनरैल सिंह बनाम लक्ष्मी नारायण गुप्ता मामले (2018) में एम नगराज केस (2006 में निर्णित) में दिए गए क्रीमी लेयर के नियम को लागू करने के लिए कहा था। कोर्ट का कहना था कि क्रीमी लेयर एससी-एसटी में भी लागू होगी, क्योंकि इससे सामाजिक कल्याण को कोई खतरा नहीं है। पूरे आरक्षण का मकसद यही है कि समाज के पिछड़े वर्ग को आगे लान, लेकिन, यह तब संभव नहीं होगा, यदि वर्ग के अंदर क्रीमीलेयर वाला समूह ही सभी नौकरियां हासिल कर ले और शेष वर्ग हमेशा की तरह से पिछड़ा ही रहे। जनरैल मामले में भी केंद्र सरकार ने आग्रह किया था कि मामले को सात जजों की पीठ को भेजा जाए, लेकिन संविधान पीठ ने सरकार का आग्रह खारिज कर दिया था।
जानिए क्या है क्रीमी लेयर
क्रीमी लेयर की धारणा सबसे पहले ऐतिहासिक 9 जजों के मंडल फैसले (नवंबर 16, 1992) में सामने आई। इस फैसले में कोर्ट ने कहा कि ओबीसी के आर्थिक और शैक्षणिक रूप से अगड़े लोगों को क्रीमी लेयर कहा जाएगा, ये वर्ग संपन्न होने के कारण सभी नौकरियों को ले जाता है और दूसरे लोगों को (जो उस समूह के गरीब हैं) लाभ नहीं लेने देता। कोर्ट ने इस फैसले में ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण देने को सही ठहराया, लेकिन कहा कि क्रीमी लेयर को यह लाभ न दिया जाए। इस समूह की पहचान के लिए कोर्ट ने आय का मानक रखा, जिसे सरकार ने समय-समय पर बढ़ाया और अब यह 8 लाख रुपये वार्षिक कर दिया है। इस फैसले के कुछ हिस्से 2006 में नगराज केस में ले लिए गए, जिसमें एससी-एसटी को प्रमोशन देने और बैकलाग भरने के लिए क्रमश: संशोधन (अनुच्छेद 16.4.ए और बी) को सही ठहराया गया था। लेकिन, कोर्ट ने इसके लिए कुछ परीक्षण दिए थे, जिनमें पिछड़ेपन का मात्रात्मक डाटा एकत्र करना आवश्यक था।

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