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इस क्रूर आर्मी चीफ ने पाकिस्‍तान को बनाया कट्टर, बदल डाले थे सारे कानून, पढ़े जनरल की पूरी कहानी

नई दिल्‍ली । पाकिस्तान (Pakistan) में सेना प्रमुख (army chief) बनने का मतलब है कि आपके हाथ में न सिर्फ सैन्य शक्ति आ गई है, बल्कि सियासत और सरकार (politics and government) में भी आपकी पकड़ हो गई है. पाकिस्तान (Pakistan) का इतिहास बताता है कि सरकार चलानी है तो आर्मी की सुननी होगी और नहीं सुनी तो फिर तख्तापलट के लिए तैयार रहिए.

वहां सेना की कितनी चलती है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पाकिस्तान को बने 10 साल ही हुए थे और वहां सेना ने तख्तापलट कर दिया था. पाकिस्तान में पहला तख्तापलट 7 अक्टूबर 1958 को जनरल अयूब खान ने किया और मार्शल लॉ लगा दिया.

पाकिस्तान में अब फिर से नए आर्मी चीफ की नियुक्ति हुई है. उनका नाम जनरल आसिम मुनीर है. आसिम मुनीर पहले आईएसआई प्रमुख थे. उन्हें इमरान खान का दुश्मन और जनरल कमर जावेद बाजवा का करीबी माना जाता है. जनरल बाजवा दो दिन पहले ही रिटायर हुए हैं. अब नए सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर का दखल सरकार में कितना होता है, ये तो आने वाला वक्त बताएगा. लेकिन पाकिस्तान के इतिहास में एक ऐसा सेना प्रमुख भी हुआ है, जिसे अगर आतंकवाद का ‘पापा’ कहा जाए तो शायद गलत नहीं होगा.


उसका नाम था जनरल जिया उल-हक
1924 के अगस्त में 12 तारीख को जिया उल-हक पैदा हुए. जगह थी जालंधर. दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेंट स्टीफंस कॉलेज और बाद में देहरादून में इंडियन मिलिट्री अकादमी में पढ़ाई की. फिर बंटवारा हुआ और परिवार चला गया पाकिस्तान.

1970 के दशक में जॉर्डन में गृह युद्ध छिड़ गया. इस युद्ध में पाकिस्तान भी गया. पाकिस्तानी सेना की कमान संभाली जिया उल-हक ने. इससे जिया उल-हक का कद बढ़ गया.

इसके बाद 1971 की जंग हुई, जिसमें पाकिस्तान बुरी तरह हार गया. सरकार बदल गई और प्रधानमंत्री यानी वजीर-ए-आजम बन गए जुल्फिकार अली भुट्टो. कहा जाता है कि जिया अपनी बात मनमाने में काफी तेज थे. जिया ने भुट्टो की खूब चमचागिरी भी की. कहा जाता है कि एक बार पीएम भुट्टो मुल्तान पहुंचे. यहां जिया उल-हक ने जवानों की पत्नियों और बच्चों के हाथों भुट्टो के ऊपर फूलों की बरसात करवा दी. ऐसा करके वो भुट्टो की नजर में आ गए.

1976 में टिक्का खान के रिटायरमेंट के बाद सेना प्रमुख की कुर्सी खाली हो गई. तब भुट्टो ने सोचा कि किसी ऐसे शख्स को सेना प्रमुख बनाया जाए, जो उनकी बात सुने. इस ढांचे में जिया उल-हक फिट बैठ रहे थे, सो उन्हें सेना प्रमुख बना दिया गया.

लेकिन यही जिया उल-हक आगे चलकर भुट्टो के लिए आस्तीन का सांप बन गए. 1977 में जिया उल-हक ने तख्तापलट कर दिया और जुल्फिकार अली भुट्टो को जेल में डाल दिया. जिया उल-हक ने 5 जुलाई 1977 को मार्शल लॉ लागू कर दिया. 18 मार्च 1978 को लाहौर हाईकोर्ट ने भुट्टो को हत्या के एक मामले में दोषी पाया और फांसी की सजा सुनाई. सुप्रीम कोर्ट से भी अपील खारिज होने के बाद 4 अप्रैल 1979 को भुट्टो को फांसी पर चढ़ा दिया गया.

पाकिस्तान में शरिया लागू किया
तख्तापलट करने के बाद जनरल जिया उल-हक ने पाकिस्तान का इस्लामीकरण करना शुरू कर दिया. जिया उल-हक ने देश में निजाम-ए-मुस्तफा यानी पैगम्बर का शासन या शरिया लागू कर दिया.

उन्होंने कहा, ‘पाकिस्तान, जो इस्लाम के नाम पर बना था, वो तभी जिंदा रहेगा जब इस्लाम से जुड़ा रहेगा. यही कारण है कि मैं पाकिस्तान के लिए इस्लामी प्रणाली की शुरुआत को जरूरी शर्त मानता हूं.’ जिया उल-हक का मानना था कि धर्मनिरपेक्षता अंग्रेजों से विरासत में मिली है.

जिया उल-हक ने सभी अदालतों में शरिया बेंच बनाने का आदेश दिया. साथ ही ये भी आदेश दिया कि अब अपराधियों को शरिया कानून के तहत ही सजा दी जाएगी. उन्होंने जमात-ए-इस्लामी पार्टी के 10 हजार से ज्यादा लोगों को सरकारी पदों पर नियुक्त किया, ताकि अगर कल को जिया की मौत हो जाती है तो वो उनके एजेंडे को जारी रखें.

थोड़ा पीछे चलते हैं. 1970 के चुनाव की बात है. इस चुनाव में जुल्फिकार अली भुट्टो ने ‘रोटी, कपड़ा और मकान’ का नारा दिया. भुट्टो को बड़ी जीत तो नहीं मिली, लेकिन पश्चिमी पाकिस्तान में उन्हें जीत मिली. भुट्टो के आने के बाद इस्लामीकरण कमजोर होने लगा था, लेकिन जिया उल-हक ने इसे तेज कर दिया.

पाकिस्तान में जब इस्लामीकरण शुरू होने लगा तो ब्रिटिश पत्रकार को दिए इंटरव्यू में जिया उल-हक ने इसका बचाव करते हुए कहा, ‘पाकिस्तान का आधार इस्लाम था. मुसलमानों की संस्कृति अलग थी. इसीलिए पाकिस्तान बना था. भुट्टो ने अपने समय में जो भी किया, उसने समाज के ताने-बाने को बिगाड़ दिया. अब हम फिर से इस्लाम में वापस जा रहे हैं. ये मैं या मेरी सरकार नहीं है जो इस्लाम थोप रही है. 99 फीसदी लोग यही चाहते हैं. भुट्टो के खिलाफ सड़कों पर हुई हिंसा यही दिखाती है.’

…. बदल डाले सारे कानून
1978 से 1985 तक जनरल जिया उल-हक ने पाकिस्तान को इस्लामिक राष्ट्र में बदलने के लिए वो सबकुछ किया, जो किया जा सकता था. उन्होंने कानून बदल डाले. पाकिस्तान पीनल कोड की जगह शरिया कानून ने ले ली.

इस कानून के लागू होते ही पाकिस्तान सदियों पीछे चला गया. अपराधियों के लिए वो सजाएं थीं, जो सदियों पहले हुआ करती थीं. मसलन, कोड़े मारना. पत्थर मार-मारकर जान ले लेना. चौराहे पर सूली पर लटका देना. किसी महिला के साथ बलात्कार हुआ है तो ये तभी माना जाएगा जब उसके समर्थन में चार पुरुष गवाही देंगे, वरना उसी महिला को एडल्ट्री का दोषी मानते हुए मौत के घाट उतार दिया जाएगा. चोरी की है तो हाथ-पैर काट दिए जाएंगे.

महिलाओं के लिए अपना सिर ढंकना जरूरी हो गया. फिर चाहे वो स्कूल-कॉलेज जाने वाली लड़कियां हों या फिर टीवी पर दिखने वालीं एंकर या कोई एक्ट्रेस. महिलाओं पर कई सारी पाबंदियां लगा दी गईं. ऐसा भी कहा जाता है कि उस जमाने में अगर महिला गवाही दे रही है तो उसको ज्यादा तवज्जो भी नहीं दी जाती थी.

1981 में एहतेराम-ए-रमजान अध्यादेश लाया गया था, जिसमें रमजान के दौरान दिन में सरेआम खाने-पीने को गैर-कानूनी करार दिया गया था. इसका उल्लंघन करने पर तीन महीने की कैद और 500 रुपये के जुर्माना देने की सजा होती थी. इतना ही नहीं, लोगों के पर्सनल अकाउंट से हर साल एक बार टैक्स काटा जाता था. ये टैक्स रमजान के पहले दिन कटता था.

जनरल जिया-उल हक की सरकार ईशनिंदा के लिए भी कठोर कानून बना दिया. इसके तहत अगर कोई भी इस्लाम या पैगम्बर के खिलाफ कुछ भी अपमानजनक बोलता है या लिखता है या कुछ करता है तो उसे कैद या जुर्माने की सजा दी जा सकती थी. और तो और एक अध्यादेश लाकर अहमदिया मुसलमानों से मुसलमानों का दर्जा ही छीन लिया गया. अध्यादेश के मुताबिक, अहमदिया अब मुसलमान नहीं रहे थे और वो खुद को मुसलमान भी नहीं कह सकते थे.

आतंकवाद का ‘पापा’
जनरल जिया उल-हक ने सरकार में आते ही दो बड़े काम किए. पहला- मुल्क का इस्लामीकरण और दूसरा- लोगों को ज्यादा से ज्यादा कट्टर बनाना. इस्लामीकरण के लिए तो शरिया कानून लागू कर दिया, महिलाओं पर पाबंदी लगा दी. अब लोगों को कट्टर कैसे बनाया जाए? इसके लिए खूब सारे मदरसे खोले गए. तालीम के नाम पर सिर्फ मजहबी बातें सिखाई जाने लगीं.

पाकिस्तान में जब ये सब चल रहा था, तब एक बड़ी घटना हुई. वो थी अफगानिस्तान पर सोवियत संघ का हमला. पाकिस्तान ने अमेरिका के साथ खड़े होने का फैसला लिया. सोवियत को हराने के लिए अमेरिका और सऊदी ने मुजाहिदीन खड़े किए और इस जंग को नाम दिया ‘जिहाद’ का. पाकिस्तान ने इसमें मदद की. इससे पाकिस्तान को ही नुकसान हुआ और वहां कट्टरता और बढ़ गई.

इस आग में घी डालने का काम ईरान की इस्लामिक क्रांति और सऊदी के मक्का में स्थित ग्रैंड मस्जिद पर इस्लामिक कट्टरपंथियों के कब्जे ने किया. ग्रैंड मस्जिद को सबसे पवित्र माना जाता है. इस्लामिक कट्टरपंथियों ने यहां कब्जा इसलिए कर लिया, क्योंकि उनका कहना था कि सऊदी इस्लाम के रास्ते से भटक रहा है. वहीं, ईरान की शिया क्रांति सऊदी के लिए बड़ा झटका थी.

पाकिस्तान पर सऊदी अरब का प्रभाव था. सऊदी ने पाकिस्तान को शिया विरोधी नीतियां बढ़ाने पर जोर दिया. इससे न सिर्फ पाकिस्तान और कट्टर बना, बल्कि वहां के अल्पसंख्यकों की हालत भी खराब हो गई.

वहीं, अफगानिस्तान युद्ध से पाकिस्तान को सिर्फ तीन चीजें मिलीं. एक- ड्रग्स की लत. दूसरा- दिमाग में मजहबी नफरत और तीसरा- खूब सारे हथियार.

सोवियत सेना के खिलाफ मुजाहिदीन तैयार करने के लिए जिया उल-हक ने जो तरीका अपनाया, वो बहुत खतरनाक था. हुआ ये कि जिया उल-हक ने मौत की सजा पाए सैकड़ों लोगों को इकट्ठा किया और कहा कि अब अल्लाह का काम तुम्हें आगे बढ़ाना है.

जब अफगानिस्तान युद्ध खत्म हो रहा था, तभी इन मुजाहिदीनों के समूहों से अल-कायदा बना और बाद में इसी से बना तालिबान. वही अल-कायदा जिसका सरगना ओसामा बिन लादेन था. और वही तालिबान जो अभी अफगानिस्तान में राज कर रहा है.

ऑपरेशन टोपाकः भारत के खिलाफ खतरनाक साजिश
पहले 1948, फिर 1965 और उसके बाद 1971. पाकिस्तान तीन बार भारत से जंग हार चुका था. जनरल जिया उल-हक का मानना था कि ये जंग इसलिए हारे क्योंकि सेना ने गलतियां की थीं.

इसके लिए जनरल जिया उल-हक ने ‘ऑपरेशन टोपाक’ शुरू किया. ऑपरेशन टोपाक का मकसद भारत के टुकड़े करना और कश्मीर को भारत से अलग करना था. इस ऑपरेशन पर सेना और आईएसआई ने मिलकर काम किया. इस ऑपरेशन को सिर्फ कश्मीर तक ही सीमित नहीं रखना था, बल्कि भारत के और भी हिस्सों तक फैलाने की साजिश थी.

जनरल जिया ने तरकीब अपनाई कि बाहर से आतंकी भेजने की बजाय कश्मीर के अंदर से ही आतंकी पैदा किए जाएं. इसके लिए स्थानीय युवाओं को भड़काया गया.

ऑपरेशन टोपाक ने कश्मीर में हिंसा का दौर शुरू किया. जमात-ए-इस्लामी और जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट जैसे अलगाववादी संगठनों का इस्तेमाल किया गया. यही वजह थी कि 90 का दशक शुरू होते-होते कश्मीर जलने लगा और आतंकवादी घटनाएं बढ़ गईं.

ऐसी मौत हुई कि पहचाना तक नहीं गया
17 अगस्त 1988 को पाकिस्तान के बहावलपुर एयरबेस से दोपहर 3 बजकर 46 मिनट पर एक विमान उड़ा. इस विमान में जनरल जिया उल-हक बैठे थे. उनके साथ पाकिस्तानी सेना के सीनियर अफसर भी उस विमान में थे. अमेरिका के राजदूत आर्नल्ड रफेल भी इसमें बैठे थे.

विमान को उड़ान भरे 5-7 मिनट ही हुए थे और एयरबेस से मात्र 18 किलोमीटर दूर ये क्रैश हो गया. आग की लपटें दूर से दिखाई पड़ रही थीं. इस विमान में 31 लोग सवार थे और सभी जलकर खाक हो गए थे. जिया उल-हक की लाश भी पहचान में नहीं आ रही थी.

हालांकि, कुछ लोग हैं जो उनकी मौत को मौत नहीं, हत्या कहते हैं. उनके समर्थक कहते हैं कि उन्हें अमेरिका ने मरवाया. तो कुछ का कहना है कि अफगानिस्तान का बदला लेने के लिए सोवियत संघ ने ये सब करवाया.

ऐसा भी कहा जाता है कि जिस समय उनकी मौत हुई उस समय सियाचिन के मुद्दे पर भारत और पाकिस्तान के बीच अहम बातचीत हो रही थी. ये बातचीत पाकिस्तान की पहल पर ही शुरू हुई थी. जनरल जिया उल-हक ने इस बातचीत को मंजूरी दी थी. माना जाता है कि जो लोग इस बातचीत के खिलाफ थे, उन्होंने ही जनरल जिया की हत्या करवाई हो.

हालांकि, उनकी मौत अब तक रहस्य बनी हुई है. पाकिस्तान के इतिहास में राष्ट्रपति या यूं कहें कि सैन्य तानाशाह के रूप में उनका कार्यकाल सबसे लंबा रहा है. वो अब तक के सबसे विवादित जनरल रहे हैं. उनके विरोधी कहते हैं कि जनरल जिया उल-हक ने अपने कार्यकाल में जो कुछ किया, उसका नतीजा पाकिस्तान आज तक भुगत रहा है.

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