
ढाका. बांग्लादेश (Bangladesh) की आर्थिक स्थिति (Economic situation) लगातार कठिन होती जा रही है और अब देश के राजस्व प्रमुख (Revenue Chief) ने चेतावनी (warning) दी है कि बांग्लादेश ‘कर्ज के जाल’ में फंस चुका है। सरकार की कमाई के मुकाबले कर्ज भुगतान अब बजट का दूसरा सबसे बड़ा खर्च बन गया है, जबकि टैक्स से होने वाली आय बेहद गिर चुकी है। ढाका में आयोजित एक सेमिनार में राष्ट्रीय राजस्व बोर्ड (एनबीआर) के चेयरमैन एम अब्दुर रहमान खान ने कहा, ‘हम पहले ही कर्ज के जाल में फंस चुके हैं। जब तक इसे स्वीकार नहीं करेंगे, आगे का रास्ता नहीं मिल सकता।’
बजट में ब्याज भुगतान बना बड़ा बोझ
प्रमुख अर्थशास्त्री और थिंक टैंक सीपीडी के शोधकर्ता मुस्तफिजुर रहमान ने बताया कि पहले किसानों, शिक्षा और सामाजिक कल्याण पर खर्च बजट का दूसरा सबसे बड़ा हिस्सा होता था, लेकिन अब उसकी जगह कर्ज पर ब्याज ने ले ली है। उन्होंने कहा कि यह स्थिति साफ दिखाती है कि बांग्लादेश की वित्तीय स्थिति दबाव में है।
बजट पहली बार छोटा हुआ
वित्त सचिव एम खैरुज्जमान मोजुम्दार ने कहा कि इस साल देश का राष्ट्रीय बजट इतिहास में पहली बार घटाया गया है। उन्होंने देश की स्थिति को एक उदाहरण से समझाया, ‘यह वैसा ही है जैसे पहले से बेहद दुबले व्यक्ति को और पतला होने के लिए कहा जाए।’ उन्होंने चेतावनी दी कि यदि खर्चों पर यह दबाव जारी रहा, तो आने वाले समय में विकास रुक सकता है और अर्थव्यवस्था की बुनियाद कमजोर हो सकती है।
बाहरी कर्ज में तेज उछाल
विश्व बैंक की ‘इंटरनेशनल डेब्ट रिपोर्ट 2025’ के अनुसार, पिछले पांच वर्षों में बांग्लादेश का बाहरी कर्ज 42 प्रतिशत बढ़कर 104.48 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। बाहरी कर्ज अब निर्यात के 192 प्रतिशत के बराबर है, कर्ज चुकाने में निर्यात आमदनी का 16 प्रतिशत खर्च हो रहा है विश्व बैंक ने बांग्लादेश को उन देशों में शामिल किया है जहां कर्ज भुगतान का दबाव सबसे तेजी से बढ़ रहा है। इस सूची में दक्षिण एशिया से केवल श्रीलंका और बांग्लादेश शामिल हैं।
बैंकिंग सिस्टम पर संकट- रिकॉर्ड स्तर पर डिफॉल्ट लोन
बांग्लादेश बैंक के अनुसार, केवल छह महीनों में डिफॉल्ट लोन में टीके 2.24 लाख करोड़ की बढ़ोतरी हुई, अब कुल फंसा हुआ कर्ज टीके 6.44 लाख करोड़ तक पहुंच गया है, यह देश की कुल बैंकिंग क्रेडिट का 35.7 प्रतिशत है। विशेषज्ञों के अनुसार इतनी बड़ी मात्रा में डिफॉल्ट लोन बैंकिंग सिस्टम की कमजोरी, प्रशासनिक गड़बड़ियों और वित्तीय अव्यवस्था का संकेत है।
निवेश में भी ऐतिहासिक गिरावट
स्थानीय मीडिया प्रोथोम आलो के मुताबिक, देश में निवेश में ऐसी गिरावट पहले कभी नहीं देखी गई। अखबार ने इसके कारणों में शामिल किया हैं, इसमें राजनीतिक अस्थिरता और अनिश्चितता, ऊर्जा संकट, ऊंची ब्याज दरें, महंगाई, कम वेतन और घटती खरीद क्षमता शामिल हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि संकट से निकलने का एकमात्र समाधान है, टैक्स बढ़ाना, कर्ज प्रबंधन सख्त करना, और बैंकिंग ढांचा मजबूत करना।
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