विदेश व्‍यापार

रूस और यूक्रेन की जंग के बिच, तेल की कीमतों में होगी बढ़ोतरी, महंगाई भी छुएगी आसमान

नई दिल्ली। पूरी दुनिया को रूस और यूक्रेन (Russia and Ukraine) के बीच बढ़ते तनाव का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। दोनों देशों में संघर्ष की संभावनाओं के मद्देनजर कच्चे माल (raw material) की कीमतों में लगातार इजाफा देखने को मिल रहा है। यूक्रेन पर रूसी आक्रमण (Russian invasion of Ukraine) के खतरे को देखते हुए कीमतों में पिछले सात वर्षो में उच्च बढ़ोतरी देखी गई है जिससे महंगाई दरों में इजाफा होने से इनकार नहीं किया जा सकता है। जानकारी के मुताबिक यूक्रेन से जंग या फिर अमेरिका (America) द्वारा रूस पर प्रतिबंध की सूरत में गैस, धातु, खाद्य पदार्थों सहित कई चीजों की कीमतें आसमान छू सकती हैं और नतीजतन यूरोप के साथ पूरी दुनिया को एक बड़े संकट से गुजरना पड़ेगा।

यह रुख भारत के लिए काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि वह अपनी कच्चे तेल संबंधी आवश्यकताओं पर विदेशी आयात (foreign imports) पर अधिक निर्भर है। अंतरराष्ट्रीय बाजार (International market) में इसकी कीमतों में इजाफा होने से देश में घरेलू बाजार में तेल कीमतों में बढ़ोतरी होने से इसका महंगाई पर सीधा असर पड़ेगा। रूस और यूक्रेन के बीच बढ़ते तनाव से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी होने से यह लगभग 95 डालर प्रति बैरल तक हो गई है जिससे अर्थव्यवस्था पर एक बार फिर महंगाई का दबाव बढ़ सकता है। ब्रिटेन में तेल की कीमत 100 डॉलर प्रति बैरल के करीब है और दोनों मुल्कों में जंग हुई, तो यह कीमत 150 डॉलर प्रति बैरल तक जा सकती है। इसके साथ युद्ध की स्थिति में दूसरे देशों को अपने व्यापार मार्ग में बदलाव करना होगा, जिससे महंगाई में और इजाफा होने की गुंजाइश है।


गैस बाजारों पर भी रूस और यूक्रेन के बीच संभावित युद्ध (potential war) का असर देखने को मिल रहा है। यूरोप के गैस बाजार सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं। कीमतों में बढ़ोतरी का आलम यह है कि पिछले करीब 1 साल में गैस के दाम में पांच गुना तक इजाफा हुआ है। अगर युद्ध होता है, तो यूरोपीय देशों को भेजे जाने वाली गैस आपूर्ति में रुकावट पैदा हो सकती है और ऐसा इसलिए क्योंकि इसका करीब एक-तिहाई हिस्सा यूक्रेन के रास्ते ही पहुंचाया जाता है।

युद्ध की हालत में लागू प्रतिबंधों की वजह से व्यापार रुक सकता है और ऐसे में गैस कि किल्लत लाजिमी है। 1960 के कोल्ड वॉर के बाद ये पहली बार है जब परमाणु शक्तियों से लैस रूस और अमेरिका युद्ध के कगार पर खड़े हैं. पूरी दुनिया में तीसरे विश्वयुद्ध की आशंका गहरा रही है। यूक्रेन एक जमाने में रूसी साम्राज्य का हिस्सा हुआ करता था। फिर सोवियत संघ (USSR) बना, तब भी वह उसमें शामिल रहा, लेकिन USSR के विघटन के बाद यूक्रेन ने 1991 में खुद को आजाद देश घोषित कर दिया।

इसके बाद उसने रूस के बजाय अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों से रिश्ते मजबूत किए। इससे खफा रूस लगाताार यूक्रेन में विद्रोह को हवा और समर्थन देता रहा है। वह यूक्रेन को वापस हासिल करने की कोशिश में है। वह पहले ही यूक्रेन के एक शहर ‘क्रीमिया’ पर कब्जा करके उसे अपना हिस्सा बना चुका है। दरअसल, यूक्रेन को अमेरिका और उसके सहयोगी देश अपने सैन्य गठजोड़- उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (NATO) में शामिल करने की तैयारी कर रहे हैं ताकि रूस पर उसके जरिए दबाव बनाया जा सके, लेकिन रूस यूक्रेन में नाटो सेनाओं की मौजूदगी और सैन्य अभ्यास आदि का विरोध कर रहा है।

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