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जन्मभूमि पर जन्मोत्सव का उत्साह

– डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

श्री राम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण कार्य प्रगति पर है। यहां भूमि पूजन के साथ ही पांच सौ वर्ष पुराना सपना साकार होने लगा था। लेकिन यहां जन्मोत्सव के आयोजन हेतु करीब दो वर्षों तक प्रतीक्षा करनी पड़ी। कोरोना संकट के कारण यहां सार्वजनिक आयोजन संभव नहीं हुआ। अंततः यह सपना भी पूरा हुआ। इसबार जन्मभूमि पर भव्य जन्मोत्सव का आयोजन किया गया-
अवधपुरी सोहइ एहि भाँती।
प्रभुहि मिलन आई जनु राती॥
देखि भानु जनु मन सकुचानी। तदपि बनी संध्या अनुमानी॥

श्री राम जन्म के पूर्व की स्थिति का गोस्वामी जी सुंदर चित्रण करते है-
जोग लगन ग्रह बार तिथि सकल भए अनुकूल।

कुछ वर्ष पहले तक जन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण कार्य में अनेक बाधाएं दिखाई दे रही थी। लेकिन सभी बाधाओं का निवारण हो गया। सामाजिक सौहार्द के साथ श्री रामलला जन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण हेतु भूमि पूजन सम्पन्न हुआ था। अयोध्या में श्रीराम जन्मस्थान के प्रति करोड़ों हिंदुओं की आस्था रही है। इसके अलावा यहां मंदिर होने के पुरातात्विक प्रमाण भी उपलब्ध थे।

स्कन्दपुराण, वाल्मीकि रामायण, वशिष्ठ संहिता, रामचरित मानस जैसे सैकड़ों ग्रंथों में श्रीराम जन्मभूमि का उल्लेख है।भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षणों का भी यही निष्कर्ष रहा है। विवादित ढांचे की दीवार पांच क्रमांक पांच में मकर चिन्ह था। निर्माण हिन्दू कला के अनुरूप शुंगकाल से प्रारंभ हुआ था। सिविल इंजीनियरिग के हिसाब से भी पुराने ढांचे पर मस्जिद का निर्माण हुआ था। यह गोलाकार हिन्दू धार्मिक स्थल था। इसकी रचना श्रावस्ती के चेरीनाथ शिव मंदिर की तरह है। चन्द्रेह रीवा का शिवमन्दिर, कुरारी फतेहपुर का शिवमन्दिर, तिण्डुलि सूर्य मंदिर की रचना भी जन्मभूमि मंदिर की तरह थी।

पुरातत्व प्रमाण ऐसे हैं कि राजपूत काल तक मंदिर सुरक्षित था। इसके आसपास रिहायशी बस्ती नहीं थी। स्थापत्य के हिन्दू चिन्ह उपलब्ध रहे हैं, जिनमें घट पल्लव, स्तम्भ, पुष्प, गरुण स्तंभ, देवी-देवताओं के चित्र, नागरी लिपि के शिलालेख, बीस लाइन का विष्णु हरि शिलालेख है। बताया जाता है कि 1528 में बाबर के सेनापति मीरबाकी ने मंदिर का विध्वंस करके मस्जिद का निर्माण कराया था।

अयोध्या धाम के प्रति भारत ही नहीं अनेक देशों के करोड़ों लोगों की आस्था है। गोस्वामी तुलसीदास ने इसका सुंदर उल्लेख किया है-
बंदउँ अवध पुरी अति पावनि।
सरजू सरि कलि कलुष नसावनि॥

महर्षि वाल्मीकि ने भी रामकथा पर भावपूर्ण रचना की है। रामायण के माध्यम से उन्होंने यह कथा जन-जन तक पहुंचाई थी। जहां प्रभु अवतार लेते हैं, वह स्थल स्वतः तीर्थ बन जाता है। त्रेता युग से अयोध्या इसी रूप में प्रतिष्ठित रही। मुगलकाल में यहां मंदिर का विध्वंस हुआ। पांच सौ वर्षो तक जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण की प्रतीक्षा व प्रयास होते रहे। सदियों बाद श्रीराम जन्मस्थान पर जन्मोत्सव का आयोजन हुआ। दूरदर्शन पर इसका सजीव प्रसारण किया गया।

पहले यह प्रसारण कनक भवन से हुआ करता था। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जन्मोत्सव को भव्य रूप में मनाने का निर्णय लिया। यहां की तैयारियों को देखने वह स्वयं अयोध्या यात्रा पर आए थे। समारोह के सजीव प्रसारण का आग्रह भी उनका था। जिससे अयोध्या में रामनवमी पर राम जन्मोत्सव का देश-विदेश में रहने वाले रामभक्त घर बैठे अवलोकन कर सकें। पहली बार दूरदर्शन, एएनआई और आकाशवाणी पर राम जन्मभूमि परिसर से कार्यक्रम का लाइव प्रसारण किया गया। करीब दो वर्ष पूर्व श्रीराम लला को टेंट से बाहर लाकर मानस मंदिर प्रांगण में फाइवर के मंदिर में विराजमान किया था। उसके बाद रामनवमी के त्योहार को भव्यता से मनाने का निर्णय लिया गया।

मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या में श्री रामलला के दर्शन की अपनी परम्परा का निर्वाह किया था। पिछली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद जब वह अयोध्या आये थे, तब श्री रामजन्मभूमि पर यथास्थिति थी। योगी ने अपनी योजना के अनुरूप यहां पर्यटन विकास संबन्धी कार्य शुरू कर दिए थे। फिर वह समय भी आया जिसकी पांच सदियों से प्रतीक्षा थी। मंदिर निर्माण के लिए भूमिपूजन हुआ। इस बार योगी जब अयोध्या पहुंचे तो स्थिति अलग रही। अयोध्या में योगी आदित्यनाथ ने अंतरराष्ट्रीय रामकथा संग्रहालय में चैत्र रामनवमी मेले की तैयारी के संबंध में समीक्षा की थी। उन्होंने कहा था कि इस आयोजन की तैयारी इस प्रकार से की जाए कि मेला पूरी भव्यता और दिव्यता के साथ आयोजित हो और अयोध्या को विश्व मानचित्र पर लाने में सहायक बने।

रामनवमी के बाद भी प्रतिदिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु पूरे भारत से आएंगे। इसके दृष्टिगत अयोध्या में ऐसी व्यवस्था सृजित की गई जिससे लोगों को प्रवेश करते ही उन्हें पूरा वातावरण राममय लगे, जिससे सभी श्रद्धालु अपने गृह जनपद एक अच्छा संदेश लेकर जाएं। अयोध्या में चुनाव से पूर्व चल रही विकास योजनाएं के लंबित कार्य पुनः तेजी से शुरू किए गए है। योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि प्रभु श्रीराम की नगरी अयोध्या मंदिर निर्माण का आह्वान कर रही है। मंदिर निर्माण के मद्देनजर पहला चरण संपन्न हो गया है। मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम त्रिपाल से नए आसन पर विराजमान हो गए हैं। अब इसके बाद मंदिर निर्माण की दिशा में आगे की प्रक्रिया चल रही है।

प्रभु के अवतार लेने से पूर्व सभी ग्रह नक्षत्र अनुकूल हो गए थे। पांच सौ वर्षों बाद इसी स्थल पर भव्य मंदिर निर्माण के पहले भी अनुकूल स्थिति बनी थी। केंद्र में नरेंद्र मोदी व उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनना भी संयोग ही था। फिर योगी आदित्यनाथ के प्रयासों से अयोध्या में उत्साह का संचार हुआ है। उन्होंने त्रेता युग के दीपोत्सव के साथ अपनी कार्ययोजना का शुभारंभ किया था। यह एक पक्षीय कार्यक्रम नहीं था। योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या जी के विकास को इसके साथ जोड़ दिया था। उनका कहना था कि पिछली सरकारें अयोध्या जी का नाम लेने से डरती थी। जबकि योगी समय-समय पर अयोध्या जी की यात्रा पर आते रहे हैं। प्रत्येक बार वह विकास की योजनाएं भी घोषित करते थे। उनके क्रियान्वयन पर ध्यान देते थे। पहले दीपोत्सव के कीर्तिमान कायम हुए। यहां रामलीला सदियों से हो रही थी। किंतु विगत कुछ वर्षों के दौरान विलक्षण उत्साह का संचार देखने को मिला। रामलीला की भव्यता का नया अध्याय प्रारंभ हुआ। सरयू तट स्थित लक्ष्मण किला परिसर में नौ दिवसीय रामलीला प्रारंभ हुई थी। इसमें प्रसिद्ध फिल्मी सितारों ने इसमें मंचन किया था। कैलाश पर्वत पर भगवान शिव और माता पार्वती एक दूसरे से वार्ता कर रहे होते हैं-

रची महेस निज मानस राखा

माता पार्वती उनसे रामकथा सुनाने को कहती है। शिव जी कहते हैं कि तुमने राम जी का प्रसंग पूंछा, इससे तुम लोकों को पवित्र कर देने वाली गंगा के समान रामकथा की हेतु बनी।

जब जब होई धरम कै हानि। बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी।।

तब तब प्रभु धरि विविध शरीरा।

हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा।।

अयोध्या में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रतिबिंब दिखाई दे रहे हैं। उसकी प्रतिध्वनि सुनी जा सकती है। दक्षिण भारत में निर्मित श्रीराम की भव्य मूर्ति के अनावरण ने ऐसे ही वातावरण का निर्माण किया था।

श्रीराम संग्रहालय, विश्व के अनेक स्थानों पर होने वाली रामलीलाओं के कलाकारों का सम्मान, कोदण्ड मूर्ति पर डाक टिकट, महंत नृत्यगोपालदास के इक्यासीवें जन्मोत्सव आदि कार्यक्रमों ने यहां के माहौल को सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से ओतप्रोत कर दिया था। क्योंकि इसमें उत्तर और दक्षिण भारत की झलक के साथ-साथ अन्य देशों के रामभक्तों की सहभागिता भी थी। यह प्रमाणित हुआ कि भारतीय सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की सीमाएं बहुत व्यापक हैं। अपनी संस्कृति को विस्मृत कर कोई राष्ट्र आगे नहीं बढ़ सकता। केंद्र में जब से नरेंद्र मोदी की सरकार बनी है, तब से देश का गौरव बढ़ रहा है। इसका अनुभव किया जा सकता है। हम अपनी जड़ों से जुड़ रहे हैं, अपनी संस्कृति को गर्व के साथ अपना रहे हैं।

यह भी मानना पड़ेगा कि योगी आदित्यनाथ की सरकार केंद्र के प्रयासों में सहयोगी की भूमिका का बखूबी निर्वाह कर रही है। यह सहयोग सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की गौरव-गाथा तक ही सीमित नहीं है, बल्कि केंद्र की विकास और कल्याणकारी योजनाओं को भी प्रदेश में बेहतर ढंग से लागू किया गया है। यह सांस्कृतिक राष्ट्रभाव का प्रमाण है।

श्रीराम भारत ही नहीं, विश्व के अनेक देशों में पूज्य हैं। अयोध्या में ठुमक चलत रामचन्द्र के बालरूप से लेकर राजा राम तक की पूजा होती है। मिथिला में राम वर हैं, माता सीता उनके साथ हैं। वनगमन के मार्ग पर वह वनवासी रूप में हैं, दक्षिण भारत में वह धनुषधारी हैं, क्योंकि यहां वह रावण से युद्ध की तैयारी करते हैं। इसी धनुर्धारी रूप को दक्षिण में कोदण्ड कहा गया। इसके अलावा विश्व के पचासों देशों में रामकथा और रामलीला प्रचलित है।

अयोध्या शोध संस्थान में हस्तशिल्प में राम संग्रहालय की स्थापना की गई है, जिसमें अबतक राम पर आधारित धातु, वस्त्र, काष्ठ, चर्म, टेराकोटा आदि शिल्पों में देश और विदेश की सैकड़ों कलाकृतियां संग्रहित हैं। श्रीराम सर्किट का निर्माण चल रहा है। अयोध्या सहित श्रीराम से जुड़े प्रत्येक स्थान इससे जुड़ेंगे। यहां धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने की योजनाएं क्रियान्वित हो रही हैं। अयोध्या की दीपावली वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित हो रही है। रामकथा और रामलीला की विश्वव्यापी जानकारी यहाँ उपलब्ध कराई जा रही है। केंद्र में नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनने के बाद अयोध्या को उसके गौरव के अनुकूल विकसित किया जा रहा है।

देवताओं एवं अवतारों की जन्मतिथि पर उनका तत्व भूतल पर अधिक मात्रा में सक्रिय रहता है। श्रीरामनवमी के दिन रामतत्व सदा की तुलना में एक सहस्र गुना सक्रिय रहता है। मान्यता के अनुसार प्रभु श्रीराम का नामजप श्रीराम जय राम जय जय राम यह श्रीराम का अत्यंत प्रचलित नामजप है। इस जप में श्रीराम यह शब्द श्रीराम का आह्वान है। जय राम यह शब्द स्तुति वाचक है और जय जय राम यह ‘नमः,जो अन्य देवताओं के नामजप के अंत में उपयोग किया जाता है। उस प्रकार शरणागति का दर्शक है।

श्री रामनवमी की पूर्व संध्या पर विश्व हिन्दू परिषद के उपाध्यक्ष व श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने बताया कि अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर बन रहे भव्य राम मंदिर के फर्श का निर्माण कार्य पूरा हो गया है। अगले वर्ष दिसंबर तक रामलला गर्भगृह में विराजमान हो जायेंगे। विगत एक शताब्दी में इतना विशाल मंदिर नहीं बना होगा।

पत्थरों का इतना बड़ा भवन बनाया ही नहीं गया। राम मंदिर में लोहे का प्रयोग बिल्कुल नहीं हो रहा है। छह एकड़ में साढ़े पन्द्रह मीटर गहराई में नींव डाली गई है। मंदिर की फर्श इक्कीस फुट ऊंची बनाई गयी है।

राम जैसा आचरण दुनिया में कहीं नहीं मिलेगा। राम जैसा आचरण दुनिया में कहीं नहीं मिलता है। अच्छा समाज, अच्छा परिवार बनाने के लिए राम ने मर्यादाएं निर्धारित कीं। स्वानुशासन का पालन राम ने जीवनभर किया।

श्रीराम के सम्पूर्ण जीवन में समरसता दिखती है। निषादराज, शबरी, हनुमान सबसे उन्होंने स्नेह किया। राम की पूजा करने वालों में भी राम व शबरी का व्यवहार देखना चाहिए। राम को राज्य सत्ता का मोह नहीं था। त्याग के बल पर भारतीय संस्कृति टिकी है। भगवान राम के आदर्शों के आधार पर हम विश्व में श्रेष्ठ बनना चाहते हैं। हम वसुधैव कुटुम्बकम को मानने वाले लोग हैं। राम जब वन गये तब वह राजकुमार थे। चौदह वर्षों के वनवास के बाद वह भगवान राम के रूप में पूज्य हो जाते हैं।

जाकर नाम सुनत सुभ होई।
मोरें गृह आवा प्रभु सोई॥
परमानंद पूरि मन राजा। कहा बोलाइ बजावहु बाजा॥
ध्वज पताक तोरन पुर छावा। कहि न जाइ जेहि भाँति बनावा॥
सुमनबृष्टि अकास तें होई। ब्रह्मानंद मगन सब लोई॥
करि आरति नेवछावरि करहीं। बार बार सिसु चरनन्हि परहीं॥
मागध सूत बंदिगन गायक। पावन गुन गावहिं रघुनायक॥

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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