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पत्नी को लगातार नौकरी छोड़ने के लिए दबाव बनाना बन सकता है तलाक का कारण, हाईकोर्ट ने और क्‍या कहा

October 28, 2025

नई दिल्‍ली । केरल हाईकोर्ट(Kerala High Court) ने हाल ही में एक महिला की तलाक(divorce of a woman) की अर्जी को मंजूर करते हुए कहा है कि पति द्वारा लगातार शक(Constant suspicion by the husband) करना, पत्नी की हर गतिविधि पर नजर रखना और यहां तक कि नौकरी छोड़ने के लिए भी मजबूर कर देना, क्रूरता है। महिला फैमिली कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील लेकर हाईकोर्ट पहुंची थी। जस्टिस देवन रामचंद्रन और जस्टिस एमबी स्नेहलता की पीठ ने कहा कि पति का ऐसा आचरण तलाक अधिनियम, 1869 की धारा 10(1)(x) के तहत गंभीर मानसिक क्रूरता के समान है।

बार एंड बेंच की एक रिपोर्ट के मुताबिक दंपति की शादी 2013 में हुई थी और उनकी एक बेटी भी है। पत्नी ने अदालत को बताया कि शादी के शुरुआती दिनों से ही उसका पति उस पर शक करने लगा। महिला ने बताया कि पति ने उसकी हर एक गतिविधि को नियंत्रित करके लगातार मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया। उसने आगे यह भी बताया कि पति ने उसे विदेश में अपने साथ रहने के लिए नर्सिंग की नौकरी छोड़ने के लिए मजबूर किया।

मारपीट करता था पति


हालांकि एक बार जब वह उसके साथ रहने लगी, तो उसने उसकी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाना शुरू कर दिया। कथित तौर पर वह महिला को अक्सर घर के अंदर बंद कर देता, उसे किसी से भी फोन पर भी बात करने से मना करता। इतना ही नहीं उसने कई बार महिला के साथ मारपीट भी की। वहीं पत्नी के इन आरोपों पर पति ने इनकार किया और दावा किया कि पत्नी उसके माता-पिता को पसंद नहीं करती थी और अदालत की अर्जी में शिकायतें बढ़ा-चढ़ाकर पेश की गई थीं।

फैमिली कोर्ट का फैसला HC ने पलटा

दलीलों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के विचारों से असहमति जताई और कहा कि पत्नी की गवाही विश्वसनीय है और उसके अनुभवों से मानसिक क्रूरता स्पष्ट रूप से साबित होती है। अदालत ने कहा कि अदालतों के लिए ऐसे मामलों में दस्तावेजी सबूत की उम्मीद करना सही नहीं है सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों का हवाला देते हुए, अदालत ने दोहराया कि क्रूरता मानसिक और शारीरिक दोनों हो सकती है और इसका प्रभाव व्यक्ति-दर-व्यक्ति अलग-अलग हो सकता है।

लगातार संदेह शादी की नींव को ही जहरीला कर देते हैं- HC

अदालत ने महिला की तलाक की अर्जी को मंजूरी देते हुए कहा, “पति के निरंतर अविश्वास ने महिला को अपमान, भय और भावनात्मक पीड़ा पहुंचाई, जिससे उसके लिए उसके साथ रहना मुश्किल हो गया।” कोर्ट ने कहा कि पति या पत्नी के जीवन पर संदेह और लगातार नजर रखता था और यह सब विवाह की नींव को ही नष्ट कर सकता है, जो विश्वास, सम्मान और भावनात्मक सुरक्षा पर टिकी होती है।

HC ने आगे कहा, “एक शक्की पति वैवाहिक जीवन को नर्क बना सकता है। लगातार संदेह और अविश्वास शादी की नींव को ही ज़हरीला कर देते हैं। एक शक्की पति जो आदतन पत्नी पर शक करता है, उसके आत्म-सम्मान और मानसिक शांति को नष्ट कर देता है। आपसी विश्वास ही शादी की आत्मा है, जब इसकी जगह शक आ जाता है, तो रिश्ता अपना सारा अर्थ खो देता है। जब कोई पति बिना किसी कारण के अपनी पत्नी पर शक करता है, उसकी गतिविधियों पर नजर रखता है, उसकी ईमानदारी पर सवाल उठाता है और उसकी व्यक्तिगत आजादी में दखल देता है, तो इससे पत्नी को बहुत मानसिक पीड़ा और अपमान महसूस होता है।”

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