
जबलपुर। शहर के साथ प्रदेश भर में शासन ने गौशालाओं के लिए 270 करोड़ का निवेश किया हैं। फिर भी सडक़ों पर अनाथ पशुओं की संख्या 8.50 लाख तक पहुंच गई है। सरकार ने कई योजनाएं बनाईं, लेकिन उनके असल प्रभाव में कमी नजर आई है। सरकार ने गौशालाओं के लिए करोड़ों रुपए खर्च कर दिए हैं। फिर भी, सडक़ों पर अनाथ पशुओं की समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई है। सरकार ने योजनाएं बनाई और बजट भी दिया लेकिन असर नहीं दिख रहा हैं। कागजों पर तो अरसे से योजनाएं फलीभूत हो रही हैं लेकिन जमीन पर इन योजनाओं का क्रियान्वयन ठीक से नहीं हो पाया है। नतीजा ये हुआ कि सडक़ों पर पशु घूमते रहते हैं। सरकार के प्रयासों और जमीन पर असल काम में बड़ा अंतर साफ दिखाई देता हैं।
क्यों नहीं हो रहा स्थिति में कोई बदलाव
प्रदेश सरकार ने 10 महीनों में गौशालाओं के लिए 270 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। इसका मकसद अनाथ पशुओं की संख्या घटाना था। ये पैसे 2937 गोशालाओं के संचालन में लगाए गए हैं। इसके बावजूद, सडक़ों पर भटकते पशुओं की संख्या 8.50 लाख तक पहुंच गई है। सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक, प्रदेश में सिर्फ 4.22 लाख गोवंश को गोशालाओं में रखा जा सकता है। वहीं, सडक़ों पर गायों और अन्य पशुओं की संख्या कहीं ज्यादा है।
सडक़ों पर लावारिसों की तरह भटक रहे पशु
विभाग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 8.50 लाख अनाथ पशु सडक़ों पर लावारिसों की तरह भटक रहे हैं। ये पशु सडक़ दुर्घटनाओं का कारण बनते हैं। राज्य सरकार ने इन घटनाओं को रोकने के लिए कदम उठाने की योजना बनाई थी। इसके तहत राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण से अनुबंध हुआ था। योजना के तहत हर 50 किमी पर हाइड्रोलिक लिफ्टर और गोठान बनाने थे।
नर्मदापुरम के अलावा प्रदेश भर में योजना असफल
यह योजना नर्मदापुरम रोड पर कुछ हद तक सफल रही है। वहीं बाकी प्रदेशों में इसे लागू नहीं किया जा सका है। विभागीय अधिकारियों की मानें तो सरकार जल्द ही स्वावलंबी गौशालाओं का निर्माण करेगी। इससे अनाथ पशुओं की समस्या का ठोस समाधान निकाला जा सकेगा। हालांकि, फिलहाल यह समस्या जस की तस बनी हुई है।
शहर में प्रारंभ हो चुका हैं कार्य
राज्य सरकार ने अप्रैल 2025 में स्वावलंबी गोशालाओं बनाने का काम शुरू किया था। अगस्त में इस योजना को लॉन्च किया गया था। योजना के तहत हर जिले में 125 एकड़ जमीन पर गौशाला बनाने का लक्ष्य था। वहीं, अब तक केवल 20 जिलों में ही भूमि का चयन हो पाया है। भोपाल, जबलपुर, दमोह, राजगढ़, मंदसौर और रतलाम में काम शुरू हो चुका है। बाकी जिलों में अभी जमीन की तलाश जारी है।
टैग लगाने का प्रयोग नाकाम
पशुपालन विभाग एमपी ने एक अभियान शुरू किया था। इसमें अनाथ पशुओं के कानों पर टैग लगाया गया था। इसका मकसद था कि पशुओं के मालिकों का पता लगाया जा सके। हालांकि, टैग लगाने पर मालिकों के खिलाफ कार्रवाई का प्रावधान था। इसका ग्रामीणों और पशु मालिकों ने विरोध किया था। इसके बाद इस योजना को रोक दिया गया था।
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