
जबलपुर। मेडिकल अस्पताल परिसर में कोरोना लहर के बीच मरीजों के उपचार के लिये तमाम सुविधाओं से लैस एक बैलून (अस्थाई कोविड केयर सेंटर) का निर्माण सवा करोड़ रुपये खर्च कर किया गया था, जिसका आज तक उपयोग नहीं हुआ। इतना ही नहीं जब कोविड संक्रमण घटा तब भी अन्य गंभीर मरीजों के लिये भी उसका उपयोग नहीं किया जा रहा है, जबकि आलम ये है कि सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में अब भी कई मरीज बेड के लिये परेशान है, जिसका कारण है आधी बिल्डिंग को कोविड के लिये आरक्षित रखा गया है। जबकि उक्त सर्वसुविधायुक्त बैलून में हजारों रुपये रोजाना मेंटीनेंस के नाम पर खर्च किये जाते है। जनता के पैसों का कोविड काल में किस तरह से बंटाधार किया जा रहा ये बैलून का उपयोग न किये जाने से लगाया जा सकता है।
प्राप्त जानकारी अनुसार वर्ष 2020 में कोविड की लहर को मद्देनजर रखते हुए मरीजों को समुचित उपचार मिले, इसके लिये तमाम तरह की व्यवस्थाएं की गई थी। जिसमें मेडिकल परिसर में ही सुपर स्पेशलिस्ट बिल्डिंग के समीप करीब सवा करोड़ खर्च कर एक बैलून तैयार किया गया था, जिसे तमाम सुविधाओं के साथ सर्वसुविधायुक्त बनाया गया था। कोरोना की दूसरी लहर के घातक होने के बावजूद भी उक्त बैलून का उपयोग नहीं हुआ और न ही अब जबकि कोरोना घट गया है। जबकि आलम ये है कि मेडिकल में अन्य बीमारियों से ग्रसित मरीजों की संख्या अत्यधिक है और वार्डोे में जगह नहीं है, बेड भी बमुश्किल मरीजों को उपलब्ध हो रहे है, जिसका कारण कोरोना है। दरअसल कोरोना काल में पुरानी बिल्डिंग के कई वार्ड व सुपर स्पेशलिटी बिल्डिंग के आधे हिस्से को कोविड मरीजों के लिये आरक्षित किया गया था, अब जब कोरोना मरीज घट गये है तब भी भी उक्त वार्ड आरक्षित है, जिस कारण कई मरीजों को अब भी बेड उपलब्ध नहीं हो पा रहे है, इतना ही नहीं गंभीर बीमारियों से ग्रसित मरीज भी परेशान है, जबकि करोड़ रुपया खर्च कर तैयार किये गये बैलून में भी उपचार किया जा सकता है, लेकिन प्रशासनिक उदासीनता के कारण उसका कोई प्रयोग नहीं हो रहा है। जबकि उसके मेंटनेंस में रोजाना हजारों रुपये खर्च होते है।
नहीं हो रहा इस्तमाल
मोक्ष मानव सेवा संस्था के आशीष ठाकुर का कहना है कि मेडिकल में अनियमित्ताएं चरम पर है। मरीजों को बमुश्किल बेड उपलब्ध होते है, कई मरीज फर्श पर अपना उपचार करा रहे है, जबकि बैलून में सारी सुविधाएं है, जिसका प्रयोग गंभीर बीमारी से ग्रसित मरीजों के लिये किया जाना चाहिये, लेकिन ऐसा नहीं किया जा रहा है, जबकि उसके मेंटनेंस में रोजाना हजारों रुपये खर्च होते है।
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