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बांधों में पल रही जल प्रलय! दुनिया की 60 फीसदी नदियां हो गईं डाइवर्ट; बड़े संकट की आहट

October 12, 2025

नई दिल्‍ली । ज्यादा से ज्यादा एनर्जी की जरूरत(Energy needs) और इंसानों की महत्वाकांक्षा (ambition of humans)के चलते दुनिया को प्रलय के मुंह में धकेलने(pushing into the mouth) में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है। एक हालिया रिपोर्ट में दावा किया गया है कि दुनियाभर की 60 फीसदी नदियों को या तो डाइवर्ट कर दिया गया है या फिर बांधों में कैद कर दिया गया है। इससे प्राकृतिक बहाव प्रभावित हुआ है जो कि बड़े संकट को जन्म दे रहा है। यहां तक कि नदियों का बहाव रुकने से मछली और अन्य जलीय जीवों की प्रजातियां लुप्त हो रही हैं और आने वाले समय में बड़ी खाद्य समस्या भी पैदा हो सकती है।

ग्लोबल लैंड आउटलुक की रिपोर्ट के मुताबिक इंसानों ने पृथ्वी की एक तिहाई जमीन को बदलकर रख दिया है। इससे जैव विविधता पर असर पड़ रहा है। यूनाइटेड नेशन्स कन्वेंशन टु कॉम्बैट डिजर्टिफिकेशन (UNCCD) और कंजरवेशन ऑफ माइग्रेटरी स्पीसेज ऑफ वाइल्ड एनिमिल्स (CMS) की तरफ से पेश की गई रिपोर्ट में कहा गया है कि नदी, जंगल और जमीन का पूरा नेटवर्क डिस्टर्ब हो गया है। ऐसे में पूरा प्राकृतिक तंत्र प्रभावित हो गया है।


रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिय की 60 फीसदी नदियों के साथ छेड़छाड़ हुई है। उदाहरण के तौर पर एशिया का मेकोंग कभी मछलियों के लिए बहुत ही अनुकूल जगह हुआ करती थी जो कि अब बांधों की वजह से प्रभावित हो गई है। मछलियों का माइग्रेशन रुक गया है और लाखों लोगों के सामने खाने की समस्या पैदा हो गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि नदियों के अलावा रेलवे और सड़कें भी इकोसिस्टम को बुरी तरह प्रभावित कर रही हैं।

2050 तक सड़कों का जाल 60 फीसदी और बढ़ जाएगा। इससे इकोसिस्टम पर दबाव बढ़ेगा। मानव गतिविधियों से मिट्टी की पकड़ ढीली हो जाती है और फिर बाढ़, सूखे दोनों की समस्या बढ़ती है। धरती का 40 फीसदी हिस्सा मानव गतिविधियों की वजह से खतरे में आ गया है और इससे आधी आबादी पर संकट मंडरा रहा है। UNCCD के एग्जिक्यूटिव सेक्रेटरी यास्मिन फोआद ने कहा, धरती और जल तंत्र के आपसी स्वस्थ्य समन्वय से ही धरती पर जीवन संभव है। अगर हम इसे प्रभावित करते हैं तो सबसे पहले खतरा भी हम पर ही आएगा। ऐसे में इकोसिस्टम को रीस्टोर करना जरूरी है।

बाधों में पल रही जल प्रलय?

दुनियाभर में बांधों को लेकर बड़े सवाल उठ रहे हैं। बांध में इतना पानी जमा होता है कि अगर यह टूट जाए तो बड़ा इलाका जलमग्न हो सकता है। देश के कई बांध इस समय जर्जर हो रहे हैं। जाहिर सी बात है कि मानव द्वारा विकसित की गई किसी भी संरचना की एक निश्चित आयु होती है और इसके बाद इसे ध्वस्त होना ही है। कई बांध अब पुराने हो रहे हैं। वहीं ज्यादातर बांध भूकंप प्रभावित इलाकों में होते हैं। भूकंप वैज्ञानिक समय-समय पर बाधों को लेकर चेतावनी देते ही रहते हैं।

भारत की बात करें तो टिहरी, भाखड़ा. हीराकुंड, नागार्जुन, बगलीहार, नाथपा, कदाना, चंडील, सरदार सरोवर जैसे बांध बहुत सुरक्षित इलाके में नहीं माने जाते हैं। चंदेरी का राजघाट बांध तो जर्जर ही हो चुका है। सोनभद्र जिले के पिपरी बांध का पानी ही खतरनाक स्थिति में है। ऐसे में बांध एक बड़े संकट का निमंत्रण दे रहे हैं। इसके अलावा धीरे-धीरे इकोसिस्टम को भी बिगाड़ रहे हैं।

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