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सिस्टम को जगाने गए थे या खुद की नींद देर से खुली!

December 01, 2025

  • एसआईआर: 80 फीसदी काम पूरा होने के बाद भाजपा-कांग्रेस ने उठाई जनता की आवाज, प्रक्रिया की शुरूआत में खामोशी ओढऩे वाले अब बोल रहे, प्रशासनिक अधिकारियों में मिलीजुली प्रतिक्रिया

जबलपुर। आश्चर्यजनक है कि मतदाताओं के भरोसे पर ही अपने वजूद को जिंदा रखने वाले राजनीतिक दलों और नेताओं को एसआईआर की प्रक्रिया के बिल्कुल अंतिम चरण में याद आया कि प्रक्रिया में क्या सुधार-संशोधन किए जाने चाहिए। पहले भारतीय जनता पार्टी को बड़ा प्रतिनिधिमंडल कलेक्टर से मिला और फिर इसके बाद कांग्रेस के दिग्गजों ने भी मुलाकात की, कि एसआईआर की प्रक्रिया को कैसे और दुरूस्त किया जाए। मजेदार ये है कि दोनों पार्टियों ने अपने वोटर्स के लिए ये जहमत तब उठाई,जब तकरीबन 80 फीसदी काम पूरा हो चुका है। ये वही पार्टियां हैं और वही नेता हैं,जो जनता को जनार्दन का दर्जा देते हैं और उसके लिए जीने-मरने की कसमें खाते हैं। तय है कि यदि नेताओं में जागरण का भाव जल्दी आता तो प्रक्रिया और तेज होती और जनता की परेशानियां भी कम हो जाती।

जनता तो बेफिक्र है… जिसे वोट चाहिए, वो करे
एसआईआर के दौरान वोटर्स का एक बड़ा हिस्सा ऐसा भी सामने आया,जिसने ना तो गणना पत्रक की फिक्र की और ना ही बीएलओ की तलाश में घर से निकला। इस श्रेणी के लोगों का स्पष्ट कहना था कि जिन्हें हमसे वोट चाहिए, वे एसआईआर में नाम जुड़वाएं,क्योंकि पहचान और नागरिकता साबित करने के लिए अन्य दस्तावेज भी हैं। इस तरह के वोटर्स ने पार्टियों के नेताओं को खासा त्रस्त किया। हालाकि, कहीं न कहीं इस प्रकार के लोगों का कहना भी गलत नहीं था।


कांग्रेस का फोकस वोट चोरी पर था
कांग्रेस ने सबसे पहले इस प्रक्रिया को हकीकत में स्वीकार नहीं किया। पार्टी ने नाम जुड़वाने पर उतना जोर नहीं दिया,जितना जोर इस बात पर दिया कि इस प्रक्रिया की खामियों को उजागर करने वाले प्रमाण जुटाए जाएं। पार्टी की बैठकों में बीएलओ के अंदर यही जोश भरा गया कि ये प्रक्रिया कहीं ना कहीं वोट चोरी को अंजाम देने के लिए की जा रही है इसलिए इस पर नजर रखनी है और दस्तावेजी प्रमाण इक_े कर पार्टी मुख्यालय दिल्ली भेजने हैं। कांग्रेस ने क्या सबूत दिल्ली भेजे या नहीं, ये तो भविष्य में पता चलेगा,लेकिन वर्तमान में पार्टी के नेता अपने वोटरों की मदद कर रहे हैं ताकि उनका नाम एसआईआर से होते हुए वोटर लिस्ट में जुड़ जाए। वोटरों की शिकायतों को कांग्रेस वोट चोरी से जोडऩे का प्रयास कर सकती है,लेकिन नेता अब जान चुक हैं कि पहले वोटर लिस्ट में नाम होना ही सबसे बड़ी जीत होगी।

भाजपा की नजरअंदाजी बनी मुसीबत
जबलपुर में भाजपा ने एसआईआर को लेकर बीएलओ की तैनाती बहुत बढिय़ा ढंग से की और हर बूथ लेवल पर पार्टी के कार्यकर्ताओं को भी मुस्तैद रखा,लेकिन पूरी प्रक्रिया की समीक्षा करने में नेता देर कर गये। जब एसआईआर की अंतिम तारीख नजदीक आई और वोटरों की शिकायतें बढऩे लगीं, तब नेता जागे और जिला निर्वाचन कार्यालय को सुझाव वगैरह पेश किए। ये सुझाव नवम्बर के पहले भी दिए जा सकते थे,लेकिन तब संगठन को अपने सिस्टम पर कुछ ज्यादा भरोसा था,जो तब टूटा जब वोटरों का गुस्सा तीखा होने लगा। हालाकि, जो सुझाव पार्टी नेताओं ने कलेक्टर को दिए हैं, वे कोई नए नहीं है,बल्कि एसआईआर की प्रक्रिया की नियमावली में हैं। पता नहीं पार्टी अपने कार्यकताओं के जरिए जनता और बीएलओ तक ये सुझाव क्यों नही पहुंचा सकी।

प्रशासन की प्रतिक्रिया
इधर, जिला निर्वाचन कार्यालय के अधिकारी अब दोनों पार्टियों के इस रवैये पर तंज कस रहे हैं। पहले यही अधिकारी इन्हीं पार्टियों से मदद की गुहार लगा रहे थे,लेकिन अब यही पार्टियां और नेता,जिला प्रशासन की दहलीज पर आग्रह भाव लिए खड़े हुए हैं। हालाकि, अधिकारी ये भी जानते हैं कि राजनीतिक पार्टियां प्रक्रिया समाप्त होने के बाद अधिकारियों और प्रक्रिया पर गंभीर आरोप जड़ेंगे और जवाब मांगे जाएंगे। दोनों ही पार्टियां यही सिद्ध करती हुई दिखाई देंगी कि जनता की सबसे बड़ी पक्षधर वही हैं।

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