
नई दिल्ली । दिल्ली हाईकोर्ट(Delhi High Court) ने कथित दहेज उत्पीड़न(Alleged dowry harassment) के मामले में एक बेहद अहम फैसला(very important decision) सुनाया है। हाईकोर्ट ने मृतक विवाहित महिला के पिता की याचिका खारिज करते हुए उसके पति व ससुरालवालों को आरोपों से बरी कर दिया। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि महज पीड़िता के आंसुओं के आधार पर किसी विवाहिता की मौत को दहेज हत्या व क्रूरता नहीं कहा जा सकता। हाईकोर्ट ने इस मामले में मृतका के पति व उसके परिवार के सदस्यों को आरोपमुक्त किए जाने के निर्णय को बरकरार रखा है।
मृतका के रोने के आधार पर अपराध साबित नहीं किया जा सकता
जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की बेंच ने कहा कि मृतका के रोने की गवाही देकर किसी अपराध को साबित नहीं किया जा सकता। मृतका की बहन का बयान सीआरपीसी की धारा 161 के तहत दर्ज किया गया था। इसमें उसने कहा था कि होली के अवसर पर उसने अपनी बहन को फोन किया था। उसे रोते हुए पाया था। बेंच ने कहा कि केवल इसलिए कि मृतका रो रही थी, दहेज उत्पीड़न का कोई मामला नहीं बनाया जा सकता।
बेंच ने मृतका के पिता द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया। इस याचिका में दहेज हत्या व क्रूरता के अपराधों के लिए पति व उसके माता-पिता को बरी करने को चुनौती दी गई थी।
याचिका में आरोप लगाया गया था कि शादी के बाद उनकी बेटी के पति और ससुरालवालों द्वारा अतिरिक्त दहेज लाने की मांग की गई। आरोप लगाया गया था कि जब मांगें पूरी नहीं हुईं, तो उनकी बेटी को अपमानित और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया, जिसके कारण उसकी मृत्यु हो गई।
हाईकोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि मृतका की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में कहा गया है कि उसकी मृत्यु निमोनिया के कारण हुई थी।
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