
कानपुर: आपदा में अवसर, यह गूढ़ वाक्य पीएम मोदी (PM Modi) ने कोविड (Covid) के समय देश की जनता को दिया था. इसका सीधा सा अर्थ था कि आपदा हो, परेशानी हो या फिर कमियां, उसमें से सफलता का अवसर निकाल लेना ही असली काबिलियत (Ability) है. ऐसा ही कुछ कर दिखाया है कानपुर (Kanpur) के एक गांव ने. कानपुर नगर के विधनू ब्लॉक की रमईपुर ग्राम पंचायत ने स्वच्छता और आत्मनिर्भरता के क्षेत्र में एक अनोखी मिसाल कायम की है.
यह छोटा सा गांव अब केवल स्वच्छ भारत मिशन का प्रतीक नहीं, बल्कि कचरे को आय का स्रोत बनाने का एक जीवंत उदाहरण बन चुका है. यहां स्थापित प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट यूनिट और रिसोर्स रिकवरी सेंटर (RRC) ने न केवल गांव की तस्वीर बदली है, बल्कि इसे आर्थिक रूप से सशक्त बनाने में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है.
स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) फेज-2 के तहत रमईपुर में प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट यूनिट और आरआरसी सेंटर की स्थापना की गई है. ये केंद्र ग्राम पंचायत के लिए किसी वरदान से कम नहीं साबित हुए हैं. जिला पंचायत राज अधिकारी (DPRO) मनोज कुमार ने बताया कि 16 लाख रुपये की लागत से इस यूनिट का निर्माण किया गया, जिसमें आधुनिक मशीनों की खरीद भी शामिल है. इन मशीनों के जरिए प्लास्टिक और ठोस अपशिष्ट का प्रबंधन सुचारू रूप से शुरू हो चुका है.
पिछले कुछ महीनों में इस यूनिट ने 9.5 टन प्लास्टिक अपशिष्ट को एकत्र कर बैलिंग और श्रेडिंग प्रक्रिया के माध्यम से संसाधित किया है. ग्राम पंचायत ने नेचर नेक्स्ट फाउंडेशन और स्थानीय कबाड़ियों के साथ समझौता किया है, जिसके तहत संसाधित प्लास्टिक की बिक्री की जा रही है. इस प्रक्रिया से पंचायत को अब तक 6,000 रुपये की आय प्राप्त हुई है. इसके अलावा, कचरे से तैयार वर्मी कम्पोस्ट ने भी आय का एक नया द्वार खोला है. लगभग 2,000 किलोग्राम वर्मी कम्पोस्ट की बिक्री से पंचायत ने 25,000 रुपये से अधिक की कमाई की है.
रमईपुर की इस पहल ने न केवल पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा दिया है, बल्कि गांव की आर्थिक स्थिति को भी मजबूत किया है. गांव के 425 घरों से नियमित रूप से कचरा संग्रहण की व्यवस्था की गई है. ग्रामीण अपनी गलियों में आने वाली कचरा संग्रहण गाड़ियों में कचरा डालते हैं, जिसे सीधे आरआरसी सेंटर ले जाया जाता है. खास बात यह है कि लगभग 350 परिवार स्वेच्छा से 30 रुपये मासिक यूजर चार्ज जमा कर रहे हैं. इस पहल से पंचायत के ओएसआर (स्वयं की आय) खाते में 1.5 लाख रुपये से अधिक की राशि जमा हो चुकी है.
रमईपुर के बुजुर्ग बताते हैं कि पहले गांव की नालियां प्लास्टिक कचरे से पटी पड़ी रहती थीं, जिससे पानी का बहाव रुक जाता था और गंदगी का आलम रहता था. लेकिन अब यह समस्या लगभग समाप्त हो चुकी है. गांव की गलियां साफ-सुथरी हो गई हैं, और बच्चे अब स्वच्छ माहौल में खेलते नजर आते हैं. यह परिवर्तन न केवल ग्रामीणों के जीवन को बेहतर बना रहा है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण के प्रति उनकी जागरूकता को भी दर्शाता है.
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