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इस मुस्लिम देश के नोटों पर बने हुए है गणेश जी


आज देश भर में गणेश चतुर्थी मनाई जा रही है।कोई भी कार्य शुरू करने से पहले भगवान गणेश की पूजा जरूरी समझी जाती है. भगवान गणेश को परम पूजनीय माना जाता है। सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दूनिया में गणपति के उपासक हैं। गणेश भगवाने से जुड़े कई तथ्य हैं लेकिन इनमें से जो सबसे चौंकाने वाला तत्य है वो ये है कि इंडोनेशिया की मुद्रा यानी करंसी पर गणेश की तस्वीर रह चुकी है।
इंडोनेशिया दुनिया का सबसे बड़ा मुस्लिम आबादी वाला देश है। ऐसे में यहां की करंसी पर गणेश भगवान की तस्वीर होना आश्चर्यजनक बात है। आइए जानते हैं कि यहां की मुद्रा पर गणपति को जगह देने की कहानी के बारे में। इंडोनेशिया और भारत की संस्कृति में कई तरह की समानताएं हैं। यहां पहुंचकर शायद आपको एक बार गलतफहमी भी हो सकती है कि कहीं आप भारत में तो नहीं आ गए। यहां कई हिंदू देवी-देवताओं की पूजा होती है। मलेशिया और ऑस्ट्रेलिया के बीच हजारों द्वीपों पर फैले इंडोनेशिया में मुसलमानों की सबसे ज्‍यादा आबादी बसती है, पर यहां हिंदू धर्म का स्पष्ट तौर पर प्रभाव नजर आता है।
यहां भगवान गणेश को कला और बुद्धि का भगवान माना जाता है। इसी वजह से यहां की करेंसी पर पहले भगवान गणेश की छवि अंकित होती थी। कुछ साल पहले इंडोनेशिया की अर्थव्यवस्था लड़खड़ा गई थी जिसके बाद वहां के अर्थशास्त्रियों ने विचार-विमर्श के बाद बीस हजार रुपिया का एक नया नोट जारी किया था, जिस पर भगवान गणेश की तस्वीर को छापा गया। हालांकि, 1998 के बाद इंडोनेशिया में बीस हजार रुपिया की नई नोट जारी की गईं।1998 के बाद जारी हुए नए नोटों पर से भगवान गणेश की फोटो हटा ली गई थी।
इंडोनेशिया में करेंसी से लेकर आम जनजीवन में सांस्कृतिक विविधता नजर आ जाती है। रामायण और रामायण मंचन यहां की संस्कृति का अहम हिस्सा है। एक मुस्लिम बहुल देश की संस्कृति में रामायण-महाभारत का अस्तित्व भले ही हैरान करता हो, लेकिन इंडोनेशिया हिंदू धर्म के साथ जुड़ी अपनी सांस्कृतिक पहचान के साथ बहुत सहज है।
पूरे इंडोनेशिया में रामायण और महाभारत की कहानी हर कोई जानता है। वहां के जकार्ता स्क्वेर में कृष्णा-अर्जुन की मूर्तियां भी स्थापित हैं। यहां के मुसलमान रमजान में रोजा रखते हैं और इफ्तार के बाद यहां के हिंदू मंदिर में रामायण मंचन में भाग लेने के लिए जाते हैं। यहां हिंदू-मुस्लिम के बीच सौहार्द कायम है।
जावा इंडोनेशिया का एक प्रमुख द्वीप है जहां लगभग 60 प्रतिशत आबादी हिंदू है। 13वीं से 15वीं शताब्दी के बीच यहां माजापाहित नाम का हिंदू साम्राज्य खूब फला फूला जिससे यहां की संस्कृति, भाषा और भूमि पर हिंदू संस्कृति की अमिट छाप पड़ गई। यहां आपको जगह-जगह पर भगवान विष्णु और शिव के मंदिर मिल जाएंगे। पूरे शहर में संस्कृत में लिखे हुए शब्द, रामायण और महाभारत का जिक्र खूब मिलता है। हालांकि वर्तमान में इंडोनेशिया में हिंदुओं की आबादी 2 फीसदी से भी कम हो चुकी है। केवल धर्म ही नहीं, बल्कि इंडोनेशिया की भाषा भी हमारी भाषा से बहुत मिलती जुलती है। उनकी भाषा को ‘बहासा इंदोनेसिया’ कहते हैं। उदाहरण के तौर पर उनके शब्दकोष में भी स्त्री और मंत्री जैसे शब्द मिलते हैं।
यह पूरी तरह स्पष्ट नहीं है कि इंडोनेशिया में हिंदू धर्म कैसे पहुंचा लेकिन 5वीं शताब्दी तक यहां पर हिंदू धर्म स्थापित हो चुका था। जैसे-जैसे हिंदू साम्राज्य का प्रभाव बढ़ने लगा, 12वीं-13वीं शताब्दी तक हिंदू और बौद्ध शासकों ने कई द्वीपों पर अपना अधिकार कर लिया। इंडोनेशिया आधिकारिक तौर पर 6 धर्मों को मानता है जिसमें हिंदू धर्म को 1962 में जगह मिली। जावा, बाली और लोमबोक में हिंदू धर्म के काफी अनुयायी हैं। हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था परिषद हिंदू धर्म इंडोनेशिया 1964 से ही अस्तित्व में है। इंडोनेशिया में हिंदू धर्म के प्रभाव के साथ-साथ बौद्ध का भी प्रभाव रहा है। इस बात को इस उदाहरण से समझा जा सकता है कि बोरोबोदूर में संसार का सबसे बड़ा बौद्ध स्तूप है।

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