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गूगल ने दिखाई हेकड़ी, कहा-उसकी नीति के खिलाफ आदेश को नहीं मानेगी कंपनी

नई दिल्ली। भारत (India) में काम कर रही अमेरिकी टेक कंपनी गूगल (American tech company Google) का कहना है कि सोशल मीडिया कंपनियों (social media companies) की शिकायतें सुनने के लिए सरकार के प्रस्तावित स्व-नियामक पैनल (Proposed Self-Regulatory Panel) का कोई आदेश उसकी नीति के खिलाफ हुआ तो इसे मानने में उसे आपत्ति होगी। यह हाल तब है जब इस पैनल के लिए फेसबुक-व्हाट्सएप की मालिकाना कंपनी मेटा और ट्विटर राजी हैं। हाल में बंद दरवाजों में हुई सोशल मीडिया कंपनियों की बैठक में गूगल का यह दंभ भरा रवैया सामने आया।

सरकार ने जून में प्रस्ताव दिया था कि सोशल मीडिया व टेक कंपनियों का कोई निर्णय अगर किसी यूजर को अपने अधिकारों के खिलाफ लगता है, तो सरकारी पैनल उनकी शिकायत सुनेगा। यह भी प्रस्ताव रखा कि अगर कंपनियां स्व-नियामक पैनल बनाना चाहें तो सरकार इस पर भी विचार कर सकती है। सूत्रों के अनुसार बैठक में कंपनियां इन प्रस्ताव पर एकमत नहीं दिखीं। मेटा व ट्विटर नहीं चाहते कि सरकारी पैनल बने। उन्हें डर है कि इससे उन पर सरकार और नियमों की सख्ती बढ़ेगी। वे स्व-नियामक पैनल बनाने में दिलचस्पी ले रहे हैं लेकिन इस पर गूगल राजी नहीं है। गूगल ने अधिकृत बयान में कहा कि वह सरकार से बात करके सभी संभावनाएं तलाश रहा है ताकि सबसे अच्छा समाधान निकाल सके। बैठक में स्नैप इंक और भारत के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म शेयरचैट के प्रतिनिधि भी शामिल थे। भारत में इन कंपनियों के करोड़ों यूजर्स हैं।


आंतरिक नीति न टूटे गूगल को बस यही चिंता
बैठक में मौजूद रहे सूत्रों के अनुसार गूगल के अधिकारियों ने कहा कि पैनल के फायदे उसे नजर नहीं आ रहे। पैनल के जरिए उसके फैसलों का बाहरी विश्लेषण होगा। जिस ऑनलाइन सामग्री को गूगल अपनी आंतरिक नीति के तहत के अपने प्लेटफॉर्म से हटाएगा, उसे बहाल करने का आदेश भी पैनल दे सकता है। यह उसकी आंतरिक नीति का उल्लंघन होगा, जो उसे मंजूर नहीं है। बल्कि सामग्री बहाल करने से एक अभूतपूर्व चलन शुरू हो जाएगा, जो उसके लिए सही नहीं होगा।

कंपनियां पहले भी दिखाती रही हैं सरकार को आंख
अपने प्लेटफॉर्म से फैलाई जा रही ऑनलाइन सामग्री की निगरानी पर सोशल मीडिया कंपनियां पहले भी सरकार को आंख दिखाती रही हैं। हालांकि न्यूजीलैंड सहित कई देशों में वे ‘कोड ऑफ प्रैक्टिस’ जैसे समझौतों पर हस्ताक्षर कर चुकी हैं जिनमें उन्हें हानिकारक सामग्री को उन्हें हटानी पड़ती है। भारत में उन्हें यही बात चुभती है, क्योंकि यहां करोड़ों यूजर्स हैं।

सरकार का नजरिया
सरकार चाहती है कि अगर नागरिकों के अकाउंट या सामग्री को सोशल मीडिया कंपनियां हटाती हैं तो लोकतांत्रिक मूल्यों के नाते इसकी वजह उन्हें बताएं। यूजर चाहें तो इसके खिलाफ अपील कर सकें। अब तक अदालत ही विकल्प है, कोई और स्वतंत्र फोरम नहीं है। ट्विटर को कुछ सामग्री हटाने के निर्देश सरकार ने दिए, जिसे उसने मना कर दिया।

स्व-नियामक पैनल यानी…
स्व-नियामक पैनल में रिटायर्ड जज या तकनीकी व कानूनी क्षेत्र का विशेषज्ञ अध्यक्ष होगा। 6 अन्य सदस्य होंगे, जिनमें सोशल मीडिया कंपनियों के वरिष्ठ अधिकारी भी शामिल रहेंगे। पैनल के निर्देश बाध्यकारी होंगे, यानी कंपनियां इन्हें मानने से इनकार नहीं कर पाएंगी।

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