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हाईकोर्ट ने ज्ञानवापी मामले में की बड़ी टिप्पणी, कहा- फैसला आने तक न मंदिर, न मस्जिद…

नई दिल्ली: मुस्लिम पक्ष को ज्ञानवापी केस में इलाहाबाद हाई कोर्ट से झटका लगा है. अदालत ने टाइटल सूट को चुनौती देने वाली मुस्लिम पक्ष की याचिका सहित उनकी पांच याचिकाएं खारिज कर दी है. लेकिन इस दौरान कोर्ट ने एक अहम टिप्पणी की है. अदालत ने कहा कि जब तक कोर्ट इस मामले पर फैसला नहीं सुनाती, तब तक इस विवादित पूजास्थल को मंदिर या मस्जिद नहीं कहा जा सकता. हाईकोर्ट ने कहा कि केवल पूजा के आधार पर किसी भी स्थल का धार्मिक महत्व तय नहीं किया जा सकता.

अदालत ने कहा कि ज्ञानवापी मंदिर है या मस्जिद इसके सभी पहलुओं की समीक्षा के बाद ही इस पर फैसला लिया जाएगा. बता दें कि मुस्लिम पक्ष ने 1991 के प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट का हवाला देते हुए कहा था कि इस कानून के तहत ज्ञानवापी परिसर में कोई भी कानूनी कार्यवाही नहीं की जा सकती है. इस पर कोर्ट ने कहा है कि ज्ञानवापी के मामले में यह नियम आड़े नहीं आता है. बता दें कि ये फैसला जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की सिंगल बेंच ने सुनाया है. मुस्लिम पक्ष ने हिंदू पक्ष के 1991 के मुकदमे को चुनौती देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिकाएं दाखिल की थीं, जिन्हें कोर्ट ने खारिज कर दिया.


मालूम हो कि कुल 5 याचिकाओं पर सुनवाई चल रही थी, जिसमें से दो याचिकाएं सिविल वाद की पोषणीयता और 3 याचिकाएं ASI सर्वे आदेश के खिलाफ थीं. दो याचिकाओं में 1991 में वाराणसी की जिला अदालत में दायर मूल वाद की पोषणीयता को चुनौती दी गई थी. तीन याचिकाओं में अदालत के परिसर के सर्वे आदेश को चुनौती दी गई थी.

प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 18 सितंबर, 1991 को संसद से पारित कर लागू किया गया था. यह एक्ट, किसी भी पूजा स्थल के रूपांतरण पर रोक लगाने और किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र को बनाए रखने के लिए है. यह एक्ट, 15 अगस्त, 1947 को किसी भी उपासना स्थल की स्थिति को बरकरार रखता है. इसके मुताबिक, भविष्य में कभी भी किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता.

काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद का विवाद काफी हद तक अयोध्या विवाद जैसा ही है. हालांकि, अयोध्या के मामले में मस्जिद बनी थी और इस मामले में मंदिर-मस्जिद दोनों ही बने हुए हैं. काशी विवाद में हिंदू पक्ष का कहना है कि 1669 में मुगल शासक औरंगजेब ने यहां काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद बनाई थी. हिंदू पक्ष के दावे के मुताबिक, 1670 से वह इसे लेकर लड़ाई लड़ रहा है. हालांकि, मुस्लिम पक्ष का कहना है कि यहां मंदिर नहीं था और शुरुआत से ही मस्जिद बनी थी.

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