
भोपाल। राजधानी भोपाल के मास्टर प्लान 2031 को लेकर मप्र हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को नोटिस जारी कर पूछा है कि कितनी आपत्तियां आईं, कितनों को सुनवाई का मौका दिया गया और आपत्तियों पर सुनवाई की प्रक्रिया क्या है? कोर्ट ने यह भी पूछा कि आबादी का सही आंकलन किए बिना भोपाल मास्टर प्लान 2031 के मसौदे को हरी झंडी कैसे दे दी गई? मुख्य न्यायाधीश अजय कुमार मित्तल व जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की युगलपीठ ने राज्य शासन को आगामी सुनवाई तिथि 23 सितंबर तक जवाब पेश करने के निर्देश दिए हैं। उल्लेखनीय है भोपाल सिटीजन फोरम के पूर्व डीजीपी अरुण गुर्टू ने यह जनहित याचिका दायर की। वरिष्ठ अधिवक्ता नमन नागरथ व अधिवक्ता रोहित जैन ने दलील दी कि टीएनसीपी संचालक ने 10 जुलाई 2020 को भोपाल का नया मास्टर प्लान 2031 अधिसूचित किया। जबकि इसको लेकर करीब 1700 आपत्तियां दर्ज कराई गई थीं। प्लान में बहुत गड़बडिय़ां हैं। पूरे ग्रीन बेल्ट को कमर्शियल किया जा रहा है। वन क्षेत्र जहां बाघों का कुनबा है, उसे आवासीय घोषित किया गया। प्लान में प्लानिंग एरिया पहले के 600 वर्ग किमी की अपेक्षा बढ़ाकर करीब 1016 वर्ग किमी कर दिया गया। इसमे भी 850 वर्ग किमी को विकास कार्यों के लिए प्रस्तावित किया गया, जो आबादी के लिहाज से बहुत अधिक है। यह प्लानिंग 2031 में शहर की आबादी 36 लाख हो जाने का आंकलन करते हुए की गई।
ग्रीन बेल्ट के लिए घातक है प्लान
जबकि 2031 तक शहर की आबादी महज 26 लाख ही होने का अनुमान है। इसके अलावा 70 प्रतिशत ग्रीन क्षेत्र कम कर दिया गया। वन्य जीवन, पर्यावरण और जलस्रोतों का भी ख्याल नही रखा गया। बड़ी झील के कैचमेंट एरिया में बाघों का मूवमेंट होने के बावजूद यहां निर्माण की अनुमति दे दी गई। प्रति हेक्टेयर 42 लोगों के हिसाब से प्लानिंग होनी थी, लेकिन 100 व्यक्ति के हिसाब से की गई। यह प्लान शहर के पर्यावरण, वन्य जीवन, जलस्रोतों, ग्रीन बेल्ट के लिए घातक है।
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